आइए जानते हैं खेती कितने प्रकार की होती है ,कृषि कितने प्रकार की होती है के बारे मे ,आज भी भारत की अधिकतर जनसंख्या खेती पर ही निर्भर करती है।भारत मे अलग अलग प्रकार की भूमी होने की वजह से खेती भी अलग अलग प्रकार की हो जाती है। भारत के अंदर खेती का इतिहास बहुत ही पुराना है।यदि आप एक किसान हैं तो आपको खेती के अलग अलग प्रकार के बारे मे विस्तार से जान लेना चाहिए । आधुनिक किसान कुछ हटकर करते हैं वे वैज्ञानिक खेती को महत्व देते हैं। परम्परागत खेती के अंदर अब दम नहीं रहा है। कृषि ही वह साधन था जो सभ्यताओं के विकास का कारण बना ,इसमे पशुओं को पाला गया और पौधों को उगाया गया जिससे उत्पादन हुआ ।
कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है यदि हम कृषि के इतिहास को देखे तो पता चलता है कि कृषि हजारों साल पहले शूरू हो चुकी थी ।105,000 साल पहले जंगली अनाज को एकत्रित किया गया था। और उसके बाद 11,500 साल पहले अनाज उगाना शूरू हो चुका था। उसके बाद 10000 साल पहले गाय ,भैंस ,भैड़ को पालतू बनाया जाने लगा था। आज भी लगभग कृषि पर लगभग 2 मिलियन लोग निर्भर हैं।
आधुनिक एग्रोनॉमी , प्लांट ब्रीडिंग , एग्रोकेमिकल्स जैसे कीटनाशक और उर्वरक , और तकनीकी विकास ने पैदावार में तेजी से वृद्धि की है, जबकि इससे व्यापक पारिस्थितिक और पर्यावरणीय क्षति होती है।
चयनात्मक प्रजनन की वजह से मांस उत्पादन मे तो बढ़ोतरी हुई है लेकिन पर्यावरण को इससे अधिक नुकसान पहुंचा है।आधुनिक कृषी से अनेक प्रकार की समस्याएं जन्म ले रही हैं जैसे पानी का स्तर नीचे जाना ,वनों की कटाई ,एंटीबायोटिक प्रतिरोध ,वृद्धि हार्मोन आदि ।
Johnson के कथन के अनुसार खेती– फर्म समूह में उत्पादित फसलों और पशुओं के उत्पादन की किस्म और अनुपात में तथा उत्पादन करने में अपनायी जाने वाली विधियों और रीतियों में पूर्णरूप से समान हों , तो वह समूह खेती का प्रकार कहा जाता है।
Ross के अनुसार खेती- किसी एक क्षेत्र में स्थित जब कई फार्मस के आकार, वस्तुओं के उत्पादन व उत्पादन में अपनायी जाने वाली विधियों में प्रायः समानता होती है, तो उसे खेती का प्रकार कहते हैं।
कृषि ही है जिसने मानव सभ्यता को एकत्रित होने और फलने फूलने का अवसर प्रदान किया है।आज से 105,000 साल पहले जंगली अनाज को एकत्रित किया जाता था और उसके बाद खाया भी जाता था। 13,000 और 11,000 साल पहले मेसोपोटामिया में भेड़ें पालतू थीं ।10,500 साल पहले पाकिस्तान के अंदर मवेशियों को पालतू बनाया गया था।
11,500 साल पहले नव पाषाण काल के अंदर कई तरह की फसलें थी जैसे जौ , मटर , मसूर की दाल ,गेहूं और चावल का उत्पादन भी किया जाता था।
10,500 साल पहले जंगली सूअर को घर मे पाला जाने लगा था।लगभग 9,000 साल पहले न्यू गिनी में गन्ने और कुछ जड़ वाली सब्जियों को पालतू बनाया गया था।
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1.गहन कृषि ( Intensive Cultivation ) कृषि योग्य भूमी के आधार पर
गहन कृषि औद्योगिक कृषि का एक प्रकार है।इसमे भूमी के अंदर प्रतिघन ईकाई उत्पादन का उच्चस्तर होता है।अच्छी फसलों की पैदावार इसकी विशेषता है।अधिकांश व्यावसायिक कृषि एक या अधिक तरीकों से गहन है। औद्योगिक तरीकों पर बहुत अधिक निर्भर रहने वाले रूपों को अक्सर औद्योगिक कृषि कहा जाता है, गहन कृषि को उपज बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है।
इस प्रकार की खेती के अंदर प्रतिवर्ष कई फसले लगाई जाती हैं और खेती की आवृत्ति के अंदर सुधार किया जाता है।इसके लिए भूमी की जांच की जाती है। उर्वरक का प्रयोग ,कीटनाशकों का प्रयोग और मशीनी प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। सुपरमार्केट में उपलब्ध अधिकांश मांस , डेयरी उत्पाद , अंडे , फल और सब्जियां ऐसे खेतों द्वारा उत्पादित की जाती हैं।
यदि हम सीधे अर्थों के अंदर बात करें तो गहन कृषि के अंदर उत्पादन पर बल दिया जाता है। और खेत भी छोटे होते हैं।इनकी मदद से अधिक जनसंख्या का भरण पोषण संभव होता है। पश्चिमी यूरोप , दक्षिणी — पूर्वी एशिया — चीन , भारत , जापान , कोरिया , इण्डोचीन , सुमात्रा तथा जावा जैसे क्षेत्रों के अंदर गहन खेती की जाती है।
आपको बतादे कि गहन खेती करने वाले देश और किसान काफी आबाद होते हैं।अधिक जनसंख्या होने की वजह से मजूदर भी कम कीमत पर आसानी से यहां मिल जाते हैं। गहन कृषि के अंदर चावल भी आता है। कई जगह पर साल के अंदर चावल की फसल को 3 बार लिया जाता है।
2. कृषि कितने प्रकार की होती है विस्तृत खेती Extended farming
गहन खेती का प्रमुख मकसद अधिक से अधिक खाने के लिए अनाज उत्पादन का होता है। क्योंकि इस प्रकार के क्षेत्रों मे अधिक जनसंख्या होती है। लेकिन विस्तृत खेती का प्रमुख मकसद व्यापार करना होता है और लाभ कमाना होता है। यह खेती ऐसे स्थानों पर की जाती है जहां पर भूमी की उपलब्धता अधिक होती हो ।और इसके अंदर अधिक पूंजी का निवेश होता है। इस खेती के अंदर गेंहू का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है।
पानी की उपलब्धता के आधार पर आर्द्र खेती Wet farming
पानी की उपलब्धता के आधार पर भी खेती को अलग अलग भागों मे बांटा जा सकता है। जिस क्षेत्र के अंदर 200 से0 मी से अधिक वर्षा होती है वहां पर आर्द्र कृषि की जाती है। इस खेती के अंदर पौधे को नमी वर्षा से प्राप्त हो जाती है और खेतों के अंदर पानी भरा रहता है। चाय की खेती भी इसी प्रकार की होती है। बंगाल ,पूर्वी भारत और श्रीलंका के अंदर इस प्रकार की खेती होती है।
शुष्क खेती Dry farming
हमारे यहां पर शुष्क खेती होती है। यह उन स्थानों पर की जाती है जहां पर सिंचाई के साधन नहीं है और वर्षा भी 50 से मी कम होती है। इस प्रकार की खेती सिर्फ बारिश के पानी पर ही निर्भर रहती है। किसानों के खेत के अंदर किसी भी प्रकार के सींचाई के साधन नहीं होते हैं। भारत के राज्य राजस्थान के एक बड़े भू भाग पर शुष्क खेती होती है।
हम लोग जब बारिश होती है तो बाजरा और ज्वार जैसी फसले बो देते हैं और उसके बाद पकने के बाद उनको काट लेते हैं।इस प्रकार की खेती से बाजरा ,ज्वार और ग्वार आदि प्राप्त किया जाता है। लगभग सभी रेगिस्तानी ईलाकों मे शुष्क खेती ही होती है क्योंकि यहां पर वर्षा बहुत ही कम होती है। और कई बार तो अकाल पड़ जाता है। बूंद बूंद सिंचाई और मटका सिंचाई की तकनीक को यहां पर प्रयोग मे लाया जाता है।
मौसम के आधार पर एकल फसली खेती
आप अपने खेत के अंदर कितनी फसल बोते हैं । उस आधार पर भी खेती को अलग अलग भागों के अंदर विभाजित किया जा सकता है। यदि आप अपने खेत के अंदर केवल एक फसल ही लेते हैं तो यह एक फसली खेती कहलाती है।जैसे यदि आप अपने खेत के अंदर केवल बाजरा ही डालते हैं और दूसरी कोई भी चीज नहीं डालते हैं तो फिर इसको एक फसली खेती कहेंगे ।
वैसे आजकल इस प्रकार की खेती नहीं की जाती है। क्योंकि कई बार जिस फसल को बोया जाता है वह उगती ही नहीं या फिर उसका उत्पादन नहीं हो ता है। इस वजह से शुष्क जमीन पर यह खेती कार्य नहीं करती है। यदि खेत मे पानी की उपलब्धता है तो फिर यह कार्य कर सकती है।
दवि फसली खेती
खरीब और रबि दोनों फसलों को यदि आप लेते हैं तो आप द्धवि फसली खेती कर रहे हैं। यदि आपका खेत किसी शुष्क इलाके के अंदर है तो आपके खेत के अंदर टयूबवेल या किसी तरह की पानी की व्यवस्था होनी चाहिए इस प्रकार की खेती को करने के लिए ।गर्मी के अंदर तो बारिश हो जाती है लेकिन सर्द के अंदर बारिश नहीं होती है इस वजह से फसल को पानी की आवश्यकता होती है जिसकी आपूर्ति टयुबवैल या नदी से की जा सकती है।
भारत के दक्षिण पूर्व के अंदर नदियों के द्धारा बने मैदानों के अंदर इस प्रकार की खेती की जाती है।इसमे उत्पादन को बढ़ाया जाता है और मुनाफा कमाया जाता है।जो लोग सिर्फ खेती पर ही निर्भर हैं वे इसी प्रकार की खेती करते हैं।
बहु फसली खेती
यह बहुत ही उन्नत किस्म की खेती होती है। और कृषि क्रांति के बाद इस प्रकार की कृषि प्रचलन मे आ गई है।बहु फसली खेती एक ऐसी खेती होती है जिसके अंदर एक निश्चित समय के अंदर एक ही साल के भितर कई फसलों का उत्पादन कर लिया जाता है। जैसे उड़द ,मूंग और सोयाबीन आदि ।
यदि सिंपल भाषा के अंदर बहुफसली खेती वह होती है जिसके अंदर फसल उत्पादन से होने वाले आर्थिक लाभ को बढ़ाने के लिए भूमी की उर्वरक क्षमता को बनाए रखते हुए एक साल के अंदर 2 से अधिक फसलों का उत्पादन किया जाता है।इसी को बहुफसली खेती कहते हैं।
मक्का ,आलू और मूंग बहुफसलिय खेती के उदाहरण हैं।वैसे देखा जाए तो बहुफसलिय कृषि बहुत अधिक फायदेमंद होती है। पहले जहां पर किसान एक वर्ष के अंदर केवल एक बार ही उत्पादन कर पाता था अब एक वर्ष के अंदर कई बार उत्पादन करने मे सक्षम है।ऐसा करके किसान अपनी आय को बढ़ा सकता है।और ऐसा करके किसान अपनी आर्थिक समृद्धि को हाशिल कर सकता है। बढ़ती जनसंख्या के लिए उत्पादन को बढ़ाना बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
आदिम खेती वाणिज्यकरण के आधार पर खेती के प्रकार
इस प्रकार की खेती को स्थानानन्तरण खेती के नाम से जाना जाता है। हालांकि यह खेती का एक घटिया प्रकार है और इससे पर्यावरण को नुकसान भी होता है। इसमे सबसे पहले भूमी के जिस भाग पर खेती की जानी है उसको जलाया जाता है उसके बाद वहां पर खेती की जाती है।उसके बाद दूसरी भूमी पर इसी प्रकार से वनो और घास को जलाकर खेती की जाती है।
हालांकि इस प्रकार की खेती तेजी से समाप्त हो रही है लेकिन फिर भी अभी भी कुछ ऐसे भाग हैं जहां पर यह खेती की जाती है।जैसे दक्षिण अमेरिका के अमेजन ,दक्षिणी अफ्रिका के कांगो बेसिन आदि ।
व्यवसायिक खेती
व्यवसायिक खेती एक प्रकार की उच्च तकनीक की खेती होती है।इस प्रकार की खेती के अंदर उत्पादन पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। अक्सर आपने देखा होगा कि इस क्षेत्र मे कई सारी कम्पनी उतर चुकी हैं। वे किसानों के खेत को कुछ साल के लिए लीज पर लेती हैं उसके बाद उसके अंदर दवा और कीटनाशक का बहुत अधिक प्रयोग करके उत्पादन को बढ़ाया जाता है। इस प्रकार की खेती के अंदर मशीनों का भी प्रयोग किया जाता है। लेकिन इस खेती का मुख्य उदेश्य व्यापार करना होता है।
रोपण खेती
उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में कि जाने वाली कृषि है। और उच्च किस्म के बीजों, कीटनाशकों व आधुनिक कृषि यंत्रों और उचित फासलों के द्धारा बड़े पैमाने पर की जाने वाली कृषि रोपण खेती के नाम से जानी जाती है।
- यदि हम रोपण खेती की विशेषताओं की बात करें तो इसमे सिर्फ एक फसल को महत्व दिया जाता है। जैसे चाय की खेती मे चाय को अकेले ही उगाया जाता है। इसी प्रकार से गन्ने की खेती भी है।
- इस प्रकार की खेती के अंदर कृषि का एक बड़ा भू भाग प्रयोग मे लाया जाता है।और इसके उपर विभिन्न प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है।
- रोपण कृषि एक प्रकार की आधुनिक खेती है। क्योंकि इसके अंदर सभी प्रकार के आधुनिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। जैसे उन्नत बीज ,ट्रेक्टर ,सींचाई के साधन आदि ।
- रोपण कृषि की सबसे बड़ी विशेषता बहुवर्षीय फसल है। एक बार यदि आप इनको रोप देते हो तो उसके बाद इनसे अगले कई सालों तक उत्पादन को प्राप्त किया जा सकता है।
- रोपण कृषि के अंदर रसायनों का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है ताकि उत्पादन को बढ़ाया जा सके ।
- यदि पूंजी की बात करें तो रोपण कृषि के अंदर एक बड़ी मात्रा मे पूंजी का निवेश किया जाता है।और बाद मे इससे अच्छा लाभ कमाया जाता है।
उद्यान खेती के आधार पर खेती के प्रकार
कुछ खेती इस प्रकार की होती है कि उनको एक छोटे क्षेत्र के अंदर उगाया जाता है। और उनसे बड़ा मनुफा कमाया जाता है।जैसे कुछ किसान मिर्च की खेती करते हैं । जो कुछ फूलों की खेती करते हैं।
सब्जी की खेती
सब्जी की खेती बहुत से किसान आज कर रहे हैं और इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसमे किसान कुछ सब्जी को चुनते हैं और उसके बाद उनको खेत के छोटे भाग पर उगाया जाता है और दवाओं से उत्पादन बढ़ाकर मार्केट मे बेचा जाता है।हमारे खेत के पास एक किसान है जो सब्जी की खेती करता है और उसके यहां पर बड़ी संख्या मे सब्जी लगती है। काफी अच्छा मुनाफा कमाता है।
पुष्पों की खेती
बहुत से किसान अब फूलों की खेती करने लगे हैं क्योंकि इसके अंदर अच्छा मुनाफा होता है।गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा जैसे फूलों की खेती की जाती है। 2012 के अनुसार भारत में फूलों की खेती के लिए 232.74 हज़ार हेक्टयर क्षेत्र था जिसमें से फूलों उत्पाद 1.729 मिलियन टन हुआ तथा खुले फूलों का उत्पाद 76.73 मिलियन टन हुआ ।
कई राज्यों के अंदर अब फूलों की खेती होने लगी है जैसे मध्यप्रदेश ,पंजाब ,हरियाणा ,छतीसगढ , झारखड, उडिसा आदि जगह पर फूलों की खेती होती है।आपको बतादें कि पूरी दुनिया के अंदर 140 से अधिक देश फूलों की खेती के अंदर लगे हुए हैं और अमेरिका के अंदर फूलों का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। यहां पर प्रतिवर्ष 10 बिलियन डॉलर के फूलों की खपत होती है।
और उसके बाद फूलों की खपत के अंदर जापान का नंबर आता है।जहां पर हर साल 7 बिलियन डॉलर के फूलों की खपत होती है।अब भारत के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए फूलों की खेती पर अधिक जोर दिया जा रहा है।
फलो की खेती
अब बहुत से लोग फलों की खेती भी करने लगे हैं।और इसके अंदर कई लोगों को काफी अच्छा फायदा भी हुआ है। लेकिन इस प्रकार की खेती को करने के लिए कई चीजों का ध्यान रखना होता है। लेकिन यदि बात करें मुनाफे की तो इसके अंदर बहुत अधिक मुनाफा होता है। कई फलों की खेती करने वाले किसान निहाल हो चुके हैं। लेकिन बाग लगाने से पहले जलवायु और स्थान के बारे मे विचार करना होता है कि यहां पर कौनसी किस्म सही उत्पादन दे सकती है।
पौधों को लगाने से पहले उचित भूमी सुधार पर ध्यान दिया जाता है।और यह भी देखा जाता है कि लगाये जाने वाले पौंधे के बीच की दूरी कितनी है। उचित फासला बहुत अधिक जरूरी है।
कुछ जगहों पर उत्पादन कम होने का यह कारण भी होता है कि एक बार बाग लगा देने के बाद उसके उपर कोई सही तरीके से ध्यान नहीं देता है ।
बाग को लगाने के लिए सही भूमी का होना बेहद ही आवश्यक होता है।कंकड़ वाली , उंचि नीची जमीन फलों के लिए उपयुक्त नहीं होती है।रेतीली और क्षार वाली भूमी भी फलों वाले पौधों के लिए अधिक उपयोगी नहीं है।
यदि आप पेड़ लगा रहे हैं तो आपके पास पानी की उपयुक्त व्यवस्था होना भी बेहद जरूरी होता है।केवल नहर के पानी के भरोशे नहीं रहना चाहिए क्योंकि यदि किसी कारण वश नहर का पानी उपलब्ध ना हो तो समस्या हो सकती है। बगीचे के अंदर एक टयूबवैल भी होना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर पानी का उपयोग किया जा सके ।
यदि आप बाग लगा रहे हैं तो इसका बात का भी ध्यान रखें की वह मंडी या बाजार के पास होना चाहिए ताकि बाग से फलों को तोड़कर आसानी से मंडी तक पहुंचा जा सके । यदि बाग मंडी से दूर होता है तो काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
यदि आपके पास जंगल के पास जमीन है तो बाग लगाने से पहले अच्छी तरह से बाड़ कर लेनी चाहिए क्योंकि जंगली पशु बाग को बहुत अधिक हानि पहुंचाते हैं। जंगल से दूर फलों की खेती करना फायदे मंद होता है।
फलो की खेती ऐसे स्थान पर करनी चाहिए जहां पर मजदूर भी आसानी से और कम कीमत पर मिल जाते हों ताकि काम को आसानी से पूरा किया जा सके ।
फलो की खेती के लिए आप जो भी पेड़ लगा रहे हैं उनकी किस्मों भूमी की स्थिति के अनुसार ही चुनना चाहिए ।जैसे कम उपजाउ भूमी पर अमरूद जैसे फल आसानी से हो जाते हैं। इसी प्रकार रेह वाली भूमी पर आंवला ,बेर आदि को लगाया जा सकता है। संतरा, माल्टा, नींबू पानी ठहरने वाली जगह पर काम नहीं करते हैं और कंकड वाली जमीन पर आम काम नहीं करता है।पौधे की किस्मों का चुनाव जलवायु के अनुसार ही करना चाहिए जैसे सेब, खूबानी, नाशपाती आदि ठंडी जगहों पर लगते हैं इसी प्रकार से गर्म जगहों पर केला और पपीता लगते हैं। यदि आप इनको सही जलवायु के अंदर नहीं लगाते हैं तो इनको फल लगने मे समस्याएं आती हैं।
यदि आप फलों की खेती कर रहे हैं तो आपको वही किस्मे लगानी चाहिए जिनकी बाजार के अंदर मांग है। इसके लिए आप विभाग के कर्मचारियों से परामर्श कर सकते हैं।
फलो की खेती करने से पहले भूमी को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है ताकि भूमी की वजह से फलों के अंदर समस्या नहीं आए । जिस भूमी पर खेती होती है उसको सही करना काफी आसान होता है।
यदि भूमी पहले से जोती नहीं जा रही है तो उसके अंदर कई प्रकार की झाडियां और घास उग जाता है।तो सबसे पहले झाड़ियों की जड़ को खोद कर निकाल दिया जाता है यदि आप इनको उपर से काटेंगे तो यह फिर उग सकती हैं। इसके अलावा बबूल के पेड़ हैं तो उनको भी हटा दिया जाता है।
फालतू घास को काटकर अच्छी तरह से साफ कर दिया जाता है और यदि अधिक पेड़ हैं तो उनको काटा जा सकता है जरूरी पेड़ों को छोड़ा भी जा सकता है। उसके बाद जमीन को समतल करना होता है। यदि एक बार मे जमीन को समतल करना संभव नहीं हो तो अलग अलग भागों के अंदर बांट कर समतल कर लिया जाता है। समतल करना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि ऐसा ना करने से सींचाई सही तरीके से नहीं होगी ।यदि जमीन समतल नहीं है तो सभी पेड़ों के पास एकसमान पानी नहीं पहुंचेगा ।
यदि खेती की जाने वाली जमीन समतल नहीं है तो सीढ़ीदार खेत बनाये जाते हैं और जमीन की गहरी जुताई की जाती है जिससे कि वर्षा का पानी जमीन के नीचे तक पहुंच जाता है।जब भूमी का कार्य पूरा हो जाए तो उसके बाद पेड़ लगाने के लिए भूमी के स्थान को चुन लेना चाहिए । यदि संभव हो तो एक नक्शा बना लेना चाहिए । जिससे यह पता रहे है कि किस किस स्थान पर पेड़ लगाना है?
एक बार जब आप पेड़ लगाने वाले स्थान पर चिन्ंह लगा लेते हैं तो उसके बाद एक सीधी डोरी डालें और रेखांकन कर सकते हैं। उसके बाद यदि पेड़ लगा रहे हैं तो उनको उचित दूरी पर लगाना होता है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो ना तो उन पेड़ों को सही तरीके से प्रकाश ही मिलता है और ना ही वे फल देते हैं।नीचे कुछ पेड़ों की दूरी दी हुई है।
- Native mango – 40 feet
- Kalmi Mango – 35 feet
- Guava – 25 feet
- Lemon – 20 feet
- Lychee – 30 feet
- Lukath – 25 feet
- Papaya – 4 feet
- Planting trees
एक बार जब आप पेड़ लगाने का निशान भूमी में लगा देते हैं तो उसके बाद उसी जगह पर 3 फुट गहरा और 3 फुट चौड़ा गढ्ढा खोद लेना चाहिए और फिर इसके अंदर से कंकड़ पत्थर निकाल देने चाहिए । फिर सड़े गले गोबर की खाद को भी इसके अंदर डाल देना चाहिए ।उसके बाद इस गढ्ढे के अंदर पानी भरदें ।ऐसा करने से खाद अंदर बैठ जाती है।एक बार जब वर्षा हो जाती है तो आप पेड़ लगा सकते हैं। ध्यान दें की पेड़ को जमीन के अंदर अधिक गहरा नहीं लगाएं क्योंकि तने के मिट्टी मे दबने से उसके सड़ने का चांस रहता है।
और यदि आप पेड़ को बिना वर्षा के लगाते हैं तो फिर उसके अंदर पानी देना आवश्यक होता है।यदि आप पेड़ लगाने जा रहे हैं तो एक सही किस्म का ही चुनाव करें । यदि आप गलत किस्म का चुनाव करते हैं तो आपकी मेहनत ही बेकार जा सकती है और आपको इसका कोई फायदा भी नहीं मिलेगा ।
फलो की खेती करने वाले किसानो को गर्म और ठंडी हवाओं का भी ध्यान रखना होता है। गर्म हवाएं पश्चिम से और ठंडी हवाएं उत्तर से चलती हैं। इसलिए बाग के उत्तर और पश्चिम दिशा के अंदर गहरे पेड़ लगा देने चाहिए ताकि वे इनको रोक सकें ।इन पेड़ों के अंदर शीशम और देसी आम और जामुन आते हैं जो लंबे होते हैं और गहरी ठंडी हवाओं को आसानी से रोक लेते हैं।
इसके अलावा लू और तेज सर्दी से पौधों को नष्ट होने से बचाने के लिए पौधों के चारोओंर घास फूस की संरचना बनाते हैं । यह केवल उन्हीं पौधों के चारो ओर बनाई जाती है जिनको सर्दी या लू लगने का अंदेशा रहता है।
जाड़े के अंदर कई पेड़ और पौधें की पतियां गिरने लग जाती हैं जैसे शहतूत ,फालसा आदि । इनकी कटाई छंटाई करनी पड़ती है।कटाई छंटाई करने का फायदा यह होता है कि अच्छे फल लगते हैं। और कटाई छंटाई नहीं करने से यह काफी कम बढ़ते हैं।वैसे आपको बतादें कि पेड़ लगाने के 3 साल बाद उनकी कटाई छंटाई की आवश्यकता होती है । पौधे या पेड़ की बस कुछ शाखाओं को छोड़ देना चाहिए और बाकी को काट दिया जाना चाहिए । जिससे की पौधा आसानी से सही स्थिति के अंदर बढ़ सके ।
खेती कितने प्रकार की होती है औषधियों की खेती
हर्बल उत्पादों की बढ़ती मांग की वजह से अब औषधिय खेती भी की जाने लगी है।किसान जड़ी बूंटियों की तरफ अब अपना रूख करने लगे हैं।सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच और आर्टीमीशिया की खेती की जा सकती है। और सरकार भी इसके लिए अनुदान देती है।
कुठ, कुटकी, करंजा, कपिकाचु और शंखपुष्पी आदि की खेती करके कई किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं। वैसे तो आपने शायद ही कभी सुना हो की अनदाता खुश है लेकिन यह कहानी है अतीक की ,जो एक एकड़े से 3 लाख तक की कमाई कर रहा है।
किसान जब गेंहू की खेती करते हैं तो बहुत ही कम कमाई होती है लेकिन हर्बल पौधे दवाइयों के अंदर इस्तेमाल होते हैं जिसकी वजह से इनकी मांग बाजार के अंदर बहुत अधिक है। और पतंजली जैसी कम्पनी इन चीजों का यूज करती हैं।
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अब औषधी खेती किसानों की जिंदगी बदल रही है।आपको बतादें कि देश के अंदर हर्बल कारोबार 50,000 करोड़ का है और यदि हम जड़ी बूटी की बुआई की बात करें तो यह बहुत कम है। हालांकि आजकल किसान औषधी खेती के अंदर अधिक रूचि लेने लगे हैं।
अतीश जड़ी बुंटी की खेती करते हैं और इसकी मदद से प्रति एकड़ 3 लाख की कमाई होती है। यह बताते हैं कि वे एक सफल किसान हैं ।डाबर इंडिया राजस्थान के बाड़मेर में शंखपुष्पी जैसे औषधीय पौधों की खेती के लिए किसानों के साथ काम करती है।
औषधी खेती से अब तक कई किसान माला माल हो चुके हैं।और जब से आयुर्वेद के उत्पादों की मांग बाजार मे बढ़ी है तब से औषधी खेती भी अधिक होने लगी है क्योंकि किसानों को उनके उत्पादों का अच्छा मूल्य मिलता है।
औषधी खेती मे कई तरह की खेती आती है जैसे – थुनेर, तुलसी, कुटकी, रोजमेरी, काशनी, सूरजमुखी, कालमेघ, अजवाइन, तिलपुष्पी, पुदीना, हल्दी, आंवला, मकोई, बहेड़ा, अश्वगंधा, लेमनग्रास, जंबु फरण, सतावर, वन तुलसी, पीप्पली, अजमोद, लेवेंडर, कड़ी पत्ता, इसबगोल, केशर, वकायन, स्वीविया, पत्थरचट्टा, राम तुलसी, श्याम तुलसी ।
किसान नरिन्दर सिंह हरियाणा के एक ऐसे किसान हैं जो एक साल के अंदर मात्र खेती से 3 करोड़ रूपये कमा रहे हैं।इनके उत्पाद ना केवल देश मे वरन विदेश मे भी मशहूर हैं।, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान, उत्तर प्रदेश के अंदर किसान अब औषधी खेती को अधिक महत्व दे रहे हैं। क्योंकि इस खेती से किसानों की अच्छी इनकम हो रही है और मेहनत भी कम हैं।
धर्मवीर कंबोज हरियाणा के ही एक ऐसे किसान थे जो पहले ऑटो चलाते थे ।पहले तो ऑटो से बहुत ही कम आमदनी होती थी लेकिन बाद मे मां से प्रेरणा ली और फिर औषधी की खेती करने लगे । पहले अकरकरा की खेती की और फिर ऐलोविरा की खेती करने लगे ।उसके बाद सफेद मूसली, ब्रह्मी, बच्च, एलोवेरा, कालमेघ, गिलोए, तुलसी आदि की खेती करने लगे । इससे इनको अच्छी आमदनी हुई । केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने उनका सम्मान भी किया था।
यह एक महिने तक राष्ट्रपति के मेहमान भी रह चुके हैं। इतना ही नहीं धर्मवीर कई फूड प्रोसेसिंग मशीने भी तैयार कर बेच चुके हैं।जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉर्बट मुगांबे ने भी इनको सम्मानित किया था।
एलोवेरा का जूस, जैल, शैंपू आदि भी यह अपने यहां पर बना रहे हैं। इसके अलावा मशीन से चलने वाली झाडू भी यह बना चुके हैं।कामयाब किसान हैं राकेश चौधरी हैं जो राजस्थान के निवासी हैं। यह अपने आस पास के किसानों के साथ मिलकर बड़ी कम्पनियों के लिए औषधियों की सप्लाई कर रहे हैं।इन्होंने तो अपनी खुद की हर्बल कम्पनी बना ली है। यह पीछले 13 साल से इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।
मुलेठी, स्टीविया, सफेद मूसली, ऐलोवेरा, सोनामुखी, तुलसी, आंवला, बेलपत्र, गोखरू, अश्वगंधा, गुड़हल, लाजवन्ती, कपूर, तुलसी, अकरकरा आदि की खेती करने के लिए किसानों को राकेश प्रशीक्षण दे रहे हैं। और इससे अब किसानों की आय भी अच्छी होने लगी है।
ट्रक कृषि
ट्रक कृषि एक अलग प्रकार की कृषि होती है जिसके अंदर उत्पादित होने वाले फल और सब्जी को दूर बाजारों के अंदर भेजा जाता है।इस प्रकार के शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमेरिका के अंदर हुआ था और नगरों मे बढ़ती सब्जी की मांग की वजह से यह कृषि होती है।
खेती कितने प्रकार की होती है ,कृषि कितने प्रकार की होती है के बारे मे हम इस लेख मे विस्तार से जानेंगे ।