गुरूड पुराण के अंदर यमलोक यात्रा और यमलोक मार्ग के अंदर आने वाली भंयकर पीड़ाओं का वर्णन मिलता है। भगवान नारायण बताते हैं कि यमलोक मार्ग अत्यंत दुखदाई है। वहां पर कोई पेड़ नहीं है। तेज धूप है। आत्मा बीच मे कहीं पर आराम नहीं कर सकता ।न वहां पर कोई अन्न का दाना है। न वहां पर कोई पानी है। प्यास लगने पर पानी भी नहीं मिलता है। उस लोक के अंदर 12 सूर्य ऐसे तपते हैं। जैसे कि धरती प्रलयकाल के अंदर तपती है। वहां पर जीव गर्म हवा और ठंड से जीव पीड़ित रहता है। बीच बीच मे कहीं पर जीव को कुत्तों को खिलाया जाता है। कहीं पर सांपों से कटवाया जाता है। तो कहीं पर भूखे शेरों को खिला दिया जाता है।
उसके बाद एक वन आता है । जिसका विस्तार दो हजार योजन का है। उस वन के अंदर गीद कौआ उल्लूक और मंख्यिों से भरा हुआ है। उसके चारों ओर आग जलती रहती है। मच्छरों के काटने से जीव पेड़ की छांव के अंदर जाता है। तलावर की धार से भी तेज उस पेड़ कि पतियां शरीर को छिन्न भिन्न कर देती हैं।
कहीं पर कीलों पर चलाया जाता है। कहीं पर पर्वतों से नीचे गिराया जाता है। कहीं पर अंधकार के अंदर चलाया जाता है। कहीं जोंक से कटवाया जाता है। कहीं कीचड़ के अंदर चलया जाता है। कहीं जलती हुई बालू पर तो कहीं पर जलती आग के अंदर झोंक दिया जाता है। कहीं पर आग की बरशा कहीं पत्थर के टुकड़ों की बरसा कहीं पर घोर घूफाएं होती हैं कहीं कंदराएं हैं।कहीं कष्ट से चढ़ने योग्य शिलाएं हैं। कहीं पर पीप और रक्त से भरे कुंड हैं। यह सब देखने मात्र से भय देने वाले हैं।
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वैतरणी नदी
यह नदी देखने मात्र से भय देने वाली है। यह एक सौ योजन चौड़ी है। इस नदी के अंदर पीप और रक्त भरा हुआ है। और इसके किनारे हडियों से बने हुए हैं। इसमे पीप और रक्त का मलबा है। यह नदी काफी गहरी है इसके अंदर मांस खाने वाले अनके प्रकार के जानवर भी रहते हैं। पापियों के लिए इसको पार करना बहुत कठिन हो जाता है। जिस प्रकार से तेल आग की ज्वाला से खौलता है। उसी प्रकार से पापी जीव को देखकर उस नदी का जल भी खौलता है। उस नदी के चारों ओर तीखी चोंच वाले कीड़े रहते हैं। इस नदी के अंदर भाज्य घड़ियाल मांस भक्षक जीव रहते हैं। इस नदी के अंदर छोड़ा गया पापी बार बार पिता माता भाई को पुकारता है भूख लगने पर रूधिर और मांस ही खाने को मिलता है। जीव नदी के भंवरों मे पड़कर कभी पाताल लोक जाता है। फिर उपर आता है। इस प्रकार से सदैव गतिमान रहता है।
पापियों के लिए ही यह नदी बनाई गई है। वैतरणी नदी के आरपार भी दिखाई नहीं देता है। पापी इस नदी के अंदर विलाप करता हुआ जाता है।
यमदूत कैसे पकड़क कर ले जाते हैं आत्मा को
अलग अलग पापी को अलग अलग प्रकार से यमदूत यममार्ग के अंदर ले जाते हैं।किसी को फांसी पर लटकाकर तो किसी की नाक के अंदर डोरी डालकर किसी को कौवों की तरह लटकाकर । किसी के हाथ पैर बांध कर पटक कर ले जाते हैं।किसी को लौहे का भार लादकर यमलोक ले जाते हैं।
किसी को मारते हुए यमलोक ले जाते हैं। किसी के मुंह से खून गिरता है। पापी आत्मा यातनाओं को सहन करती हुई । अपने किये गए कर्मों के बारे मे सोचती है। अब उसे अफसोस भी होता है कि मनुष्य जीवन मिलने के बाद भी उसने अच्छे कर्म क्यों नहीं किये ? न कभी कथावाचन करवाया न कभी दान दिया । न कभी गौ को भोजन दिया । अब तो दुख भोगना ही पड़ेगा ।
जिस स्त्री ने पति व्रत धर्म का पालन नहीं किया । व्रत नहीं रखे । स्त्री ने पति की सेवा नहीं की । कभी धर्म कर्म नहीं किया । इस प्रकार जीव सोचता हुआ यमलोक की यात्रा करता रहता है।
सौम्य पूर नगर मे प्रवेश
सत्र दिन चलने के बाद जीव सौम्य पूर नामक नगर के अंदर पहुंचाता है। यहां पर बड़े बड़े प्रेत रहते हैं यहां सुंदर वट पेड़ है। एक नदी भी है जिसका नाम पुष्पभद्रा है।
यहां पर जीव यमदूतों के साथ निवास करता है। वह अपने पुत्र स्त्री मित्र आदी को याद करता है तो यमदूत उसे बोलते हैं कोई किसी के साथ नहीं आता जाता है। उसके बाद यमदूत बोलते हैं कि तूने कभी ऐसा प्रयत्न नहीं किया जिससे तेरी यम मार्ग से यात्रा ना हो । मतलब तूने कोई दान पुण्य नहीं किया है।
उसके बाद यमदूत उसे पूछते हैं कि क्या तूमने कभी दान धर्म किया है ? तुमने कभी धर्म नहीं किया है। और उसके बाद यमदूत उसे मुगदरों से मारते हैं। वह बेहोश हो जाता है। डरकर भाग जाता है। यमदूत उसे पकड़कर घसीटते हुए ले जाते हैं। जीव तैरवे दिन अपने घर से चलता है और सौम्यपूर के अंदर 17 वे दिन पहुंचता है
सौरीपुर नामक स्थान मे प्रवेश
यहां पर जंगम नामक राजा यम के रूप मे विधयमान रहता है। उसे देखकर जीव भयभीत हो जाता है। वहीं पर आराम करता है। वहीं पर जीव अन्न जल भोजन आदि को ग्रहण करता है। उसके बाद जीव एक भयानक जंगल के अंदर पहुंच जाता है। जिसको देखकर जीव रोता चिल्लाता है। जीव इन वन को दो बार पार करता है। यहां पर जीव को यमदूत घसीटते और पीटते हैं तीन महीने बाद वह पतनपुर नामक जगह पर पहुंच कर जीव भोजन आदि करता है। एक महीने बाद वह शैलपुर नामक जगह पर पहुंचता है वहां पर पत्थरों की बारिश होती है। जिससे जीव दुखी होता है। उसके बाद उसे खाने को मांस आदि मिलता है।
उसके बाद जीव क्रौंचनपूर पहुंचकर खाना ग्रहण करता है। फिर वह क्रुरपुर नामक स्थान पर पहुंचता है। यहां पर वह 15 दिन तक रूकता है। फिर यमदूतों के साथ चलपड़ता है। उसे यमदूत बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं। फिर वह चित्रभवन नामक जगह पर पहुंचता है जहां पर यमराज के छोटे भाई राज्य करते हैं। उसे देखकर जीव काफी भयभीत हो जाता है। इधर उधर भागता है। लेकिन उसका वश नहीं चलता है। उसके बाद वैतरणी नदी के किनारे पहुंचता है। उसे वहां पर महल्ला मिलते हैं उसे बोलते हैं कि यदि तुमने जीवन मे पुण्य किये हैं तो तुम हमारी नोका के अंदर बैठ सकते हो । जिस व्यक्ति ने अच्छे कर्म किये हैं। वही उस नाव मे
बैठ पाता है। गौ दान सबसे अच्छा दान माना जाता है जो वैतरणी नदी को पार लगाता है।पापी व्यक्ति को यमदूत नदी के अंदर फेंक देते हैं जिसने दान किया होता है वह तैरकर नदी पार कर लेता है। और जो पापी होता है। वह डूब जाता है। यमदूत उसके मुंह के अंदर कांटा फंसाकर उसे नदी के उस पार ले जाते हैं।
अनेक नगरों को पार करता हुआ जीव रोद्रनगर पहुंचता है। फिर पयोवर्षण नामक नगर के अंदर पहुंचता है। जहां जीव को दुख देने वाले बादल बरसते हैं। उसे चैन नहीं लेने देते हैं वहि कष्ट के अंदर समय काटता है। उसके बाद वह प्रेमशीताघ नामक जगह पर पहुंचता है।
यहां पर हिमालय से भी तेज ठंड पड़ती है। जीव को शरदी सताने लगती है। जहां वह अपने लोगों को खोजता है ताकि कोई उसकी मदद कर सके । लेकिन तब यमदूत उसे चेतावनी देते हैं कि क्या तुमने ऐसे कोई पुण्य किये हैं। जिससे तुम्हारे दुख कम हो जाएं।
उसके बाद बहुभितिपुर यमलोक के पास एक जगह पर पहुंचता है। जहां पर उसे एक छोटा सा शरीर मिलता है। जिस ने मौत के समय कोई धर्म नहीं किया वह काफी कष्ट उठाता है। यह वर्णन यमलोक के दक्षिण के द्वार का है।