क्या आप जानते हैं शिवलिंग पर जल चढ़ने के फायदे shivling par jal chadane ke fayde , शिवलिंग एक प्रकार का प्रतीक चिन्ह होता है जोकि भगवान शिव के मंदिरों के अंदर स्थापित होता है।शिवलिंग गोलाकार होता है।शिवलिंग का ऊपरी अंडाकार भाग परशिव का प्रतिनिधित्व करता है व निचला हिस्सा यानी पीठम् पराशक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।आपको बतादें कि धातु या चिकनी मिट्टी से बना हुआ शिवलिंग स्तम्भाकार या अंडाकार होता है।यह शिव लिंग निराकार प्रभु और सर्वशक्तिमान प्रभु की याद दिलाता है।सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान कालीबंगा जैसे स्थानों पर भी पकी मिट्टी के शिवलिंग मिलें है जिससे यह पता चलता है कि शिवलिंग की पूजा आज से 3000 साल पहले भी हुआ करती थी।
पश्चिमी हिमालय में अमरनाथ नामक गुफा में प्रत्येक शीत ऋतु में गुफा के तल पर पानी टपकाने से बर्फ का शिवलिंग अपने आप ही बन जाता है तो यहां आने वाले यात्रियों के लिए बहुत अधिक लोकप्रिय है।
वैसे आपको बतादें कि हर शिवमंदिर के अंदर शिवलिंग होता ही है।बहुत से लोग शिवलिंग का मतलब नहीं समझने के कारण इसका गलत अर्थ लेते हैं लेकिन असल मे शिवलिंग का मतलब लिंग नहीं होता है। पुरूषलिंग का मतलब पुरूष का प्रतीक होता है। और स्त्री लिंग का मतलब स्त्री का प्रतीक होता है।
शून्य आकाश और अनन्त ब्रहा्रमाड का प्रतीक होने की वजह से इसको लिंग कहा गया है।इसके अलावा शिवलिंग का अर्थ अनन्त भी होता है।वैसे शिवलिंग के अंदर लिंग शब्द आता है जिसका मतलब योनी या फिर लिंग नहीं होता है। इसका मतलब प्रतीक होता है।
यह बताया गया है कि ब्रह्रमांड दो चीजों से मिलकर बना होता है एक पदार्थ और दूसरा उर्जा होता है।उर्जा आत्मा को कहा गया है और पदार्थ से हमारा शरीर और दूसरी भौतिक चीजें बनी हुई हैं।
वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की आकृति है। यह शिव और माता पार्वती की समानता का प्रतीक भी है और दोनों की समानता का भी प्रतीक है।इस संसार के अंदर पुरूष और स्त्री दोनों का समान रूप से वर्चस्व है।
यदि आपके यहां पर शिवलिंग है या फिर शिव मंदिर है तो आपने भी शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए देखा होगा । और आपके मन मे भी सवाल आया होगा कि शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाते हैं ? आइए इस लेख के अंदर हम जानेंगे कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने के क्या फायदे होते हैं ?
Table of Contents
1.शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे अशुभ ग्रहों का प्रभाव दूर होता है।
यदि आप शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तो ऐसा करना काफी फायदेमंद होता है तो कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव दूर होता है। यदि आपकी कुंडली के अंदर अशुभ ग्रह मौजूद हैं तो उनके प्रभाव को दूर करने के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाना चाहिए ।
2.shivling par jal chadane ke fayde धन और संपदा मिलती है
ऐसी मान्यता है कि यदि कोई पारद का शिवलिंग बनाता है और उसकी पूजा प्रतिदिन करता है व रोजाना जल चढ़ाता है तो उसे धन और संपदा की प्राप्ति होती है। यदि आप काफी गरीब हैं आपके बिजनेस नहीं चल रहे हैं तो पारद के बने शिवलिंग की पूजा करें और उसके उपर जल चढ़ाएं ।
3.शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे मान सम्मान की प्राप्ति
यदि आपको समाज और परिवार के अंदर मान सम्मान नहीं मिल रहा है तो आप शिवलिंग पर जल चढ़ा सकते हैं। यह मान सम्मान को देता है। जिसके बाद सभी लोग आपको आदर से देखने लगेंगे । शिवलिंग पर प्रतिदिन जल चढ़ाना इसलिए भी फायदेमंद होता है।
4.शारिरिक और मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं
शिवलिंग पर जल चढ़ाने से शारीरिक और मानसिक पाप नष्ट हो जाते हैं।यदि आप अपने शारीरिक और मानसिक पाप को नष्ट करना चाहते हैं तो रोजाना शिवलिंग के उपर जल चढ़ाएं ।
5.सोने के शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे
यदि आप सोने के शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तो यह काफी फायदेमंद होता है। यह मुक्ति प्रदान करता है। समस्त दुखों को दूर करके यह परम कल्याण को प्रदान करता है।
6.शिवलिंग पर जल चढ़ाना आपके दिमाग को शीतल करता है
दोस्तों शिवलिंग पर जल चढ़ाना आपके दिमाग को शीतल करने का कार्य करता है। यह आपके नगेटिव भावों को नष्ट कर देता है।इसी प्रकार की एक कथा आती है कि जब शिव ने विषपान किया तो उनका मस्तक गर्म हो गया था तो उसके बाद देवताओं ने उनके उपर जल डालकर उनको शीतल किया था। इस प्रकार से शिवलिंग पर जल डालना आपको और अधिक अच्छा बनाता है।
7.भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भी शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। आमतौर पर भगवान के भगत शिवमंदिर मे जाते हैं और उसके बाद वहां पर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं ताकि भोले नाथ प्रसन्न हो और उनको आशीर्वाद प्रदान करें ।
8.शिवलिंग पर जल चढ़ाने के फायदे आपके मन को शांत करता है
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यदि आप शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं तो यह आपके मन को भी शांत करने का कार्य करता है।जल चढ़ाने के लिए आपको रोजाना मंदिर के अंदर जाना होता है। और मंदिर के अंदर जाने से मन को शांति मिलती है। कुछ लोगों के मन मे बड़ी उथल पुथल मची होती है। मन को शांत और एकाग्र करने के लिए शिवलिंग के उपर जल चढ़ाना बहुत ही उपयोगी होता है।आप 30 दिन तक लगातार शिवलिंग पर जल चढ़ाएं । ऐसा करने से आपके मन की एकाग्रता मे बढ़ोतरी होगी ।
9.मलिनता को दूर करता है शिवलिंग पर जल चढ़ाना
यदि आप रोजाना शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए जाते हो तो आपका मन ही शांत नहीं होता है वरन विचारों की मलिनता भी दूर होती है । मन के अंदर जो खराब चीजें मौजूद होती हैं वे धीरे धीरे करके नष्ट होने लग जाती हैं और उसके स्थान पर अच्छे और पवित्र विचार आने लग जाते हैं।
यदि आप चाहते हैं कि आपके विचारों की गदंगी दूर हो जाए तो शिवलिंग पर रोजाना एक लौटा जल सुबह सुबह चढ़ाएं ।
10.भक्तिभाव को पैदा करता है
दोस्तों शिवलिंग पर जल चढ़ाना भक्तिभाव को पैदा करता है। यदि आप मंदिर वैगरह के अंदर जाते हैं तो आपके अंदर भक्तिपैदा होगी । और एक भक्त या जो धार्मिक ही एक अच्छा इंसान बन सकता है। भक्ति योग शिव के बताए 114 तरीकों मे से एक है जिसकी मदद से आप अपने परम तक पहुंच सकते हैं।यदि आप अपने परम तक पहुंचना चाहते हैं तो फिर शिवलिंग पर जल चढ़ाने और दूसरे पूजा के तरीकों से ही तो आपके अंदर भक्ति भाव बनता है।
11.जीवन के अंदर परेशानी को खत्म करता है शिवलिंग पर जल चढ़ाना
दोस्तों यदि आपके जीवन के अंदर परेशानी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। नई नई परेशानी आ रही हैं तो आपको रोजाना एक लौटा जल शिवलिंग के उपर चढ़ाना चाहिए । ऐसा करने से जीवन के अंदर आने वाली सभी परेशानियों का अंत होता है और जीवन के अंदर शांति आती है और खुशियों का आगमन होता है।
शिवलिंग पर जल कैसे चढ़ाया जाता है ? shivling par jal kaise chadhaye
शिवलिंग पर यदि आप जल चढ़ाते हैं तो आपको इसकी पूरी विधि का पता होना चाहिए ।जल चढ़ाने के लिए आपके पास एक तांबे के पात्र के अंदर जल होना चाहिए और उस जल मे गंगाजल भी मिला होना चाहिए ।
अब जिस जगह पर आप जाते हैं उस जगह पर शिवलिंग के चारो तरफ कुछ देवता विराजमान होते हैं।सबसे पहले आपको गणेश जी पर जल चढ़ाएं । उसके बाद आपको माता पार्वती पर जल चढ़ाए ।उसके बाद कार्तिकय पर आपको जल चढ़ाना होगा । फिर आपको ननदी का स्नान करवाना होगा । फिर आपको विरभद्र देवता का स्नान करवाना है। जो शिवलिंग के आगे विराजमान होते हैं। फिर आपको सर्प देवता पर जल चढ़ाना होगा ।फिर आपको शंकर भगवान के उपर जल चढ़ाना होगा ।और यदि आप दूध को चढ़ाना चाहते हैं तो इसी क्रम मे आपको शिवलिंग पर दूध चढ़ा देना चाहिए ।
भगवान शिव का नीलकंठ नाम और जलाभिषेक
दुर्वासा ऋषि एक बार अपने शिष्यों के साथ शिवजी के दर्शन करने के लिए जा रहे थे तो मार्ग मे उनको देवराज इंद्र मिले । इंद्र ने उनको प्रणाम किया और विष्णु को पारिजात पुष्प प्रदान किया था। अपने पद के नशे मे चुर इंद्र ने इस पुष्प का स्पर्श अपने ऐरावत हाथी के मस्तष्क पर करवा दिया । जिससे वह हाथी विष्णु के समान तेजस्वी हो गया और उसने इंद्र का परित्याग कर दिया फिर पुष्प को कुचलते हुए वन की तरफ भाग गया ।दुर्वासा ऋषि ने जब भगवान विष्णु के पुष्प का तिरस्कार होते हुए देखा तो इंद्र को वैभव लक्ष्मी से हीन होने का शाप दे डाला ।
दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण लक्ष्मी उसी वक्त स्वर्ग को छोड़कर चली गई और फिर इंद्र आदि देवता निर्बल और धनहीन हो गए । जब यह बात असुरों को पता चली तो फिर उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण किया और उसपर अपना अधिकार कर लिया।
उसके बाद इंद्र ने बृहस्पृति और अन्य देवताओं के साथ ब्रह्माजी की सभा के अंदर उपस्थित हुए और फिर ब्रह्माजी बोले … भगवान विष्णु के फूल का अपमान करने की वजह से लक्ष्मी रूष्ट हो गई है। उनको दुबारा प्राप्त करने के लिए तुमको नारायण की कृपा द्रष्टि प्राप्त करनी होगी ।
और उसके बाद तुम को तुम्हारा खोया हुआ वैभव दुबारा मिल जाएगा और उसके बाद ब्रह्माजी इंद्र को लेकर विष्णु जी के पास गए उसके बाद सब देवता बोले ……..हे भगवान आपके चरणों के अंदर बारम्बर नमस्कार हमारे गलत कदम से लक्ष्मी हमसे रूठ गई है।और देवताओं ने भी स्वर्ग पर अधिकार कर लिया है। हम सब आपकी शरण मे हैं।आप हमारी रक्षा करें ।
भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी देवता दानवों से दोस्ती करों और उसके बाद समुद्र मंथन करों ।और समुद्र के अंदर छिपे हुए हीरे जवाहरातों की मदद से आप फिर से वैभवशाली हो जाएंगे।
उसके बाद इंद्र और दूसरे देवता दानवों के पास संधि के प्रस्ताव को लेकर गए और उनको अमृत के बारे मे बताकर समुद्र मंथन के लिए तैयार कर लिया ।
वासुकि नाग को रस्सी के रूप मे बनाया और उसके बाद बड़े ही जोश से देवता और दानव समुद्र मंथन करने लगे । सहसा समुद्र मंथन से कालाकूट नामक एक विष निकला ।इस विष की अग्नि से समस्त दिशाएं जलने लगी और चारो ओर हाहाकार सा मच गया ।
दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे।देवताओं की विनती के बाद भगवान शिव विष को पीने के लिए तैयार हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु का स्मरण किया फिर विष को पी गए । उसके बाद विष भगवान शिव के कंठ मे ही विष रूक गया और उसके बाद विष के प्रभाव से उनका कंठ निला हो गया । जिसके बाद वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
जब भगवान विष का पान कर रहे थे ।तब विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गई जिनको सांप और बिच्छू आदि जीवों ने ग्रहण कर लिया जिसकी वजह से वे विषैले हो गए । विष का प्रभाव समाप्त होने की वजह से सभी देवता शिव की जयजयकार करने लगे ।
इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि जब शिव ने विष का सेवन किया था तो उनकी चेतना को वापस लाने के लिए उनके सिर पर जड़ी बूटी से युक्त जल को गिराया गया था। उसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परम्परा बन गई ।
जब शिव ने गंगा को धारण किया
भागीरथ एक प्रतापी राजा था। उन्होंने अपने पूर्वजों के जन्म मरण के दोषों को दूर करने के लिए गंगा को धरती पर लाने की ठानी थी।उन्होंने गंगा की तपस्या की और गंगा भागिरथ की तपस्या से प्रसन्न हुई तो धरती पर आने के लिए तैयार हो गई । उसके बाद गंगा ने भारिगथ से कहा कि यदि वह स्वर्ग से सीधे धरती पर गिरेगी तो धरती उसका वेग सहन नहीं कर पाएगी और वह रसताल मे चली जाएगी ।
उसके बाद भागिरथ ने भगवान शिव की उपासना शूरू करदी और जब भगिरथ की उपासना से भगवान शिव प्रसन्न हुए तो शिव ने भागिरथ को वर मांगने के लिए बोला तो भागिरथ ने वर मांग लिया । उसके बाद जैसे ही गंगा धरती पर उतरी शिव ने उसको अपनी जटाओं के अंदर बांध लिया । उसके बाद गंगा झटपटाने लगी ।फिर शिव ने एक छोटी सी धारा धरती पर छोड़दी इस प्रकार से गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ था।
शिवजी की अनुपम लीला
बह्रमाजी बोले ….हे नारद तुमको अपने सामने देखकर मैना देवी बहुत प्रसन्न हुई और तुमको प्रणाम करके यह बोली की मैं यह देखना चाहती हूं कि मेरी बेटी पार्वती ने घोर तप करके जिस शिव को पति के रूप मे प्राप्त करना चाहा है वे कैसे दिखते हैं । मैं उनके रूप को देखना चाहती हूं ।यह कहकर देवी मैना चंद्रशाला की ओर चल पड़ी और उसके बाद भगवान शिव ने हमें और विष्णुजी को गिरिराज पहुंचने का आदेश दिया ।और वे अपने गणों के पीछे पीछे आ रहे थे ।उसके बाद भगवान विष्णु ने शिव की आज्ञा मानकर शैलराज के घर की ओर प्रस्थान किया और दैवी मैना अपने भवन के उंचे स्थान पर तुम्हारे साथ खड़ी हो गई थी।
उसके बाद देवताओं की सजी सजाई सैना को देखकर देवी मैना बहुत अधिक प्रसन्न हुई ।बारात के अंदर सबसे आगे सुंदर वस्त्र पहने गण सजे सजाए नाचते गाते आ रहे थे ।और अपने हाथों के अंदर ध्वज फताका लहरा रहे थे साथी स्वर्ग की सुंदर अप्सराएं नाच रही थी।इनके पीछे वायु ,कुबेर ,चंद्रमा ,इंद्र ,इसान और सूर्य व यमराज भी आ रहे थे ।
और दैवी मैना तुमसे यह प्रश्न करती है कि क्या यह शिव हैं तो तुम कहते हो कि नहीं यह शिव नहीं हैं यह उनके शेवक हैं तो देवी यह सोच कर प्रसन्न हो जाती है कि जब इनके सेवक इतने सुंदर और वैभवशाली हैं तो स्वयं शिव कितने सुंदर और वैभवशाली होंगे।
उधर शिव तो सर्वेश्वर हैं वे देवी मैना के मन की बात को जान चुके थे और उन्होंने देवी मैना के अहंकार को नष्ट करने का निश्चिय किया ।उसके बाद तुम्हारे पास विष्णु पधारे वे श्याम वर्ण और चार भुजाधारी थे ,उनके नेत्र कमल के समान थे और वे गरूड पर विराज मान थे ।और देखने मे यह बहुत ही सुंदर लग रहे थे ।
देवी मैना के हर्ष की कोई सीमा नहीं रही ।उनको यही लग रहा था कि जरूर यही मेरी बेटी पार्वती के पति होंगे ।उसके बाद नारद जी मुस्कुराए और बोले ……देवी यह आपकी पुत्री पार्वती के होने वाले पति नहीं हैं वरन यह जगत के पालक विष्णु हैं यह शिवजी के अतिप्रिय हैं।और पार्वती के पति तो सर्वेश्वर हैं वे सम्पूर्ण ब्रह्रामांड के स्वामी हैं।वे ही परमात्मा हैं और विष्णु जी से भी बढ़कर हैं।
तुम्हारी बातें सुनने के बाद मैना सोचने लगी कि मेरी पुत्री भाग्यशाली है जिससे की सर्वशक्ति सम्पन्न वर मिला ।वे शिवजी को दामाद के रूप मे पाकर अपना भाग्योदय समझ रही थी।उसने इतने देवताओं के दर्शन भी किये और सबक आधिपति मेरी पुत्री का पति होगा तो इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या हो सकती है।
जब मैना अभिमान मे आकर यह सब सोच रही थी तभी शिव ने उनका अभिमान तोड़ने का निश्चिय किया और अपने गणों के साथ आगे बढ़े ।भूत प्रेत और पिशाच अत्यंत कुरूपी गणों की सेना आ रही थी।कई बवंडर के रूप मे चल रहे थे ,कुछ के सूंड लंबी थी किसी के होंठ नहीं थे । किसी के अनेक आंखें थे । किसी के सर ही नहीं नहीं था तो किसी के धड़ का पता नहीं चल रहा था। किसी के मुंह का पता नहीं चल रहा था तो किसी के सिर्फ मुंछे ही दिखाई दे रही थी।
कोई उल्टा लेटा था कोई लगड़ा चल रहा था। वे डमरू बजाते आगे बढ़ रहे थे ।किसी के अनेक कान तो किसी के अनेकों सिर भी थे ।उसके बाद नारद ने कहा देवी पहले आप ….शिव गणों को देखलें उसके बाद महादेव के दर्शन करना ।भूतप्रेतों की यह सेना देखकर देवी कांपने लगी और इसी सेना के बीच 5 मुख वाले ,दस नेत्र वाले ,दस भुजाओं वाले ,शरीर पर भस्म लगाए ,गले मे नर मुंडों की माला पहने ,बाघ की खाल ओढ़े ,धनुष उठाये और एक बूढे बेल पर सवार थे और सिर मे गहरे लंबे बाल थे आंखे पूरी लाल थी।
उसके बाद तुमने मैना को बताया कि यह शिव हैं तो यह शब्द सुनने के बाद मैंना काफी व्याकुल हो गई और धड़ाम से धरती पर गिर गई।और उसके मुख से यही शब्द निकले की मैं सबकी बात मानकर बरबाद हो गई और सबने मेरे साथ छल किया है। उसके बाद दासी दासियां भाग कर आई और उनको होश मे लाने का प्रयास करने लगी ।
जब हिमालय पत्नी मैना को होश आया तो वह बड़ी दुखी दिखाई दे रही थी और रोये जा रही थी।वह अपने पुत्र पुत्री और देवर्षि नारद को कोस रही थी।उसके बाद देवी ने कहा ……हे नारदजी आपने ही हमारे घर आकर कहा था कि तुम्हारी पुत्री शिव का वरण करेगी । उसके बाद मैंने उसको वन मे तपस्या करने के लिए भेज दिया था और उसने ऐसी तपस्या की थी जिसको बड़े बड़े मुनि भी नहीं कर पाते हैं लेकिन उसकी इस तपस्या का ऐसा फल मिला जो देखने मात्र से भी अधिक दुख देने वाला है।
हे भगवान मैं कहां जाउं और मेरे दुख को अब कोई भी दूर करने वाला नहीं है।अब नहीं दिखाई दे रहे हैं वे धूर्त
ऋषि और उनकी पत्नी यदि मुझे अब दिख जाएं तो मैं उनकी दाड़ी नोच लूं ।अब मेरा सब कुछ लुट गया और मैं बरबाद हो गई।
उसके बाद देवी मैंना अपनी पुत्री पार्वती से बोली …….तूने यह क्या कर डाला तू हमारे से कौनसे जन्म का बदला ले रही है।वह पार्वती को खरीखोटी सुनाने लगी और बोली मूर्ख तूने सोने के बदले कांच खरीद लिये हैं।सुगंधित चंदन को छोड़कर अपने शरीर पर किचड़ का लेप कर लिया है।चावल के भूस को रखकर चावल को फेंक रही है।बेटी तूने हमारे कुल के नाम को मिट्टी के अंदर मिला दिया है।
तू घर के अंदर मंगलमयी विभूति को छोड़कर घर के अंदर चिता की अमंगलमय राख को लाना चाहती है।पार्वती तूने बड़ी मूर्खता करदी सूर्य ,चंद्रमा और विष्णु इन परम ऐश्वर्य देवताओं को छोड़कर नारद की बातों मे आकर शिव से शादी करना चाहती है?
और शिव के लिए वनों के अंदर खाक छानती रही हाय रे तरी बुद्धि और तेरी सहायता करने वाले प्रत्येक मनुष्य को अधिक्कार है।इसके अलावा सदबिुद्धि देने वाले सप्तऋषि को भी मैं धिक्कारती हूं जिन्होंने मुझे गलत रस्ते पर खड़ा कर दिया है।
इन लोगों ने तो तेरा घर जलाने का पूरा प्रबंध कर दिया है पार्वती मैंने तेरे को कितना समझाया था।इन लोगों ने तो तेरे कुल का विनाश करने का पूरा प्रयत्न ही कर लिया है। मेरा जी करता है कि पार्वती तेरे टुकड़े टुकड़े करदूं और उसके बाद अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूं ।यह कहकर देवी मैंना वहीं पर गिर गई और उसके बाद उनको फिर होश मे लाया गया और नारदजी उनको समझाने के उदेश्य से उनके पास गए और बोले कि ……देवी आप व्यर्थमे चिंता कर रही हैं शिवजी बहुत ही सुंदर हैं और आपने अभी तक उनका असली रूप देखा ही कहां है ? आप क्रोध को त्यागदे और विवाह का आरम्भ करें ।
उसके बाद देवी मैना भड़क गई और बोली …दुष्ट नारद तू तो नीचों का भी नीच है इसी वक्त यहां से चला जा मैं तेरी एक बात भी नहीं सुनना चाहती हूं ।
मैना की यह बात सुनकर इंद्र और अन्य देवता भी मैना के पास आकर बोले ………हे पितरों की कन्या भगवान शिव तो समस्त चराचर जगत के स्वामी हैं।वे सबको सुख देने वाले और फल देने वाले हैं।आपकी पुत्री पार्वती ने कठिन तप करके शिव को पति के रूप मे प्राप्त किया है। अपने वचन के अनुसार ही वे पार्वती से विवाह करने के लिए आए हैं।
उसके बाद मैना रोती हुई बोली ……..शिव तो बहुत ही भयंकर हैं मैं अपने फूलों जैसी पुत्री को शिव को कैसे सौंप सकती हूं ।क्यों आप सब मेरे पीछे पड़े हुए हैं।क्या आप मेरी पुत्री को भूतप्रेतों के हवाले करना चाहते हैं।इस प्रकार से देवी मैना सब देवताओं को फटकारने लगी ।
जब सप्तऋषियों ने मैना से इस प्रकार के वचन सुने तो वे भी उसे सझाने के लिए आए और बोले ……हे पितरों की कन्या मैना हम तो तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध करने के लिए यहां पर आये हैं। भगवान शिव का दर्शन समस्त पापों का नाश करने वाला है। और यहां पर तो वे स्वयं आकर पधारे हैं। लेकिन बात को सुनकर भी देवी मैना को कोई संतोष नहीं हुआ वह बोली ……..मैं पार्वती के टुकड़े टुकड़े करके फेंक दूंगी लेकिन शिव को नहीं सौंपूंगी ।मैना के इस प्रकार के व्यवहार की वजह से चारो ओर हाहाकर मच गया । जब मैना के इस प्रकार के व्यवहार के बारे मे शैलराज महाराज को पता चला तो वे आए और मैना को बोले ……हे प्रिय तुम इतनी क्रोधित क्यों हो रही हो देखो तुम्हारे घर कौन कौन से महात्मा आएं हैं।भगवान शिव के भयानक रूप को देखकर तुम काफी भयभीत हो चुकी हो ।अब भयकरना छोड़कर विवाह की तैयारियां करो ।तुम जानती ही हो कि भगवान शिव अनेक लिलाएं करते हैं। यह भी उनकी लिला है।शांत हो जाओ प्रिय और भगवान के सुंदर रूप का दर्शन करो ।
शैलराज महाराज की बात सुनकर पार्वती और अधिक क्रोधित हो गई और बोली ……….हे स्वामी आप ऐसा करिये की अपनी पुत्री के गले के अंदर रस्सी डालकर उसे पार्वत के नीचे फेंक दे या फिर आप उसे समुद्र के अंदर डूबों दें मैं आपको कुछ नहीं कहूंगी लेकिन यदि आपने उसका विवाह शिव से कराने की कोशिश की तो मैं अपने प्राण को त्याग दूंगी ।
अपनी माता से इस प्रकार के वचन सुनकर पार्वती उनके पास गई और बोली ……..हे माता आप तो ज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं।आप तो सदा ही धर्म का अनुसरण करने वाली हैं भला आज आपको क्या हो गया कि आप धर्म पथ को भूल रही हैं।महादेव तो देवो के देव हैं और वे तो निर्गुण और निराकार हैं वे तो सर्वेसर्वा हैं और वे तो सृष्टि की उत्पति के आधार हैं।
वे सब कर्ताधर्ता हैं ।हे माता आपको तो गर्व होना चाहिए कि आपकी पुत्री का हाथ मांगने के लिए देवता भी याचक कि भांति आपके द्धार पर खड़ें हैं। हे माता आपको बेकार की बातों का त्याग करना चाहिए और मुझे शिव को सौंप कर अपने कल्याण का र्मा प्रसस्त करना चाहिए । मैंन तन मन से शिव को अपना पति मान चुकी हूं ।
उनको पति मानकर ही मैंने इतने वर्ष बिताएं हैं। भला मैं अब कैसे पीछे हट जाउं ।
अपनी पुत्री के यह वचन सुनकर मैना और अधिक क्रोधित हो गई और बोली …..उल्टे अपनी पुत्री को डांटने लगी । वहां पर उपस्थित सभी सिद्धों ने उनको समझाने का प्रयास किया लेकिन कोई भी तरीका काम नहीं आया । उसके बाद भगवान विष्णु वहा पर आये और बोलें …….हे पितरों की पुत्री मैना आप धर्म की आधारशिला हैं फिर धर्म का कैसे त्याग कर सकती हैं।भला सभी देवता आपसे असत्य वचन क्यों कहेंगे भगवान शिव निर्गुण और सगुण दोनों ही हैं। जितने वे कुरूप दिख रहे हैं उतने ही वे सुंदर भी हैं।मेरे और ब्राहा्रजी की उत्पति उन्हीं से ही तो हुई है।
शिव ने लोकों का हित करने के लिए ही तो रूद्रअवतार लिया है।उनकी लीला को तो हम भी नहीं समझ सकते हैं।इस संसार के अंदर जो भी विध्यमान है उन्हीं का स्वरूप है । और वे पता नहीं कि आपके सामने इतने कुरूप बनकर क्यों आ रहे हैं। हे देवी आप समस्त दुख को भुलकर शिव के चरणों मे प्रणाम करें । आपकी समस्त पीड़ा मिट जाएगी और आपको परम सुख की प्राप्ति होगी ।
उसके बाद देवी मैना ने कहा ……मैं जानती हूं कि महादेव सर्वेश्वर हैं और वे कण कण के अंदर विराजते हैं मैं उनको अपनी पुत्री सौंप सकती हूं लेकिन यदि वे अपने कुरूप को छोड़कर एक सुंदर रूप को धारण करलें तो ?
उसके बाद नारदजी को भगवान शिव के सामने भेज गया । उन्होने भगवान शिव की स्तुति की और उनको संतुष्ट किया । उसके बाद भगवान शिव ने दिव्य रूप को धारण किया ।इस समय भगवान शिव कामदेव से भी अधिक सुंदर लग रहे थे ।उसके बाद नारदजी दैवी मैना के पास आए और बोले ……..देवी आप स्वयं चलकर शिवजी के दर्शन कर लिजिए ।
यह समाचार पाकर मैना की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही और वह नारदजी के साथ शिवजी के दर्शन करने पहुंची ।वहां पहुंचकर देवी मैना ने शिवजी के परम आनन्दमय रूप के दर्शन किये और शिवजी का मुख करोड़ों सूर्य के समान चमकदार था।भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा मे थे और उनके पीछे करोड़ो सिद्ध संत उपस्थित थे।
इस प्रकार से समस्त देवता विवाह को देखने के लिए आए थे । अप्सराएं और गंधर्व शिव के यश का गान कर रही थी।शिव की सुंदरता को देखकर देवी मैंना हैरान रह गई और बोली …..मेरी पुत्री धान्य है जो घोर तपस्या करके आपको प्राप्त किया ।मेरा सौभाग्य है कि आज आप हमारे घर पधारे हैं।मैं अक्ष्मय अपराध कर बैठी हूं । मैंने जो आपकी निंदा की थी। हे भगवान शिव आप प्रसन्न हो जाएं और मेरी भूल चूक को माफ करें ।
इस प्रकार से भगवान शिव की स्तुति करती हुई मैना काफी लज्जीत हो गई। अनेक स्ति्रयां भगवान शिव के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ी । आटा पीसने वाली आटा छोड़कर आ गई ,पति के पास बैठी रहने वाली पति को छोड़कर आ गई तो कोई अपने बच्चे को छोड़कर उनके दर्शन करने के लिए आ गई।इस प्रकार से सभी पुरूष और महिलाएं शिवजी के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ी ।अब दैवी मैना मन ही मन यह सोच रही थी कि हिमालय नगरी के अंदर रहने वाले सभी नर और नारी शिवजी के दिव्य रूप का दर्शन करने मे सफल हो गए हैं।शिव स्वरूप का दर्शन करने के मात्र से ही समस्त पापों का नाश हो जाता है।
इस प्रकार से शिव की लीला से मैना का घमंड टूट गया और वह अपनी पुत्री का शिव से विवाह करवाने के लिए राजी हो गई।
आपने काफी बढ़िया जानकारी दी है
mene mere sapne mein shivling ko dekha. Muje Shivling ke darshan hue. Iska kya matlab hota hai ?