हिंदुस्तान का सबसे बड़ा पागल खाना , सबसे बड़ा पागल खाना कहां पर है , भारत का सबसे बड़ा मेंटल हॉस्पिटल sabse bada pagal khana kahan hai
एक समय ऐसा भी था जब कोई इंसान मानसिक तौर पर बीमार हो जाता था और वह ठीक नहीं हो पाता था तो उसको पागल करार देदिया जाता था। जिसके बाद वह ऐसे ही गलियों के अंदर घूमा करता था। हालांकि अभी समय बदल चुका है । यदि किसी के घर मे कोई पागल है तो उसका ईलाज करवाया जा सकता है। पर इसके अंदर भी काफी पैसा खर्च होता है।पर यदि पागल की देखभाल करने वाले हैं तो उसको ठीक किया जा सकता है। मैंने कई लोगों को देखा है जोकि पागल हो चुके थे लेकिन सही ईलाज मिलने की वजह से वे ठीक हो गए हैं।
हमारे यहां पर रामदेव नामक एक व्यक्ति था जो पागल हो चुका था और उसको पहली बार कई जगहों पर दिखाया गया लेकिन कोई भी फायदा नहीं हुआ । वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था। उसके बाद एक दिन रात को घर से निकल गया और आज तक नहीं मिला ।इसी प्रकार के अनेक पागल होते हैं जोकि घर से निकल जाते हैं और घरवाले भी उनसे तंग आ चुके होते हैं तो वे भी उनकी तलास नहीं करते हैं। इसी तरह से एक दिन यदा कदा घूमते हुए उनकी मौत हो जाती है।
पागल खाने को मैंटल होस्पीटल के नाम से जाना जाता है।लगभग हर जिले के अंदर यह बना हुआ है। लेकिन अधिकतर जगहों पर पागल लोगों को रखने की जगह नहीं होती है। और पराइवेट अस्पताल मे भारी फीस होने की वजह से यह चीज फायदेमंद नहीं होती है।
ऐसा नहीं है कि इस दुनिया से इंसानियत मर चुकी है। असल मे हम आपको ऐसे लोगों की भी कहानी सुनाएंगे जो असल मे पागल लोगों की सेवा करना ही अपनी जिंदगी का मकसद बना चुके हैं।
आगरा के पागलखाने का नाम तो आपने सुना ही होगा ।पत्रिका मे प्रकाशित एक रिपोर्ट मे बताया कि आगरा मे इतना बड़ा पागलखाना होने के बाद भी यहां पर पागल सड़कों पर घूमते हुए मिल जाएंगे । मतलब यह है कि पागलों का ईलाज इतनी आसानी से नहीं हो पाता है।
यहां के अस्पताल के प्रबंध से बात की गई तो पता चला कि यहां पर किसी भी पागल मरीज को भर्ति करने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। और इसके लिए इतने चक्कर लगाने होते हैं कि परिजनों का दिमाग ही खराब हो जाता है। बताया जाता है कि यहां पर कई लोग तो इस प्रकार के आते हैं जो सही मरीज को पागल बनाकर छोड़कर चले जाते हैं और उसके बाद लेने के लिए भी नहीं आते हैं।
इसके अलावा रोड़ पर जो पागल घूमते हैं उनको अस्पताल मे भर्ती करवाना पुलिस की जिम्मेदारी होती है लेकिन इसके लिए भी पुलिस को कोर्ट के चक्कर वैगरह काटने होते हैं तो पुलिस भी इस लफड़े के अंदर पड़ना नहीं चाहती है। यहां पर अधिकतर उन्हीं मरीज को भर्ती करवाया जाता है जोकि घरवालों के लिए बहुत अधिक परेशानी का सबब बन चुका होता है।
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सबसे बड़ा पागल खाना कहां है रांची के केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान
बिहार की पूर्ववर्ती राजधानी रांची पिछली सदी से मानसिक रूप से बीमार मरीजों के इलाज का पर्याय रही है।और पिछले 100 सालों मे यहां पर काफी बदलाव देखने को मिलें । केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान रांची, झारखंड भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों के लिए एक प्रमुख संस्थान है। अंग्रेजों ने 17 मई 1918 को इस अस्पताल की स्थापना की थी।
इस अस्पताल को पहले रांची यूरोपियन ल्यूनेटिक एसाइलम के नाम से जाना जाता था । 100 साल से भी अधिक अब यह अस्पताल पुराना हो चुका है।और इन 100 सालों के अंदर इस पागलखाने मे कई तरह के बदलाव भी हुए और अत्याधुनिक उपकरणों का विकास भी हुआ । रांची के सुरम्य शहर में 211 एकड़ में फैला, सीआईपी एक ऐसे वातावरण में नवीनतम चिकित्सा प्रगति प्रदान करता है जो मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है । स्वतंत्रता से पहले इस अस्पताल का प्रयोग केवल यूरोपियन रोगियों की सेवा करने के लिए किया जाता था।
रांची यूरोपीय मानसिक अस्पताल भारत का एकमात्र मानसिक अस्पताल है जो पूरी तरह से यूरोपीय या अमेरिकी मूल के व्यक्तियों के इलाज के लिए है। एशिया या अफ्रीका के मूल निवासी प्रवेश के लिए पात्र नहीं हैं। यूरोपीय शब्द में मिश्रित वंश के व्यक्ति शामिल हैं, अर्थात, एंग्लो-इंडियन या एंग्लो-अफ्रीकी, और पूर्व में रोगियों का सबसे बड़ा प्रतिशत संबंधित है। ” —— बर्कले-हिल ओ। 1924।
वर्तमान में, पुरुष रोगियों के लिए सात वार्ड, महिला रोगियों के लिए छह, बच्चों और किशोरों के लिए एक वार्ड, व्यसन मनोरोग के लिए एक वार्ड है। यहां पर कुल 17 वार्ड बने हुए हैं। और महिलाओं और नर के वार्ड को अलग अलग किया गया है।
सभी वार्डों का नाम प्रख्यात यूरोपीय मनोचिकित्सकों के नाम पर रखा गया है जैसे, क्रेपेलिन, ब्लेयूलर, फ्रायड, मौडस्ले आदि। हाल की सुविधाओं और प्रतिष्ठानों का नाम डी. सत्यानंद, एलपी वर्मा, आरबी डेविस, भास्करन आदि।
अपने अनोखे ढंग की वजह से यह अस्पताल काफी प्रसिद्ध हो गया है।यहां पर मानसिक रोगी कई तरह से मनोरंजन भी करते हैं जैसे संगीत देखना ,नाटक देखना और हॉकी खेलना आदि । इसके अलावा मरीज बाजार मे घूमने जाते हैं ,खरीददारी का आनन्द लेते हैं।
हिंदी, अंग्रेज़ी, उड़िया, बांग्ला आदि भाषाओं के अंदर यहां पर पत्र पत्रिकाएं आती हैं। इसके अलावा यहां पर एक बढ़िया लाइबरेरी भी है।जिसके अंदर कुछ मानसिक रोगी किताबे पढ़ते हुए भी देखे जा सकते हैं। साल 1925-29 के बीच रांची के कई ,खेल क्लबों को हराकर मानसिक रोगियों ने फुटबाल के मेचों को जीत लिया था जोकि अपने आप मे एक अजीब बात है।
उर्दू के मशहूर शायर मजाज़ व बांग्ला के मशहूर विद्रोही कवि काज़ी नज़रुल इस्लाम भी इलाज के लिए 1952 में भर्ती हुए थे ।
वर्तमान मे इस अस्पताल की भी समस्याएं बढ़ चुकी हैं।जिस संख्या मे अस्पताल मे मरीज बढ़ रहे हैं। उस संख्या मे वार्ड नहीं हैं। इसके अलावा मरीजों की देखभाल करने के लिए डॉक्टरों की भी भारी कमी हैं। जिसके चलते मरीजों को सही ईलाज नहीं मिल पा रहा है।
sabse bada pagal khana Institute Of Mental Health And Hospital, Agra
मानसिक स्वास्थ्य और अस्पताल आगरा संस्थान , जिसे पहले आगरा पागल शरण के रूप में जाना जाता था, 1859 में ब्रिटिश राज में उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया था । यह अस्पताल बिलोचपूर रेलवे स्टेशन के सामने 172.8 एकड़ के अंदर फैला हुआ है।
भारत में पहली शरण ब्रिटिश सरकार द्वारा 1745 में बंबई में और दूसरी 1784 में कलकत्ता में स्थापित की गई थी । 1857 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के बड़े शहरों में कुछ और शरणस्थल भी स्थापित किए गए। मानसिक स्वास्थ्य और अस्पताल आगरा संस्थान की स्थापना सितंबर 1859 में हुई थी, और 1925 में इसका नाम बदलकर मानसिक अस्पताल आगरा कर दिया गया।
भारत में अंग्रेजों द्वारा पागलखाने की स्थापना इस तथ्य के आधार पर की गई थी कि पागलों की देखभाल क्राउन की जिम्मेदारी थी। पहली शरण 1745 में बंबई में और उसके बाद कलकत्ता में 1784 में स्थापित की गई थी। 1857 तक कुछ शरणस्थल थे, जो ज्यादातर कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास के प्रमुख शहरों में मौजूद थे। पागलखाने के विकास को भारतीय पागलखाना अधिनियम, 1858 के अधिनियमन द्वारा सुगम बनाया गया था।
Institute Of Human Behavior And Allied Sciences, Delhi
मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान मानसिक रोगियों के लिए एक अस्पताल है।शाधारा, देहली (एचएमडी) में अंग्रेजों के शासन काल मे ही मानसिक रोगियों के लिए एक अस्पताल की स्थापना की गई थी।आईएचबीएएस की स्थापना 1993 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के जवाब में की गई थी, जिसमें पिछले एचएमडी को उपचार, प्रशिक्षण और अनुसंधान केंद्र में बदल दिया गया था। यह दिल्ली सरकार द्वारा प्रशासन के अधीन एक स्वायत्त संस्था है ।
आरटीआई अधिनियम के तहत रोगी के रिकॉर्ड का खुलासा करने से इनकार करते हुए इस पागलखाने के डॉक्टर ने कहा कि यह सही नहीं होगा। इसके अलावा जून, 2013 में, द हिंदुस्तान टाइम्स ने रिपोर्ट किया कि देविंदरपाल सिंह भुल्लर, जो 1993 में बम विस्फोट की घटना में आरोपी थे का इसी अस्पताल मे 1 साल तक मुल्यांकन किया और कहा कि वे मानसिक अवसाद से पीड़ित हैं इस वजह से फांसी के लिए फिट नहीं है।
- पता : ताहिरपुर रोड, एसडीएन अस्पताल रोड, दिलशाद गार्डन, नई दिल्ली, दिल्ली 110095
- फोन : 01122112136
Vidyasagar Institute Of Mental Health, Neuro And Allied Sciences, Delhi
आपको यह बतादें कि यह पागलखाना कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। वरन यह एक प्राइवेट अस्पताल है। और इसका निर्माण डॉ विद्या सागर के परिवार के लोगों ने उनके छोड़े पैसों से किया है। मानसिक अस्पतालों मे यह सबसे अच्छा अस्पताल मे से एक है।
यह एक एक बहु-विशिष्ट संस्थान है जो मानसिक बीमारियों, और शारीरिक पुनर्वास, न्यूरो साइंसेज के साथ-साथ अकादमिक, अनुसंधान और प्रशिक्षण के क्षेत्र में व्यापक देखभाल प्रदान करता है।मानसिक स्वास्थ्य के मामले मे यह पीछले 30 वर्षों से भारत के अलावा विदेशी लोगों की भी सेवा कर रहा है।
अस्पताल की आधारशिला 1987 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिंह ने रखी थी। और तब से लेकर अबतक अस्पताल ने एक लंबा सफर तय किया है। इसके अंदर 100 से अधिक बिस्तर की सुविधा भी उपलब्ध है।
डॉ विद्या सागर, M.D [M.R.C. साइक।] 1910-1978, जिसे भारतीय मनश्चिकित्सा के पिता के रूप में भी जाना जाता है।वे पहले मानसिक चिकित्सक थे जिन्होंने मानसिक रोगियों के लिए उचित आवास उपलब्ध करवाया।डॉ विद्या सागर रोगियों और उनके परिवार के सदस्यों की सेवा में प्रतिदिन 18 घंटे तक खर्च करती थीं।और जब कई बार अस्पताल मरीजों से खचा खच भर जाता था तो मरीजों को घर पर भी रखा जाता था।डॉ विद्या सागर को भारतीय मनश्चिकित्सा संघ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया और उन्होंने अपने चुने हुए पेशे और रोगियों की सेवा में जीवन बिताया।
VIMHANS- Vidyasagar Institute of Mental Health, Neuro & Allied Sciences
Institutional Area, Nehru Nagar,
New Delhi-110065
9999691507,9999691508
National Institute Of Mental Health And Neuro Sciences, Bengaluru
मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका-विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान बंगलूर के अंदर है। यह परिवार और कल्याण मंत्रालय के सहयोग से चलता है।2020 मे इसको मनोचिकित्सा का दर्जा दिया जा चुका है।संस्थान का इतिहास 1847 का है । इसको मानसिक अस्पताल के रूप मे स्थापित किया गया था। उसके बाद 1925 में, मैसूर सरकार ने शरण का नाम बदलकर मानसिक अस्पताल कर दिया गया था।
मैसूर सरकार मानसिक अस्पताल मनोरोग में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण के लिए भारत का पहला संस्थान बन गया।राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान 1954 में भारत सरकार द्वारा स्थापित तत्कालीन राज्य मानसिक अस्पताल और अखिल भारतीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के समामेलन का परिणाम था।
14 नवंबर 1994 को, NIMHANS को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अकादमिक स्वायत्तता के साथ एक डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया था । और वर्तमान मे यह मानसिक अस्पताल बना हुआ है।मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र मे यह अस्पताल सबसे अधिक उपयोगी है।इसके अंदर कई सारे विभाग हैं। जिनके बारे मे भी आपको जानना चाहिए ।
- जीव पदाथ-विद्य
- जैव सांख्यिकी
- बुनियादी तंत्रिका विज्ञान
- मानव आनुवंशिकी
- तंत्रिका रसायन
- न्यूरोमाइक्रोबायोलॉजी
- तंत्रिकाविकृति विज्ञान
- न्यूरोफिज़ियोलॉजी
- न्यूरोवायरोलॉजी
- मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा
- नैदानिक मनोविज्ञान
- बाल और किशोर मनोचिकित्सा
- मनोरोग सामाजिक कार्य
- मनश्चिकित्सा
- नर्सिंग
- नैदानिक तंत्रिका विज्ञान
- न्यूरोसर्जरी
- क्लिनिकल साइकोफार्माकोलॉजी और न्यूरोटॉक्सिकोलॉजी
- न्यूरोइमेजिंग और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी
- तंत्रिका-विज्ञान
- महामारी विज्ञान
- न्यूरोलॉजिकल पुनर्वास
- न्यूरोएनेस्थीसिया और न्यूरोक्रिटिकल केयर
- मनोरोग पुनर्वास
- स्पीच पैथोलॉजी और ऑडियोलॉजी
- आधान चिकित्सा और रुधिरविज्ञान
- NIMHANS के विभिन्न विशेषज्ञों ने मई 2015 में किशोर न्याय विधेयक के खिलाफ आलोचना दर्ज कराई । और उन्होंने कहा कि किशोर कम दोषी हैं उनको व्यस्क न्याय प्रणाली के अंदर स्थानान्तरित नहीं किया जाना चाहिए।
- दिसंबर 2014 मे एक भारतिय सैनिक मानसिक बीमारी से पिड़ित था लेकिन अस्पताल ने निकर्ष निकाला की वह किसी भी तरह की मानसिक बीमारी से पिड़ित नहीं था।
- 2013 में, NIMHANS विवादों में आ गया जब टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा यह खुलासा किया गया कि यह पूछताछ तकनीकों के साथ अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो की मदद ले रहा था।
- सन 2008 मे शिंजिनी सेन को जब जजों ने फटकार लगाई तो उसने अपनी शारीरिक गतिशीलता खो दी और जजों पर यह आरोप लगाया गया कि जजों की वजह से यह सब गलत कार्य हुआ है।उसे न्यूरोबायोलॉजिकल स्थिति के इलाज के लिए कोलकाता से बैंगलोर के निमहंस ले जाया गया।जिसके बाद वहां के डॉक्टरों ने कहा की मरीज अवसाद से पीड़ित हो सकता है । हम इसकी जांच कर रहे हैं।
Lokopriya Gopinath Bordoloi Regional Institute Of Mental Heath, Tezpur
Lokopriya गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान भारत के सबसे पुराने मानसिक अस्पतालों मे से एक है।यह 1876 ई के अंदर स्थापित किया गया था और सोनिपत के तेजपूर जिले मे यह पड़ता है।
यह रेलमार्ग और सड़क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।यह संस्थान एएसटीसी बस स्टैंड, तेजपुर से लगभग 2 किमी दूर स्थित है। यह गुवाहाटी से लगभग 180 किमी दूर है । तेजपुर हवाई अड्डे से लगभग 15 किमी दूर है। 1876 ई के अंदर इसके अंदर पागल लोगों को रखा जाता था।1922 ई के अंदर अस्पताल का नाम बदलकर तेजपूर अस्पताल कर दिया गया था।1932 ई के अंदर 700 से अधिक बेड़ यहां पर थे ।
1949 में स्वर्गीय डॉ. एन.सी. बोरदोलोई अस्पताल के अधीक्षक बने ।1987 में एक नया बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) बनाया गया था। 1999 में संस्थान को उत्तर पूर्वी परिषद (एनईसी) को सौंप दिया गया था । 1 जून 2007 को, संस्थान को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (भारत) , भारत सरकार द्वारा अधिग्रहित किया गया था।
इस मानसिक अस्पताल के अंदर कई सारे विभाग बने हुए हैं।
- मनश्चिकित्सा विभाग को 1998 ई के अंदर स्थापित किया गया था।विभाग ने 2006 में डीएनबी पाठ्यक्रम और 2010 में एमडी पाठ्यक्रम शुरू किया था।
- मनोरोग नर्सिंग विभाग वर्ष 1998 में शुरू किया गया था। 2001 में, भारतीय नर्सिंग परिषद और राज्य नर्सिंग परिषद के तहत मनोरोग नर्सिंग में डिप्लोमा (DPN) शुरू किया गया था ।
- नैदानिक मनोविज्ञान विभाग की स्थापना सन 2002 ई के अंदर हुई थी।
- मनश्चिकित्सीय सामाजिक कार्य विभाग की शुरुआत 1998 में मनोरोग सामाजिक कार्य में सामाजिक कार्य सेवाएं और शिक्षण कार्यक्रम शुरू करने के उद्देश्य से की गई थी।
Ranchi Institute Of Neuro-Psychiatry And Allied Sciences, Kanke
रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो-साइकियाट्री एंड एलाइड साइंसेज को पागलखाना के नाम से भी जाना जाता है। इसकी स्थापना 1795 ई के अंदर सैनिकों के मानसिक रोगों की ईलाज करने के लिए हुई थी।यह एक पहला ऐसा पागल खाना है जो अंग्रेजों ने भारत के रोगियों के लिए बनाया था। सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। 2018-2019 में ओपीडी में उपस्थिति 98113 थी। इन-पेशेंट के लिए, कुल 2172 को भर्ती किया गया था।
Dharwad Institute Of Mental Health And Neurosciences, Dharwad
इस संस्थान को 1845 में ब्रिटिश सरकार द्वारा शूरू किया गया था। यह मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए था।यहां पर उन मरीजों को रखा जाता था जोकि समाज के द्धारा कलंकित थे । और बाद मे इस अस्पताल मे कुछ वार्डों को भी बनाया गया ।
1908 को दक्षिणी भारत के अधीक्षक अभियंता ने यरवद (पुणे), कोलाबा, रत्नागिरी और थाना के साथ-साथ धारवाड़ में मानसिक शरण स्थापित करने के लिए एक जगह प्रदान करने के लिए बॉम्बे प्रांत के अधीक्षक को एक पत्र लिखा था।सन 1922 को इस अस्पताल को मानसिक अस्पताल घोषित किया था।
1960 ई के अंदर अस्पताल मे अलग अलग कर्मचारियों की भर्ति की गई थी।स्वर्गीय डॉ. एस.एम. चन्नाबसवन्ना को अस्पताल के पहले चिकित्सा अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।
1974 की अवधि के दौरान, ओपीडी सेवाओं को अधीक्षक के कार्यालय में बनाए रखा गया था, एक स्वतंत्र ओपीडी भवन में स्थानांतरित कर दिया गया था। बाद में 1975 से 1977 तक बागवानी, बढ़ईगीरी और व्यावसायिक चिकित्सा के लिए अस्पताल परिसर में खाली भूमि का उपयोग करके सेवाओं का विकास किया गया।
वर्ष 1979 में, कर्नाटक विश्वविद्यालय धारवाड़ के मनोविज्ञान विभाग के सहयोग से शैक्षणिक कार्यक्रम डिप्लोमा इन साइकोलॉजिकल मेडिसिन शुरू किया गया था।इस अस्पताल को 1992 तक एक सामान्य अस्पताल के रूप मे माना जाता था और इसका प्रबंध भी सरकार के द्धारा किया जाता था।सन 1993 ई मे इसका नाम कर्नाटक मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (KIMH) कर दिया गया था।सन 1996 ई के अंदर इसको कर्नाटक के मेडिकल कॉलेज मे विलय कर दिया गया ।1999 ई के उच्च न्यायलय के निर्देशों के अनुसार एक टीम का गठन किया गया और उसने अस्पताल का दौरा किया।
2000 में कर्नाटक सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की।नए ओपीडी ब्लॉक, आपातकालीन वार्ड, ईसीटी कक्ष, स्टोर रूम, प्रयोगशाला, 8 खुले वार्ड शामिल हैं। प्रत्येक में 20 बेड (कुल 200 बेड) और 8 विशेष वार्ड, धर्मशाला का निर्माण करवाया गया था।
Government Mental Health Center, Thrissur
तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर और कोझीकोड में मानसिक स्वास्थ्य केंद्र है।मानसिक स्वास्थ्य केंद्र, तिरुवनंतपुरम केरल राज्य के सबसे दक्षिणी भाग में तिरुवनंतपुरम जिले में स्थित है। परिसर तिरुवनंतपुरम सेंट्रल रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित है। परिसर का क्षेत्रफल 36 एकड़ है। त्रावणकोर के महामहिम महाराजा ने वर्ष 1870 में तत्कालीन मानसिक अस्पताल की शुरुआत की।
सन 1984 ई मे इसका नाम बदलकर मानसिक स्वास्थ्य केंद्र कर दिया गया था।इसके बाद इस अस्पताल मे लगातार सुधार पर सुधार होते रहे । और यह काफी तरक्की कर गया ।
मानसिक अस्पताल त्रिशूर वर्ष 1889 में कोचीन के महामहिम महाराजा द्वारा महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग अलग खोला गया था।उसके बाद इस अस्पताल का प्रबंधन सरकार ने अपने हाथों मे लेलिया था।समिति की रिपोर्ट में सिफारिश के अनुसार वर्ष 1984 में अस्पताल का नाम बदलकर सरकारी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र त्रिचूर कर दिया गया। 1984 में छह मनोरोग इकाइयां इसके अंदर स्थापित की गई थी।1984 से कैदियों को उनके रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति प्रदान करदी गई थी।सरकारी पागलखाना, कालीकट तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में अंग्रेजों द्वारा स्थापित तीन मानसिक आश्रयों में से एक था। इसके अंदर कई सारे ऐसे कैदी रखे जाते थे जो काफी पागल होते थे और काफी हिंसक हो जाते थे ।1941 में 500 कैदियों के लिए सभी आवश्यक कपड़े यहां बनाए गए थे। 1955 में केंद्र में बिजली आई।
Institute of Psychiatry, Kolkata
यह तीसरा सबसे पुराना अस्पताल है जिसको 200 साल पहले शूरू किया गया था।1817 मे क पूर्व-सेना के आदमी- श्री आई बियर्ड्समोर द्वारा यूरोपीय पागल शरण, भवानीपुर के रूप में शुरू किया गया था और उस समय इसके अंदर 50 से 60 रोगियों की देखभाल की व्यवस्था थी।
इसके बाद, 1922 से, यह ब्रिटिश बंगाल सरकार की जिम्मेदारी बन गई, जिसने 1924 में इसका नाम बदलकर मेंटल ऑब्जर्वेशन वार्ड, भवानीपुर कर दिया।सन 1950 ई मे स्वतत्रंता के बाद बंगाल के मुख्य मंत्री ने इनका नाम बदलकर इसको मानसिक अस्पताल का दर्जा प्रदान कर दिया । उसके बाद इसके अंदर 30 और बेड़ की व्यवस्था की गई थी।
1963 में, प्रो. अजीता चक्रवर्ती ने पहली बाह्य रोगी विभाग सेवा शुरू की, जहां रोगियों को सप्ताह में तीन बार दोपहर में देखा जाता था । उसके बाद 1989 मे इस विश्वविधालय के अंदर पाठयक्रम बनाया गया ।1991 में, इसका नाम बदलकर इंस्टीट्यूट ऑफ साइकियाट्री कर दिया गया।
मनश्चिकित्सा संस्थान, कोलकाता (IOP) स्नातकोत्तर मनोरोग शिक्षा के रूप मे यह वर्तमान मे काम कर रहा है।अब क्लिनिकल साइकोलॉजी में एमफिल, साइकियाट्रिक सोशल वर्क में एमफिल और साइकियाट्रिक नर्सिंग में पोस्ट-बेसिक डिप्लोमा के लिए प्रशिक्षण दे रहा है।
Calcutta Pavlov Hospital, Kolkata
पावलोव संस्थान 1959 में शुरू किया गया था।यह एक गैर लाभकारी संस्थान है जिसका निर्माण ,डॉक्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शूरू किया था।जीव विज्ञान, मनोविज्ञान और मनश्चिकित्सा के क्षेत्र मे यह काम करता है। वे रोगियों को विभिन्न प्रकार की मानसिक और मनोवैज्ञानिक सेवाएं प्रदान करते हैं। वे ऐसे विषयों पर व्यापक शोध भी करते हैं। इस संस्थान का पता है 18, गोबरा रोड, सील लेन, बेनियापुकुर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल 700046।
12. Dr Vidyasagar Institute Of Mental Health, Amritsar
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान, अमृतसर जिसे डॉ विद्यासागर सरकारी मानसिक अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है। यह पंजाब सरकार के द्धारा संचालित किया जाता है।यह अमृतसर पंजाब मे पड़ता है। और पंजाब और हरियाणा के रोगी यहां पर अपना ईलाज करवाने के लिए आते हैं।
मूल रूप से 1900 में लाहौर में स्थापित, पंजाब के विभाजन के बाद 1947। में अमृतसर में स्थानांतरित कर दिया गया जब गैर-मुस्लिम रोगियों को यहां स्थानांतरित किया गया। 2008 ई मे इस अस्पताल की कुछ भूमी को ताज होटल के अंदर स्थानान्तरित कर दिया गया । डॉ विद्यासागर सरकारी मानसिक अस्पताल में नर्सिंग स्कूल सामान्य नर्सिंग और मिडवाइफरी (जीएनएम) और बीएससी नर्सिंग पाठ्यक्रम की सुविधा भी यहां पर प्रदान की जाती है।
Regional Mental Hospital, Nagpur
नागपुर का यह अस्पताल सन 1984 ई के अंदर स्थापित किया गया था।हालांकि उस समय इसको पागलों के अस्पताल के नाम से जाना जाता था। तब से लेकर अब तक यहां पर कई तरह के बदलाव देखने को मिलते हैं। 1959 के बाद यह बदलने लगा और अब इस अस्पताल मे 50000 से अधिक लोग साल मे आसानी से आ जाते हैं।
विदर्भ के बारे मे पहले कोई भी नहीं जानता था लेकिन यहां पर हर आठ महिने मे 917 किसान आत्महत्या कर लेते हैं।इसके अलावा विदर्भ के सबसे बड़े शहर नागपुर के अंदर ही सबसे बड़ा मानसिक अस्पताल भी है। टाटा ट्रस्ट, महाराष्ट्र सरकार ने इस अस्पताल को विकसित करने की दिशा मे काम कर रहे हैं।ताकि यहां पर मानसिक रोगियों को अच्छी से अच्छी सुविधा मिल सके । इस अस्पताल का फायदा 4,000 गांव ले रहे हैं और 56 लाख से अधिक लोग यहां आकार लाभ उठाते हैं।इसके अलावा इससे 1500 लोगों को रोजगार भी मिला है।
Dr. Rakesh Kumar Paswan Neuropsychiatry Centre, Prayagraj
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान इसके निर्देशक हैं। और यहां पर अत्याधुनिक चीजों का प्रयोग मरीजों के उपचार मे किया जाता है।न्यूरोसाइकियाट्री, पुनर्वास, नशामुक्ति, परामर्श और मनोचिकित्सा जैसी सुविधाएं यहां के मरीजों को प्रदान की जाती हैं। उन्होंने मेजर एस डी मेडिकल कॉलेज (फर्रुखाबाद) में सहायक प्रोफेसर के रूप में 3 साल तक काम किया। उन्हें उनके शिक्षण कौशल और शिक्षण पद्धति के लिए वहां सराहा गया। वह एमबीबीएस, एमडी छात्रों और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को विभिन्न प्रकार की मानसिक बीमारियों और उनके इलाज के बारे में शिक्षित करते थे।
बाद में उन्होंने रामा मेडिकल कॉलेज, कानपुर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में 2 साल तक काम किया, जहाँ उन्होंने ‘मानसिक बीमारी के उपचार के रोगी केंद्रित दृष्टिकोण’ का उल्लेख किया जो बहुत सफल रहा और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं (विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हाल के रुझानों की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका) में प्रकाशित हुआ। वर्तमान में वे मोतीलाल नेहरू संभागीय अस्पताल (केल्विन) में सलाहकार न्यूरो मनोचिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं।
39/17 (9-A), Muir Road, Near rajapur traffic chauraha, Prayagraj, Uttar Pradesh 211001
Sukoon Healthcare, Gurugram
सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के मामले मे यह नंबर वन है।यहां पर मरीजों को कई तरह की आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।यहां पर अनुभवी डॉक्टर मरीजों की मदद करते हैं।इसके अलावा इस अस्पताल के अंदर विदेशी लोगों का भी उपचार करने की काफी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
Father Muller Medical College And Mental Health Centre, Mangalore
राष्ट्रीय राजमार्ग -66 से एक किलोमीटर दूरी पर यह अस्पताल पड़ता है। पहले इसको एक आम अस्पताल के रूप मे शूरू किया गया लेकिन उसके बाद 1966 ई के अंदर इसको एक मनोचिकित्सक अस्पताल के रूप मे शूरू कर दिया गया था।इस समय इसके अंदर केवल 25 बिस्तर ही थे । स्नातकोत्तर प्रशिक्षण 1993 में शुरू हुआ। पिछले कुछ वर्षों में इसने अपने आप में काफी सुधार किया है,।वर्तमान मे यह मनोरोग और प्रशीक्षण के लिए सबसे अच्छा अस्पताल बन चुका है।
फादर मुलर मेडिकल कॉलेज और मानसिक स्वास्थ्य केंद्र, कंकनाडी, मैंगलोर
हिंदुस्तान का सबसे बड़ा पागल खाना Athma Hospitals, Tiruchirappalli
मानसिक स्वास्थ्य के मामले मे यह एक काफी अच्छा अस्पताल है। डॉ के रामकृष्णन ने 29 जनवरी को अथमा अस्पताल की स्थापना की थी। पहले इस अस्पताल को सिर्फ किराये के 3 कमरों के साथ शूरू किया गया था। हालांकि बाद मे रोगियों की संख्या मे काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई । 1998 ई के अंदर इस अस्पताल का पुनरूथान किया गया था।2000 मे अस्पताल को नए भवन के अंदर स्थानान्तरित कर दिया गया था। डॉ. के. रामकृष्णन ने मनोचिकित्सक की एक टीम को स्थापना के लिए इकट्ठा किया। आज, मनोचिकित्सा के क्षेत्र में सबसे अच्छा संस्थान चौबीसों घंटे है और गुणवत्ता देखभाल प्रदान करता है।
65,000 से अधिक रोगियों का विवरण यहां पर दर्ज है और पूरी गोपनियता के साथ रखा जाता है। इसके अलावा 80 बिस्तरों की क्षमता और 250 बिस्तरों वाला एक आवासीय केंद्र यहां पर उपलब्ध है।
Schizophrenia Research Foundation (SCARF), Chennai
SCAF की स्थापना 1984 में मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों को गुणवत्तापूर्ण देखभाल और पुनर्वास करने के लिए की गई थी।वर्तमान मे यह मानसिक रोगियों की देखभाल के साथ साथ ही नए रिसर्च क्षेत्र मे काम कर रहा है। डॉ शारदा मेनन ने इस अस्पताल की स्थापना की थी और उन्होंने लगातार 18 वर्ष तक इस अस्पताल की देखभाल की थी।
डॉ. शारदा मेनन ने 1995 में निदेशक के पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे वर्तमान उपाध्यक्ष डॉ. थारा के लिए जगह बन गई थी। और शारदा मेनन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया ।
Tulasi Healthcare, New Delhi
तुलसी हेल्थ केयर दिल्ली मनोरोग के क्षेत्र मे एक महत्वपूर्ण अस्पताल है।यह मादक द्रव्यों की समस्या के साथ साथ ही कई तरह की मानसिक बीमारियों के उपचार मे मदद करता है। तुलसी की स्थापना डॉ. गौरव गुप्ता और डॉ रुचिका गुप्ता ने की थी । और उस समय यह एक बहुत ही छोटा अस्पताल हुआ करता था। और 10 मरीजों की जरूरतों को ही पूरा कर सकता था।
- तंबाकू की लत
- कोकीन डी एडिक्शन
- सिज़ोफ्रेनिया उपचार
- मारिजुआना डी एडिक्शन
- दोहरा निदान
- सीबीटी व्यवहार थेरेपी
- शराब की लत
- द्विध्रुवी विकार उपचार
- जुनूनी बाध्यकारी विकार उपचार
- मनोभ्रंश उपचार
पुनर्वास कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएं
- स्क्रीनिंग और हस्तक्षेप सहित समय पर पता लगाना।
- व्यापक मूल्यांकन और व्यक्तिगत उपचार योजना।
- गाजर और छड़ी के दृष्टिकोण का उपयोग करने वाले रोगियों के साथ अनुबंध करना (अच्छे व्यवहार को पुरस्कृत करने और बुरे व्यवहार को दंडित करने से उपचार के परिणामों में सुधार हो सकता है)।
- सामाजिक कौशल प्रशिक्षण: संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी का आधार।
- मरीजों की निरंतर देखभाल।
हिंदुस्तान का सबसे बड़ा पागल खाना State Mental Health Institute, Selakui
राज्य मानसिक स्वास्थ्य संस्थान उत्तराखंड भारत का एक मनोरोग अस्पताल है।यह उत्तराखंड के साथ साथ ही आस पास के क्षेत्रों के रोगियों की सेवा भी करता है।10,000 रोगियों की प्रतिवर्ष उपचार किया जाता है।इनपेशेंट मनोरोग प्रवेश के लिए 30 बिस्तर हैं। यह सेलाकी में, देहरादून , उत्तराखंड के एक हिस्से में राष्ट्रीय राजमार्ग 72 पर मुख्य शहर से पांवटा साहिब की ओर लगभग 25 किमी दूर स्थित है ।
2012 में इस अस्पताल के बारे मे एक न्यूज पोर्टल ने रिपोर्ट छापी और कहा कि अस्पताल की हालत बहुत अधिक खराब है। यहां पर स्टॉफ की भारी कमी हैं। जिसके चलते मरीजों की सही तरीके से देखभाल नहीं हो पा रही है। और अस्पताल के अंदर जो उपकरण हैं वे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं।
सबसे बड़ा पागल खाना कहां है ? इस सवाल का जवाब आपको मिल गया है। उपर हमने भारत के सबसे बड़े पागल खाने के बारे मे बताया गया है। जहां पर कई सारे पागल रोगियों को रखा जाता है।
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very informative post. thanks.