इस लेख के अंदर हम बात करेंगे time zone क्या होता है , रूस मे कितने टाइम जोन हैं ? सबसे ज्यादा टाइम जोन वाले देश के बारे मे ।दोस्तों आप यदि मोबाइल या कम्प्यूटर वैगरह का प्रयोग करते होंगे तो आपको पता ही होगा कि टाइम जोन क्या होता है? क्योंकि आपके सामने कई बार टाइम जोन आया होगा । जिसकी मदद से आप टाइम सैट किये होगे । सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम भले ही टाइम जोन का यूज कर चुके हों । लेकिन अब भी बहुत से लोग हैं जो टाइम जोन के बारे मे विस्तार से या नहीं के बराबर जानते हैं। हालांकि टाइम जोन भी एक तरह का सिस्टम प्लान है। ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) की स्थापना 1675 में हुई थी, । अब पूरी दुनिया के अंदर इसका प्रयोग किया जाता है।आपको बतादें कि टाइम जोन ग्लोब का क्षेत्र होता है जोकि जो , वाणिज्यिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए एक समान मानक का पालन करता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि टाइम जोन को इस लिये बनाया गया है ताकि यह पता चल सके कि किस जगह पर अब क्या हो रहा है? मतलब दिन हो रहा है या रात ? इसके अलावा इसका प्रयोग अच्छे से व्यापार क्षेत्रों के अंदर किया जा सकता है।
पहले पहले जब घड़ियों का अच्छे से विकास भी नहीं हुआ होगा । उस समय चिन्हित किया जाता था । जोकि आम बात होती थी।एक सूंडियल पर समय हर स्थान के लिए अलग अलग होता था।19 वीं शताब्दी के आस पास जब घड़ियों का अच्छे से विकास हो गया तो फिर प्रत्येक शहर ने कुछ स्थानीय माध्य सौर समय का यूज करना शूरू कर दिया था।धरती के अंडाकार आकार की वजह से माध्य सौर समय के अंदर औसत 15 मिनट का अंतर माना जाता था।और एक साल बाद यह शून्य हो जाता था।
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रेलवे का समय
दोस्तों जब बात समय की आती है तो उसे हम दो तरीकों से यूज मे लेते हैं। एक तो हम 24 घंटे के फार्मेट के अंदर इसका यूज करते हैं। और दूसरा जब हम इसका 12 घंटे के फार्मेट के अंदर यूज मे लेते हैं।दोस्तों आपको बतादें कि यह टाइम जोन वाला सिस्टम पहले आ गया था। लेकिन उत्तरी अमेरिका में 1883 के अंदर इसका यूज रेलवे सिस्टम के अंदर करना चाहा तो यह काफी असुविधा जनक हो गया ।
ब्रिस्टल ग्रीनविच (पूर्वी लंदन) से लगभग 2.5 डिग्री पश्चिम में है तो यदि ब्रिस्टल मे दोपहर 12 बजे होता है तो पूर्वी लंदन के अंदर यह 10 मिनट पहले ही हो जाता है।ऐसी स्थिति के अंदर सही समय का अनुमान लगाने के लिए एक बड़े आंकडे का प्रयोग किया जाने लगा था। जैसे कि ट्रेन ड्राइवर जब एक स्थान से चलता था तो उसे अपने पास समय सारणी को रखना होता था। और यह सब सुविधा जनक भी नहीं था।
मानक समय का 1 दिसंबर 1847 को, ग्रेट ब्रिटेन में रेलवे कंपनियों द्वारा पोर्टेबल क्रोनोमीटर द्वारा GMT का प्रयोग किया गया था।
1840 में ग्रेट वेस्टर्न रेलवे के समय के नाम से यह समय जाना जाने लगा था।वैसे देखा जाए तो संचार के साधनों की वजह से टाइम जोन वाला समय बहुत अधिक असुविधा जनक हो गया था। क्योंकि कहीं पर कुछ ही टाइम दिखाता था तो कहीं पर कुछ और टाइम दिखाता था।
2 नवंबर, 1868 को, न्यूजीलैंड के अंदर एक व्यक्ति ने पूरे कलौनी के लिए एक मानक समय बनाया । ऐसा करने वाला वह पहला व्यक्ति था। इस समय को मीन टाइम के नाम से जानते हैं।ग्रीनविच के 172 ° 30 ′ पूर्व के देशांतर पर आधारित था, जो GMT से 11 घंटे 30 मिनट आगे था।
19 वीं शताब्दी के अंदर अमेरिका रेल मार्ग के अंदर कुछ गड़बड़ी हो गई।प्रत्येक रेलमार्ग ने अपने मानक समय का यूज करते हुए सहायता भेजी और हर जंक्सन पर एक घड़ी थी जोकि अलग अलग समय को दिखा रही थी। जो काफी बड़ी समस्या मे से एक थी।
डाउड ने 1863 के बारे में अमेरिकी रेलमार्गों के लिए एक घंटे के मानक समय क्षेत्रों की एक प्रणाली का प्रस्ताव रखा था । लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह थी की उसके प्रस्तावों को अमेरिका के अधिकारियों ने स्वीकार नहीं किया ।वे इसके बजाय ट्रैवलर्स ऑफिशियल रेलवे गाइड के संपादक विलियम एफ के द्वारा प्रस्तावित संस्करण का यूज करने लगे ।
टाइम जोन क्या है ? और यह कैसे बनाया गया है ?
दोस्तों टाइम जोन को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया के नक्से को 24 बराबर भागों के अंदर बांट दिया , इसके अंदर कुल 15 अंश के अंतर थे ।और 0 अंश वाली रेखा को इंग्लैंड के अंदर स्थिति वैधशाला से माना जाता है। हालांकि यहां से वैसे कोई रेखा नहीं गुजरती है। वरन यह सब समझने के लिए एक बिंदु मानना पड़ता है। आपको बतादें कि ग्रीनविच रेखा के बाईं और आनें वाले देश का समय पीछे होता है। और दाहिनी ओर आने वाला समय आगे होता है। जिसको UTC + 5:30 जैसा होता है।
अब बात करें भारत की तो भारत के अंदर यह रेखा इलाहाबाद से होकर गुजरती है। और भारत ग्रीनविच रेखा के दाहिनी ओर पड़ता है। इस वजह से भारत का समय आगे रहता है। दाहिनी और पड़ने वाले कुछ देश निम्न हैं।South Australia,Islands,New Zealand,जबकि Canada इसके दाहिनी ओर पड़ता है।
टाइम जोन कैसे काम करता है ?
दोस्तों आपको पता है कि धरती घूमती है। और घरती के घूमने की वजह से दिन और रात होते हैं। आप कुछ इस तरह से समझ सकते हैं। आप एक मोमबती लें और उसके चारों ओर एक गेंद रखदें । आप देखेंगे कि गेंद के एक हिस्से पर मोमबती का प्रकाश पड़ता है। और दूसरे हिस्से पर अंधेरा रहता है।जिस हिस्से पर मोमबती का प्रकाश रहता है आप उसे दिन कह सकते हैं। मतलब वहां पर दिन का समय चल रहा होता है। और दूसरे हिस्से पर रात हो चुकी होती है। अब यदि समय को देखें तो गेंद के आग वाले हिस्से मे शाम होने जा रही है। जबकि गेंद के अंधेरे वाले हिस्से मे दिन उग रहा है। मतलब गेंद के हर भाग मे समय अलग अलग हो जाता है। बस इसी लिए इस समय चक्र को समझने के लिए वैज्ञानिकों को टाइम जोन की आवश्यकता महसूस हुई।
घड़ी के आविष्कार से जुड़े कुछ तथ्य
- भारत के पौराणिक ग्रंथों के अंदर समय के बारे मे लिखा मिलता है। प्राचीन काल के अंदर लोग समय को प्रहर मानक के आधार पर नापते थे । और बहुत से लोग तो सूर्य की स्थिति के आधार पर समय का पता लगाते थे ।
- 15 वीं शताब्दी के आस पास ही यूरोप के अंदर घड़ी बन चुकी थी। और स्वीटजरलैंड के लोग भी स्प्रींग वाली घड़ी बनाने की जानकारी रखते थे ।1850 ई के बाद यूरोप के अंदर तेजी से घड़ियां बनने का काम चालू हो चुका था।
- रेत और पानी की घड़ी के बारे मे आप जानते ही होंगे । आपने इनको कई बार फिल्मों के अंदर भी देखा होगा । मध्यकाल के लोग कांच के उपकरण बनाने मे कुशल थे । उन्होंने ही रेंत की घड़ी और पानी की घड़ी का आविष्कार किया था।रेत की घड़ी के अंदर दो डंमरू आकार के कांच होते थे । जिसके अंदर रेत को भर दिया जाता था और फिर उसे उल्टा रख देते है। और इसी के आधार पर समय का अनुमान लगाया जाता था।
- अब दुनिया के अंदर सबसे अच्छी खड़ी की बात करें तो वह ऍटमिक घड़ी होती है।उपग्रह , सैटेलाइट और रेडियो सिग्नल भी इसी घड़ी के अनुसार काम करते हैं।
भारत मे कितने टाइम जोन हैं
- भारतिय मानक समय को सबसे पहले 1802 ई के अंदर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने मद्रास के अंदर निर्धारित किया था। जिसको बाद मे सरकार ने भी स्वीकार कर लिया था।इसके अलावा सन 1955 तक मुम्बई और कोलकता ने अपने स्थानिय समय को बनाए रखा था। चीन और भारत से जंग के दौरान डेलाइट सेविंग टाइम का यूज किया गया ।
- यदि हम अंग्रेजी शासन काल की बात करें तो अंग्रेजों ने भारत को 3 टाइम जोन के अंदर विभाजित कर रखा था। जिसके अंदर कलकता , बागान और बांबे । आपको बतादें कि देश के आजाद होने के बाद सब कुछ बदल कर एक ही टाइम जोन कर दिया गया।
- वैसे देखा जाए तो आजादी से लेकर अब तक भारत के अंदर सिर्फ एक ही टाइम जोन है। जबकि दूसरे देशों की बात करें तो वहां पर कई सारे टाइम जोन हैं। जो वहां की लोगों की सुविधा के लिए बनाए गए हैं।
भारत के अंदर दो टाइम जोन बनाने की मांग
दोस्तों बहुत से पूर्वात्तर राज्य ऐसे हैं। जोकि दो अलग अलग टाइम जोन बनाने की मांग करते रहे हैं।यहां के लोगों को कहना है कि घड़ी की सूर्य को यदि आधे घंटे पहले कर दिया जाए तो लाखों की बिजली को बचाया जा सकता है।आपको बतादें कि इन जगहों पर टाइम जोन सही नहीं होने की वजह से लगभग 94 हजार करोड़ रूपये का नुकसान हो जाता है। वो भी महज एक साल के अंदर ।
वैसे देखा जाए तो भारत एक भौगोलिक रूप से विशाल देस है। और यहां के पूर्वोत्तर राज्य के सांसदों ने कई बार इस बात को प्रमुख्ता से उठाया है कि उनके राज्य के अंदर टाइम जोन सही होना चाहिए । जिस तरीके से अमेरिका के अंदर डेलाइट सेविंग के लिए कई टाइम जोन का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अंदर वे अपनी घड़ी को एक घंटे पीछे या आगे कर लेते हैं। जिससे उर्जा की बचत होती है।
भारत के पूर्वी और पश्चिम राज्यों के टाइम के अंदर 2 घंटे का अंतर होता है। यदि देश के अंदर दो अलग अलग टाइम जोन होते हैं तो इसका फायदा यह है कि पूर्वी भागों के अंदर सूर्य जल्दी उदय होता है तो वे जल्दी काम पर लग जाते हैं। जबकि पश्चिम भागों के अंदर बाद मे उदय होने से वे बाद मे काम पर लगते हैं।लेकिन अब जब एक ही टाइम जोन है तो सबको एक ही समय पर काम पर लगना पड़ता है। इसी वजह से जिन राज्यों के अंदर सूर्य बाद मे उदय होता है उनके लिए डेलाइट सेविंग की समस्या रहती है।
वर्ष 2002 के अंदर इस समस्या का हल निकालने के लिए केंद्रिय विज्ञान और प्रौदयोगिकी मंत्रालय के द्वारा एक समीति का गठन किया गया था।इस समीति ने अलग अलग टाइम जोन स्थापित करने के विचार को खारिज करते हुए निष्कर्ष निकाला कि भूम्ध्यरेखा के ईलाकों व ध्रुवी ईलाकों के पास स्थिति राज्यों के टाइम के अंदर थोड़ा ही अंतर होता है। यदि अलग अलग टाइम जोन लाया जाता है। तो कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।इसके अलावा यह भी सुझाव दिया गया की देश के समय को मात्र आधे घंटे आगे करने पर अधिकतर समस्याओं का समाधान हो सकता है। और इससे डेलाइट व बिजली की अच्छी बचत हो सकती है।
वैसे एक दूसरे रिसर्च इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज ने किया था। जिसके अंदर यह कहा गया कि यदि भारत के अंदर दो अलग अलग टाइम जोन होते हैं तो यह न केवल उत्पादकता को बढ़ा सकता है। वरन इससे उर्जा की भी अच्छी बचत होगी ।रिसर्च कर्ताओं ने यह भी बताया की सर्दियों के अंदर उत्पादकता कम हो जाती है। क्योंकि रात बड़ी होती है। और दिन छोटे होते हैं। इसके अलावा यदि भारत मे दो टाइम जोन को अपनाया जाता है तो 20 मिलियन किलोवाट उर्जा को बचाया जा सकता है।
आधे घंटे भारत के समय को आगे करने से क्या होगा ?
यदि भारत के समय को 30 मिनट आगे कर देते हैं तो यह ग्रीनविच समय 5:30 से बढ़कर 6 घंटे हो जाएगा । और इतना ही समय बंग्लादेश का है।यदि हम ऐसा करते हैं तो मेरिडियन 90 देशांतर से गुजरेगी । और यह जगह पड़ेगी असम के धुबरी शहर के अंदर ।इसके अलावा यदि भारत के अंदर दो अलग अलग टाइम जोन बना दिए जाते हैं तो काफी समस्याएं हो सकती हैं।क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति के अनुसार यह सही है। जबकि अमेरिका जैसे देशों की भौगोलिक स्थिति भारत से अलग है। और यही वजह है कि वहां पर अलग अलग टाइम जोन हैं।
सबसे ज्यादा टाइम जोन किस देश में है/टाइम जोन इन फ्रांस
सबसे ज्यादा टाइम जोन वाले देश की बात करें तो वह France हैं। यहां पर कुल 12 टाइम जोन होते हैं। जबकि उसके बाद दूसरे नंबर पर आता है अमेरिका । यहां पर कुल 11 टाइम जोन हैं। आइए जान लेते हैं। फ्रांस के टाइम जोन पर एक नजर
UTC−10:00 — most of French Polynesia
UTC−09:30 — Marquesas Islands
UTC−09:00 — Gambier Islands
UTC−08:00 — Clipperton Island
UTC−04:00— Guadeloupe
UTC−03:00— French Guiana,
UTC+01:00— Metropolitan France
UTC+03:00 — Mayotte
UTC+04:00 — Réunion
UTC+05:00 — Kerguelen Islands,
UTC+11:00 — New Caledonia
UTC+12:00 — Wallis and Futuna
रूस मे कितने टाइम जोन हैं ?
रूस के अंदर यदि हम टाइम जोन की बात करें तो यहां पर कुल 11 टाइम जोन हैं। और रूस में समय को मानकीकृत करने का पहला कदम 1880 के अंदर उठाया गया था। यहां पर मॉस्को मीन टाइम की शूरूआत हुई जोकि ग्रीनविच मीन टाइम से 2 घंटे, 30 मिनट और 17 सेकंड आगे था।
डे लाइट सेविंग टाइम क्या है
दोस्तों डे लाइट सेविंग टाइम का मकसद होता है कि दिन के उजाले का बेहतर तरीके से यूज करना । मान लिजिए आपकी कम्पनी 9 बजे लगती है। और रात को 9 बजे तक काम चलता है तो इस समय को थोड़ा आगे सरकादिया जाता है। यह सरकारों के द्वारा होता है।आज दुनिया के 40% देश डेलाइट सेविंग टाइम का यूज करते हैं। जिससे उर्जा की काफी बचत हो जाती है। और उत्पादन के अंदर भी बढ़ोतरी होंती है।
1908 में कनाडा में सबसे पहले डेलाइट सेविंग टाइम का यूज किया गया था।जर्मनी और ऑस्ट्रिया 1916 में डीएसटी का उपयोग करने वाले बने थे । 1 जुलाई, 1908 को पोर्ट आर्थर, ओंटारियो के लोगों ने अपनी घड़ी को एक घंटे आगे बढ़ाया था।23 अप्रैल, 1914 को सस्काचेवान में रेजिना ने डीएसटी लागू किया था।अब यदि बात करें की डेलाइट टाइम सेविंग का आविष्कार किसने किया तो आपको बतादें कि इसका आविष्कार न्यूजीलैंड के वैज्ञानिक जॉर्ज वर्नन हडसन और ब्रिटिश बिल्डर विलियम विलेट ने किया ।1895 में के अंदर एक रिसर्च पेपर के अंदर इस बारे मे विचार व्यक्त किया गया था। विलेट की डेलाइट सेविंग योजना के बारे मे ब्रिटिश सांसद रॉबर्ट पीयर्स ने 1908 के अंदर एक बिल पेश किया । जिसका पहला मसौदा सन 1909 के अंदर तैयार हुआ । लेकिन किसानों के विरोध के चलते इसको लागू नहीं किया जा सका ।
विल्लेट की मृत्यु 1915 में हुई, जिस 1साल यूनाइटेड किंगडम ने मई 1916 में डीएसटी का उपयोग करना शुरू कर दिया गया था। बेंजामिन फ्रैंकलिन को डेलाइट सेविंग टाइम का पिता माना जाता है।आपको बतादें कि हम लोग तो डेलाइट सेविंग टाइम का प्रयोग लगभग 100 साल से पहले से ही करते आ रहे हैं। लेकिन प्राचीन सभ्यताओं के अंदर इसका प्रयोग 1000 सालों से होता आ रहा है। इस बात के प्रमाण मिलते हैं।रोमन वॉटर क्लॉक ने समय को समायोजित कर रखा था।