टिड्डी के बारे मे जानकारी ,टिड्डी का प्रजनन ,teddy ke bare mein jankari , about locust in hindi ,टिड्डी के बारे मे तो आपने अवश्य ही सुन रखा होगा । वैसा आजकल टिड्डी आने के समाचार बहुत ही कम सुनने को मिलते हैं। लेकिन कई साल पहले टिड्डी पूरे झुंड के साथ खेतों पर आक्रमण करती थी । और किसान उनके आगे बेबस था । वह बेचारा कुछ नहीं कर सकता था । उसकी नजरों के सामने उसके पूरे खेत को चट कर जाती थी ।
वैसे देखा जाए तो यह आर्थिक महत्व का कीट है। कुछ देशों के अंदर इसका प्रयोग भोजन के रूप मे भी किया जाता है। लेकिन कुछ देस ऐसे भी होते हैं। जिनके अंदर टिडडे को बहुत बड़ा शत्रू माना जाता है।इनके प्रकोप से कोई भी पौधा बच नहीं सकता है। आमतौर पर यह जामुन और नीम जैसे पेड़ पौधों को नहीं खाते हैं।वैसे देखा जाए तो टिड्डी का प्रकोप भारत के अंदर कुछ ज्यादा ही रहा है। जब भारत पर टिड्डी का आक्रमण किया है। तब तब भारत के अंदर अकाल पड़ा है। अब तक भारत के अंदर टिड्डी ने 15 बार आक्रमण कर चुके हैं।
भारत के अंदर इसकी तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। लोकस्टमाइग्रेटरिया ,पतंगा सक्सिन्टा ,शिसटोसर्का आदि। विदेशी कीटों के पंख होते हैं। और वे मार्ग के अंदर आने वाले हर चीजों को साफ कर देती हैं।और पूरे ईलाके को विरान बना देती हैं।
मरुस्थलीय टिड्डियाँ
टिड्डी (Locust) ऐक्रिडाइइडी (Acridiide) परिवार के ऑर्थाप्टेरा (Orthoptera) गण का कीट है। हेमिप्टेरा (Hemiptera) गण के सिकेडा वंश का कीट भी टिड्डी या फसल डिड्डी (Harvest Locust) कहलाताहैं
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टिड्डी की प्रजातियां
टिड्डी की प्रमुख रूप से चार जातियां पाई जाती हैं।
- स्किस टोसरका ग्रिग्ररिया नामक की मरूस्थल मे रहने वाली टिड्डी
- उतरी अमरिका की रॉकी पर्वती की टिड्डी
- साउथ अमरीकाना
इटालीय तथा मोरोक्को टिड्डी उष्ण कटिबंधीय आस्ट्रेलिया, यूरेशियाई टाइगा जंगल के दक्षिण के घास के मैदान , अफ्रीका, ईस्ट इंडीज, तथा न्यूजीलैंड में पाई जाती हैं।
- दक्षिण अफ्रीका की भूरी एवं लाल लोकस्टान पारडालिना
टिड्डी की प्रजनन स्थिति
मादा टिड्डी रेत के अंदर सैल बनाकर 10 से लेकर 100 अंडे देती है। जो गर्म जलवायु होने पर 20 दिन के अंदर फूट जाते हैं। लेकिन शीतकाल के अंदर अंडे सुप्त बने रहते हैं। मादा टिड्डी के पंख नहीं होते हैं। बस वह अन्य बातों के अंदर अन्य टिड्डी के समान ही होती है। उसका भोजन वनस्पति है। यह 5 से 6 सप्ताह के अंदर व्यवस्क हो जाती है। इस अवधी के अंदर टिडडी की त्वचा कई बार बदलती है। वह 20 से 30 दिन के अंदर पूरी प्रौढ हो जाती है। कुछ प्रजातियों के अंदर यह कुछ महिनों का काम होता है।टिडडी का विकास आद्रता और ताप पर काफी हद तक निर्भर रहता है।
मैथुन के बाद थोड़ी थोड़ी देर बाद अंडे देने की क्रिया होने लगती है।यह हेमन्त मौसम तक चलती है। मादा एक साथ 20 अंडे एक सुरंग मे देती है। जो एक चिपकने वाले पदार्थ से चिपके रहते हैं।इन अंड़ों से शिशु निकलते हैं जिसे निफ कहा जाता है। यह टिड्डी का छोटा रूप होता है। जोकि पांच बार त्वचा को बदलता है।इनकी दो अवस्थाएं होती हैं।पहली घटाव की तरफ होती है। तो दूसरी प्रकोप की तरफ होती है। इनको क्रमश सोलेट्री फेज और ग्रीगोरियस फेज कहा जाता है।
टिड्डियों की दो अवस्थाएँ होती हैं
- एक चारी
- यूथचारी
प्रत्येक अवस्था कायकी व्यवहार और आक्रति आदि के अंदर एक दूसरे से अलग अलग होती है।एकचारी के अंदर अपना रंग परिवर्तित करने की क्षमता होती है। यह पर्यावरण के अनुसार खुद को बदल लेती है। इसकी ऑक्सिजन लेने की गति मंद होती है। जबकि यूथचार के अंदर इसका रंग फिक्स पीला होता है। इसकी ऑक्सिजन लेने की दर उंची होती है। यह ताप को अ धिक अवशोषित कर लेता है। इसकी म्रत्यूदर काफी अधिक होती है। फिर भी यह खुद को जीवित रखती हैं।
एकचारी टिड्डी यदि झूंड के अंदर पलती है। तो वह बाद मे यूथचारी के अंदर बदल जाती है। और यदि यूथचारी टिड्डी एकांत के अंदर रहती हैं तो वह एकचारी हो जाती हैं।
टिड्डी के निवास स्थान
टिड्डी अपने निवास स्थानों को ऐसी जगह पर बनाती हैं। जहां पर जलवायु असंतुलित होता है।ऐसी जगह काफी कम ही होती हैं।
- फिलिपीन के आर्द्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को जल चुके घास के मैदान
- कैस्पियन सागर ऐरेल सागर व बालकश झील में गिरनेवाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा
- रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, यह नम और ठंडे रहने की वजह से काफी उपयुक्त हैं। इस क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में टिड्डियाँ एकत्र होती हैं
4. मरूस्थल के अंदर घास के मैदान जहां पर जलवायु विषमता रहती है।
यूथचारी टिड्डियाँ गर्मी के दिनों के अंदर उड़ती हैं। जिसकी वजह से इसकी पेशियां सक्रिय रहती हैं। और इसके शरीर का ताप अधिक होता है। वर्षा की स्थिति के अंदर इनकी उड़ान नहीं होती है।मरुभूमि टिड्डियों के झुंड गर्मीकाल के अंदर उड़ान भरती हैं। यह कई देशों के अंदर आते हैं। जिसमे अरब देस भारत ईरान और अफ्रिका आदि आते हैं। लोकस्टा माइग्रेटोरिया भारत अर्फिका के अंदर आकर फसल को पूरी तरह से बरबाद कर देती है।
यह टिडडी पहले पूर्वी अफ़्रीकी देशों जैसे इथियोपिया, सोमालिया मोरोक्को, मोरिटानिया के साथ साथ अरब देश यमन के अंदर तबाही मचाकर भारत की और रूख करते हैं। टिड्डी हिंद महासागर को पार करके भारत और पाकिस्तान के अंदर आ जाती हैं। टिड्डी दल हिंद महासागर को पार करना एक प्राक्रतिक चक्र का हिस्सा है। यह कई बार हो चुका है।
टिड्डियों का भोजन और कुछ खास बातें
टिड्डियों के दलों के खेत पर आक्रमण करने से खेत को भारी नुकसान होता है। समझो खेत के अंदर कुछ नहीं बचता है। एक कीट अपने वजन के बराबर फसल खा जाता है। इसका वजन 2 ग्राम होता है।
एक छोटे से टिडडी दल का हिस्सा एक दिन मे उतनी खाध्य सामग्री खा जाते हैं जितनी कोई 3000 हजार इंसान खा सकते हैं। लेकिन टिडडे की उम्र कोई ज्यादा नहीं होती है। यह 4 से 5 महिने ही जीवित रह पाते हैं।
इन कीडों की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह हवा के अंदर 150 किलोमिटर एक सांस मैं उड़ सकते हैं। और हिंद महासागर को पार करने के लिए इनको 300 किलोमिटर की दूरी पार करनी होती है।
टिड्डी की विशेष क्षमताओं से वैज्ञानिक भी हैरान
हाल ही के अंदर ब्रेटेन , अमेरिका और स्पेन के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक विशेष तकनीकी का विकास किया है। जो सड़क पर होने वाली दूर्घटनाओं को कम करने मे मदद कर सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर साल न जाने कितने लोग सड़क दूर्घटना के अंदर मारे जाते है। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक विकास का आइडिया टिड्डी से लिया है। उनके अनुसार टिड्डी लाखों की संख्या के अंदर एक साथ उड़ती हैं। और इनका घनत्व एक वर्ग किमी के अंदर 8 करोड़ तक होती हैं। इतनी ज्यादा संख्या के अंदर होने के बाद भी यह कभी भी एक दूसरे से टक्कराती नहीं हैं।
इसके अलावा यह खुद को शिकारी पक्षियों से बचाने मे भी कामयाब रहती हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार इनके आंखों के पीछे एक हिस्सा डिटेक्टर मूमेंट होता है। इसकी मदद से उनको यह पता चल जाता है कि कोई अन्य चीज उनके रस्ते के अंदर आ रही है। और उसके बाद यह खतरे को भाप कर अपना रस्ता बदल लेती हैं। इसके अलावा टिड्डी के देखने क क्षमता मनुष्यों से कई गुना अधिक होती है। अपनी इसी क्षमता का वे इस्तेमाल करके दूर तक देख सकती हैं। और अपने आने वाले खतरे को आसानी से भांप लेती हैं। और अपना रस्ता बदल लेती हैं।
वैज्ञानिकों ने इसी आधार पर केस ऐवायडेंस टेंक्नॉलाजी का विकास किया है।यह प्रक्रिया के अंदर कार के पीछे या आगे की बाधा को रडार के द्वारा पकड़ा जाता है। और उसे एक स्क्रीन पर भेजा जाता है। और निर्देश दिया जाता है कि अब क्या करना है।
टिड्डी का इतिहास
- 1422 ई से 1411 ईसा पूर्व होरेमब, प्राचीन मिस्र के कब्र-कक्ष में टिड्डी का उल्लेख मिलता है।
- इतिहास के अंदर टिड्डियों का उल्लेख मिलता है। जो हवा की दिशा के अंदर और मौसम बदलने से अचानक पहुंच गए और विनाश किया ।
- प्राचीन मिस्रियों ने 2470 से 2220 ईसा पूर्व की अवधि में कब्रों पर टिड्डों की नक्काशी की थी
- इलियड ने आग से बचने के लिए विंग में ले जाने वाले टिड्डों का उल्लेख किया है।
- कुरान में टिड्डियों के स्थानों का भी उल्लेख किया गया है।
- नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में, चीनी अधिकारियों ने टिड्डे विरोधी अधिकारियों को नियुक्त किया गया था।
- अरस्तू ने टिडडी के प्रजनन और उसकी आदतों का उल्लेख किया था।
- लिवी ने 203 ईसा पूर्व टिडडी से होने वाली बिमारियों का उल्लेख किया है।
- 311 ईस्वी के अंदर चीन के अंदर फैली एक महामारी से 98 प्रतिशत लोग मरे थे । इसमे टिडडी को दोषी माना था।
टिडडी का विभिन्न भागों के अंदर वितरण
- टिड्डी अंटार्कटिका और उत्तरी अमेरिका जैसी जगहों पर घूमती रहती हैं।ऑस्ट्रेलिया में ऑस्ट्रेलियाई प्लेग टिड्डे पाये जाते हैं।
- रेगिस्तानी टिड्डे आमतौर पर उत्तरी अफ्रीका, मध्य पूर्व और भारतीय उपमहाद्वीप के अंदर पाये जाते हैं। यह सबसे लंबी दूरी तक जा सकती है।2003-4 में पश्चिमी अफ्रीका में एक बड़ी घुसपैठ हुई।
- 2003 में मॉरिटानिया, माली, नाइजर और सूडान में पहला प्रकोप हुआ।
- जलसेक को संभालने की लागत $ 122 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी, और वहां पर फसलों को नुकसान $ 2.5 बिलियन तक था।
- प्रवासी टिड्डे आमतौर पर अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में झुंड में वर्गीकृत होते हैं, लेकिन यूरोप में कम ही पाये जाते हैं।
- रॉकी माउंटेन टिड्डी सबसे महत्वपूर्ण टिड्डी मे से एक था। लेकिन सन 1902 के अंदर यह विलुप्त हो गया था।
- प्लेन टिड्डी भी एक प्रजाति है। जो अब काफी दुर्लभ हो चुकी है।
टिड्डियों को खाते लोग
इज़राइली मिस्र के अंदर तो टिड्डियों को लोग एक अच्छे भोजन के तौर पर खाया जाता है। सामान्यत यह टिडडे 1 से दो इंच लंबे होते हैं। यह काफी स्वादिष्ट होते हैं। इनको तेल के अंदर तला जाता है।लाल, पीले, चित्तीदार भूरे और सफेद टिड्डे खाने के लिए ठीक हैं। उत्तरी अफ्रीकी यहूदियों के अंदर टिडियों को खाने की परम्परा थी। लेकिन टिडियां बहुत कम ही उत्तर की ओर गई होंगे । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अफ्रीकी यहूदियों ने इनको खाना बंद कर दिया हो । आपको बतादें कि टिडियां जस्ता, लोहा और प्रोटीन का स्रोत होते हैं।
भारत मे टिड्डी का हमला टिड्डी की जानकारी बताइए
टिड्डी चेतावनी संगठन की स्थापना (एलडब्ल्यूओ) 1946 में की गई थी।इसका कार्य टिड्डी के बारे मे चेतावनी देना है।1926 से ही भारत के अंदर टिड्डियों का हमला हुआ । और इसकी वजह से 15 करोड़ से भी अधिक का नुकसान हुआ है।और सबसे बड़ी बात यह है कि इसके नुकसान का आंकलन करना बहुत अधिक कठिन होता है।
वैसे हमने अपने 30 साल के जीवन के अंदर टिड्डी को नहीं देखा था। इसका कारण यह था कि टिड्डी वैसे तो हर साल आती थी लेकिन उनको बस सीमा से ही मार दिया जाता था। लेकिन 2020 के अंदर एक तरफ जहां कोरोना चल रहा था तो दूसरी तरफ टिड्डी हमला कर रही थी।सरकार के लिए टिड्डी और कोरोना दोनो चुनौती बनकर उभरे थे । राजस्थान के अंदर टिड्डी आने के बाद गुजरात के अंदर भी टिडियों ने काफी नुकसान किया और फसलों को चौपट कर दिया ।और टिडिया आई भी गर्म मौसम के समय थी तो उनके अपने आप मरने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता था।
सन 2020 के अंदर जब हमने पहली बार टिड्डी को देखा था तो हम घर के अंदर मौजूद थे । जब टिड्डी घर के उपर से गुजरी तो काफी शौर मच गया और लोग बोले अपने खेतों को बचाओ । वैसे हमारे लिए यह पहली बार था। करोड़ी टिड्डी आकाश मे उड रही थी । और हमने थाली और दूसरे उपकर लिये जिनसे आवाज की जा सकती थी।
और उसके बाद बाइक के उपर काफी तेजी से भागे ।खेत घर से थोड़ी ही दूरी पर था तो 5 मिनट मे पहुंच गए तो देखा कि करोड़ों टिड्डी बाजरे की फसल को खा रही हैं। हम तेजी से शौर करने लगे थाली या जो कुछ भी मिला बजाने लगे । शैर टिड्डी को पसंद नहीं होता है। इस वजह से वे टिड्डी जो बैठी थी वे उड़ने लगी और जो उड़ रही थी वे नहीं बैठ पाई। और आस पास के लोग भी काफी धमाके कर रहे थे और टिड्डी को उड़ाने का कार्य कर रहे थे ।
लगभग 3 घंटे हमारे खेतों पर टिड्डी का अटैक रहा और उसके बाद वे चारो ओर शौर होने के की वजह से वे चली गई । कुछ ही दिनों बाद उनका फिर भयंकर अटैक हुआ । इस बार काफी समस्याएं आए। हम तीन लोग टिड्डी उड़ाने वाले थे ।खेतों के अंदर हम बर्तन पीट रहे थे । और इसमे सबसे बड़ी समस्या यह थी कि हवा इस प्रकार से चल रही थी कि वह आधा घंटे एक दिसा मे चलती तो फिर उसका रूख बदल जाता । वह इसी प्रकार से पूरे दिन चलती रही और टिड्डी किसी दूसरे स्थान पर नहीं जा सकी लेकिन हम लोग पूरे दिन खेत मे बर्तन फोड़ते हुए घूमते रहे ।जब अंधेरा होने लगा तो हमने बर्तन पीटना बंद किया । इस दौरान सरकार के टिड्डी नियंत्रण दल भी बहुत सक्रिय हुए और कई ड्रोन आए जिनकी मदद से दवा का छिड़काव किया गया । जिसकी वजह से बहुत सारी टिड्डी मारी गई । इसके बाद रात मे जिन खेतों मे टिड्डी अपना डेरा डाले हुए थी ।उन खेतों मे भी दवा का छिड़काव किया गया था। जब हम सुबह खेत के अंदर गए तो देखा कि बहुत सारी टिड्डी मारी जा चुकी हैं। हालांकि वे संख्या मे बहुत अधिक होने की वजह से मरी नहीं लेकिन हमारे यहां पर जहां पर भी यह रात को रूकती दवा के छिड़काव करके इनको मार दिया जाता ।इस प्रकार से बड़े बड़े टिड्डी दल को खलास कर दिया गया । इस संकट मे उन किसानों का कोई नुकसान नहीं हुआ जो अपने खेत मे टिड्डियों को उड़ाते रहे ।
टिड्डी कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तरी अमेरिका, यूरोप, एशिया और अफ्रीका सहित दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में टिड्डे की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जा सकती हैं।वैसे यह शुष्क जलवायु को पसंद करती हैं लेकिन इनको पनपने के लिए नमी की आवश्यकता होती है। तेज धूप के अंदर यह नहीं पनप सकती हैं। जब यह अंडा देते हैं तो इसको जमीन के उपर रख दिया जाता है।कुछ ही दिनों के अंदर अंडे से बच्चा निकलता है और उसको फाका हमारे यहां पर कहा जाता है । यह उड़ता नहीं है लेकिन काफी तेजी से चलता है। यदि इसको नहीं मारा गया तो यह भी एक टिड्डी का रूप धारण कर लेता है।
Lesser Marsh Grasshopper ( Chorthippus albomarginatus)
Chorthippus albomarginatus एक प्रकार का कम दलदल वाला टिड्डा है जोकि फिनलैंड और दक्षिणी स्कैंडिनेविया से लेकर दक्षिण में स्पेन के अंदर देखने को मिलता है। इसकी मादा 20 मिलीलिटर तक बढ़ती है तो मादा के पास सफेद पंख भी होते हैं।दोनों लिंग हरे से भूरे रंग के रंग में बेहद परिवर्तनशील हो सकते हैं। इन टिड्डों के पंखों मे एक उभार होता है जहां पर यह शरीर से जुड़े होते हैं। इनके पंख इनको कम दूरी पर उड़ने की अनुमति प्रदान करता है।
वयस्क जुलाई के दौरान उभरेंगे और आम तौर पर अक्टूबर के अंत तक बने रहेंगे। इनका जीवनकाल काफी छोटा होता है।यह नम और दलदली घास के मैदानों के अंदर रहना पसंद करते हैं। इसके अलावा सड़क के किनारे भी यदि पानी एकत्रित रहता है तो यह देखने को मिलते हैं।
Common Field Grasshopper (Chorthippus brunneus)
थुनबर्ग के अंदर इसको पहली बार वर्णित किया गया था। इसको ग्रिलस ब्रुनेन्स के नाम से जाना जाता है। यह सामान्य क्षेत्र टिड्डी है। यह रंग के अंदर कई प्रकार के हो सकते हैं । जैसे काले, हरे, बैंगनी या सफेद रंग के भी हो सकते हैं।और यदि पैटर्न की बात करें तो यह भी अलग अलग आ सकती है। हरे और बैंगनी दोनों प्रकार के टिड्डों के पास अग्रवर्ती पैटर्न होती है।
यह यूरोप , उत्तरी अफ्रीका और शीतोष्ण एशिया में पाए जाते हैं।यह टिड्डे सूखे घास वाले क्षेत्रों के अंदर रहना पंसद करते हैं। इसके अलावा इनके रहने वाले स्थान पर बारिक घास होता है।बारीक छनी हुई घास की प्रजातियां और लंबी कद वाली ऊंचाइयां आमतौर पर हीथलैंड्स में अधिक होती हैं जहां कृषि स्थलों की तुलना में भूमि का कम मानव परिवर्तन होता है।
और इस प्रजाति के संभोग की बात करें तो पुरूष महिलाओं को गाकर आकर्षित करता है। और यदि किसी महिला या मादा को पुरूष का गीत पसंद आ जाता है तो वह उसकी ओर आकर्षित हो जाती है और पुरूष उसे फिर एक नरम गाना सुनाता है। इस प्रकार से यह जब तक होता है जब तक की संभोग से विरक्ती नहीं हो जाती ।
प्रजनन के बाद मादा 10 सप्ताह तक अंडे देती है। और उसके बाद अंडों को सेया जाता है।अप्रैल के शुरू में अंडे सेते हैं। और बच्चे बालिंग होने के लिए चार चरणों से गुजरते हैं।
अंडे आमतौर पर रेतीली भूमी और सूखे आवास के अंदर रखे जाते हैं।28-35 डिग्री सेल्सियस के बीच अंडे की सबसे बड़ी संख्या का उत्पादन करते हैं।और टिड्डे के अंडे का आकार कई कारकों से प्रभावित होता है। जैसे कि अधिक उम्र की मादा ,या मादा का स्वास्थ्य खराब होने से अंडे छोटे होते हैं। जबकि पहले वाली हैचिंग शुरू में छोटी होती हैं, पहले की हैचलिंग बाद के हैचलिंग की तुलना में बड़े आकार की होती हैं। और सबसे भारी हैचलिंग ठंडे मौसम मे होती है। 5 °C के तापमान के उपर अंडे को आसानी से 1 साल के लिए रखा जा सकता है और उसके बाद अंडे को तोड़ा जा सकता है।
विकास दर आर्द्रता से प्रभावित नहीं होती है लेकिन गर्मी स्रोत से प्रभावित होती है।मादा को विकसित होने मे समय लगता है जबकि नर समान रूप से विकसित होता है।और नर मादाओं की तुलना मे अधिक समय तक जीवित भी रहते हैं।
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
राज्य: | पशु |
फाइलम: | आर्थ्रोपोड़ा |
वर्ग: | इनसेक्टा |
गण: | ऋजुपक्ष कीटवर्ग |
सबऑर्डर: | कैलीफेरा |
परिवार: | एक्रिडिडा |
जीनस: | चॉर्थिपस |
प्रजातियां: | सी। ब्रुनेन्स |
द्विपद नाम | |
चॉर्थिपस ब्रुनेन्स |
Meadow Grasshopper (Chorthippus parallelus)
स्यूडोकोरथिप्पस पैरेल्लस एक मैदानी टिड्डा होता है। और यह यह गैर-शुष्क घास के मैदानों में पूरे यूरोप और एशिया के कुछ निकटवर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी कुछ उपप्रजातियां भी होती हैं जोकि इस प्रकार से हैं
- स्यूडोकोरथिपस पैरेल्लस एरिथ्रोपस (फेबर, 1958)
- Pseudochorthippus Parallelus Parallelus (Zetterstedt, 1821)
- स्यूडोकोरथिपस पैरेल्लस सेर्बिकस करमन , जेड, 1958
- स्यूडोकोरथिप्पस पैरेल्लस टेनुएलस (ब्रूली, 1832)
यूरोप के अटलांटिक तट, ब्रिटिश द्वीपों व यह उत्तर में स्कैंडिनेविया और दक्षिण में स्पेन और दक्षिण में अनातोलिया के अंदर आसानी से देखने को मिलती है।इसकी खास बात यह है कि यह नम क्षेत्रों के अंदर देखने को मिलती है। शुष्क मैदानों मे यह नहीं पाई जाती है।
मादा लगभग 2 सेमी तक बढ़ती है और लगभग 1.5 सेमी तक नर बढ़ते हैं। मादा नर से अधिक सक्रिय होती है।मादा मे विंग केस होता है। इसके अलावा जबकि पुरुषों के पास लंबे विंग केस हैं जो पेट के लगभग टिप तक फैले हुए हैं। वे हरे, भूरे, बैंगनी-लाल और गुलाबी रंग के रूप में हो सकते हैं। लेकिन यह सबसे अधिक हरे रंग के ही होते हैं।इनके अंदर यह रंग सबसे आम होता है।
पश्चिमी यूरोप में रिसर्च कर्ताओं ने इन टिड्डे का उपयोग मानव भोजन के रूप मे बताया है। इसका कारण यह है कि इनके अंदर अच्छी मात्रा मे ऐमिनो ऐसिड़ होता है। सूखे वजन पर 69% प्रोटीन होता है।लेकिन इन कीड़ों का प्रयोग करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि इनसे किसी भी प्रकार की एलर्जी तो नहीं हो रही है। यदि हम इनके मिटिंग की बात करें तो यह भी गीत गाकर मादाओं को आकर्षित करते हैं।
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
राज्य: | पशु |
फाइलम: | आर्थ्रोपोड़ा |
वर्ग: | इनसेक्टा |
गण: | ऋजुपक्ष कीटवर्ग |
सबऑर्डर: | कैलीफेरा |
परिवार: | एक्रिडिडा |
उपपरिवार: | गोम्फोसेरिनाए |
जनजाति: | गोम्फोसरिनी |
जीनस: | स्यूडोचोर्थिपस |
प्रजातियां: | पी। समानता |
द्विपद नाम | |
स्यूडोकोरथिप्पस समानता |
Egyptian Locust (Anacridium aegyptium)
मिस्र का टिड्डा सबसे बड़े यूरोपिय टिड्डे के अंदर आता है।नर 2.2 इंच तक लंबे होते हैं, और मादा 2.8 इंच तक लंबी होती हैं।यह पूरे यूरोप के अंदर देखने को मिलते हैं।और उत्तरी अफ्रिका के अंदर यह घूसर भूरे रंग के होते हैं। इनके अंदर खड़ी और काली धारियां होती हैं।
ये घास-फूस समुद्र और समुद्र तल से 1,500 मीटर की ऊँचाई पर, गर्म और उज्ज्वल वातावरण में पेड़ों और झाड़ियों, झाड़ियों की भूमि, मैक्विस और बागों में निवास करना काफी पसंद करती हैं।
यह टिड्डे पतियों को खाते हैं और पेड़ों पर रहना बहुत अधिक पसंद करते हैं।इस टिड्डे की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यह एकांत प्रजाति है। और यह एकत्रित नहीं होती हैं। यह फसलों के लिए किसी भी प्रकार का खतरा पैदा नहीं करते हैं। मिस्र के अंदर यह आसानी से देखने को मिल जाती हैं।अप्रैल के अंदर अंडों से बच्चे निकलते हैं।
Mottled Grasshopper (Myrmeleotettix maculates)
यह छोटे घास फूस और चट्टानी भूमी के अंदर देखने को मिलते हैं।यह धूप को पसंद करते हैं और पूरे यूरोप ,यूके और रूस व ग्रिस के अंदर देखने को मिलती हैं।इनके पैटर्न अलग अलग होते हैं। वे समुद्र तल से समुद्र तल से लगभग 2,500 मीटर ऊपर पाए जाते हैं, उदाहरण के लिए फ्रांसीसी आल्प्स और बाल्कन में। यह एक लघु प्रजातियां होती हैं जोकि जून से अक्टूबर तक वयस्क रूप लेती हैं।
Common Green Grasshopper ( Omocestus viridulus)
यह हरे रंग की टिड्डी होती है।लेकिन कुछ टिट्डी हल्के भूरे रंग की हो सकती हैं।और नर के पेट पर किसी भी प्रकार का रंग नहीं होता है।इस प्रजाति की आंखें भूरी या पीली हो सकती हैं। शरीर की सामान्य लंबाई 17-20 मिलीमीटर (0.67–0.79 इंच) होती है। ओमेकोस्टस विरिड्यूलस आमतौर पर यूरोप के आस पास नम क्षेत्रों के अंदर रहना पसंद करता है।यह मंगोलिया से लेकर साइबेरिया तक फैली हुई है।यह लंबी घास के अंदर रहना पसंद करती हैं।
यह प्रजाति घास को काफी पसंद करती है।और यह प्रजनन के समय जड़ों के आस पास अंडे देना शूरू कर देते हैं। और अप्रेल के अंदर बच्चे निकलते हैं जो एक महिने बाद पंखों के साथ उड़ना शूरू कर देते हैं।
जंगली में, नर मादा को जल्दी से पकड़ लेते हैं और संभोग करते हैं, और मादा तब तक गायन से परहेज करती है जब तक कि वे कम से कम एक समूह में अंडे नहीं देतीं। यदि नर मादा के साथ संभोग करने में विफल रहता है। तो वह फिर से प्रयास करने का कार्य करता है।
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
राज्य: | पशु |
फाइलम: | आर्थ्रोपोड़ा |
वर्ग: | इनसेक्टा |
गण: | ऋजुपक्ष कीटवर्ग |
सबऑर्डर: | कैलीफेरा |
परिवार: | एक्रिडिडा |
उपपरिवार: | गोम्फोसेरिनाए |
जनजाति: | Stenobothrini |
जीनस: | Omocestus |
प्रजातियां: | ओ। विरिडुलस |
द्विपद नाम | |
ओमेकोस्टस विरिडुलस |
Slender Groundhopper ( Tetrix subulata )
यह टिड्डा टेट्रीगिडी के प्राचीन परिवार से संबंधित है। इसके अंदर 180 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।स्लेंडर ग्राउंडहॉपर यूरोप, एशिया, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका के अंदर देखने को मिलता है। इसके अलावा यह नम वातावरण मे भी देखने को मिलता है। जैसे कि नदी के किनारे पानी एकत्रित होने वाले स्थानों के आस पास ।और यह शुष्क क्षेत्रों के अंदर भी देखने को मिलते हैं। काफी छोटे होने की वजह से यह कहीं पर भी आसानी से छुप सकते हैं।हरे, ग्रे और भूरे रंग के होते हैं और मामूली दूरी तक उड़ान भरने मे सक्षम होते हैं।
इन टिड्डों मे मादाएं नर को यह संकेत देती हैं कि वे संभोग कर रहे हैं। और उसके बाद अगस्त के अंदर मादाएं अंडे देती हैं। बच्चे जुलाई के अंदर पैदा होती है।
Matchstick Grasshoppers
इनको आमतौर पर बंदर और माचिस के टिड्डे के तौर पर जाना जाता है।इनके पतले पैर होते हैं और कई प्रजातियां पंख रहित होती हैं तो कुछ के पंख भी होते हैं। उनके पास तीन खंडों वाले तारसी हैं और टिप पर एक घुटने के अंग के साथ एक छोटा एंटीना है। यह लगभग पूरी दुनिया के अंदर देखने को मिलते हैं।यह पौधों पर फीड करते हैं।इनके शरीर को शरीर को तीन भागों में विभाजित किया गया है, जो नीले, नारंगी, हरे और काले सहित विभिन्न प्रकार के रंगों में दिखाई दे सकते हैं।
Stick Grasshoppers
जम्पिंग स्टिक्स के नाम से भी इनको जाना जाता है । यह टिड्डों का समूह होता है।यह दक्षिणी अमेरिका के अंदर देखने को मिलती है।लंबे और फिर पिले और भूरे रंग के होते हैं। और पंखहीन भी होते हैं।यह घने वनों के अंदर निवास करने वाले कीड़े होते हैं जो आसानी से खुद को पेड़ों के अंदर छुपा लेते हैं।ताकि शिकारी इनको खोजने मे सक्षम नहीं हो सकें ।
Bladder Grasshoppers
मूत्राशय टिड्डी दक्षिणी अफ्रीका की मूल निवासी हैं।निमोरैक्रिस ब्रॉनी इसके अंदर सबसे छोटी प्रजाति है जो घास के अंदर देखने को मिलती है। इसी प्रकार से फिजोफोरिना लिविंगस्टोनी ब्लैडर ग्रासहॉपर बड़ी प्रजाति होती है। वयस्क पुरुषों की शरीर की लंबाई 11.5 से 68.0 मिमी तक और महिलाओं की लंबाई 22.0 से 107 मिमी तक होती है। नर विशेष पंखों के साथ एक फुलाये हुए शरीर के साथ होते हैं। और पर ध्वनी का भी उत्पादन करते हैं। और मादा शरीर मे बड़ी होती है। इनके अंदर ध्वनी के उत्पादन करने वाला तंत्र पूरी तरह से अलग होता है।
नर काफी जोर से कॉल करते हैं। और यह कॉल का उत्तर मादाएं भी देती हैं। इनके पास कॉल करने के लिए एक अलग तंत्र होता है। नर के द्धारा बोली गई कॉल को 2 किलोमीटर तक सुना जा सकता है। इसकी कुछ प्रजातियों के नाम कुछ इस प्रकार से होते हैं।हालांकि सम्पूर्ण प्रजातियों का उल्लेख यहां पर करना संभव नहीं है।
- बुलैक्रिस मेम्ब्रेकोइड्स
- बलाक्रिस ओबिका
- पैराफिज़ेमक्रिस स्पिनोसस
- पीरंगुइयाक्रिस नमाक्वा
- न्यूमोरा ओननिस
- बुल्केरस सेराटा
- बुल्लाक्रिस यूनिकोलर
- परबुल्लाक्रिस वैनोनी
- फिजिमैक्रिस पैपिलोसस
- फिजिमैक्रिस वैरियोलोसस
White-lined Bird Grasshopper
यह टिड्डी एक्रिडिडा परिवार से संबंधित है और इसमें एक पृष्ठीय पट्टी भी है, जो हरे रंग के शरीर पर सबसे अधिक पीला रंग है। यह उत्तरी अमेरिका जैसे स्थानों पर रहती है और शुष्क स्थानों पर रहना पसंद करती है।संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको के बीच देखने को मिलती है। और यह घास और पतियों को खाना पसंद करती है।
Obscure Bird Grasshopper
यह टिड्डे संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासी होते हैं।यह पीला-हरा रंग है, जो गहरे हरे या भूरे रंग के होते हैं। और यह 3 इंच तक बड़ा हो सकता है। इसके पंख भूरे होते हैं।पंख होने की वजह से यह आसानी से उड़ सकता है।
Western Horse Lubber
दक्षिण-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका और उत्तरी मैक्सिकोके शुष्क निचले सोनोरान जीवन क्षेत्र में पाए जाने वालेपरिवार रोमेलिडे की एक अपेक्षाकृत बड़ी घास- फूस की प्रजाति है।इसकी पहचान इनके चमकदार काले शरीर से होती है।यह टिड्डे रेगिस्तानी झाड़ियों पर बसेरा करते हैं। इनको पहली बार पहली बार 1838 में हरमन बर्मिस्टर द्वारा वर्णित किया गया था।
यह उत्तरी अमेरिका की सबसे बड़ी प्रजातियों मे से एक है।इसके अंदर मादा की लंबाई 7 सेंटीमिटर तक जा सकती है और वजन 9 ग्राम का होता है। इसी प्रकार से पुरूषों का औसत वजन 3 ग्राम तक ही होता है। शरीर ज्यादातर काले रंग का होता है, जिसमें हरे रंग की नसों के साथ पतले और पीले रंग के अग्रभाग होते हैं।
वयस्क के एंटीना और सिर में नारंगी निशान शामिल हैं। पुरुषों के पूर्वाभास सामान्य रूप से पेट के सिरे को बढ़ाते हैं।और केवल 10 प्रतिशत नर के पास ही उड़ान के लिए पंख होते हैं।।
सबसे बड़े आर्थ्रोपोड्स में से एक है। संयुक्त राज्य में, यह दक्षिणी एरिज़ोना से टेक्सास के बिग बेंड क्षेत्र में चिहुआहुआन रेगिस्तान मे निवास करता है।यह बबूल , मिमोसा , एफेड्रा और युक्का झाड़ियों के बीच पाया जा सकता है ।चिहुआहुआन रेगिस्तान के अंदर गर्मियों मे भी अधिक वर्षा होने की वजह से यहां पर अच्छा घास फुस उगता है।
बबूल और मिमोसा जैसे पौधों पर यह फीड नहीं करता है लेकिन झाडियों और फूलों वाले पौधों को खाना काफी पसंद करता है।यह बस दिन के उजाले के दौरान ही खाना खाता है और रात मे शिकारियों से बचे रहने के लिए छिपा रहता है।
यह टिड्डा नर भक्षी होता है।कभी-कभार कीट और कशेरुकाओं को भी खा लेता है। इसके अलावा गंध की मदद से आस पास पड़े किसी भी शव का पता लगा सकता है जिसकी मदद से यह भोजन बना सकता है। हालांकि नर की तुलना मे मादा को अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है। यह अंडे उत्पादन के लिए ।
मादाएं झाड़ियों या बड़ी चट्टानों के आधार पर अंडे देती हैं, लगभग 50 अंडे एक ही फली में 4-8 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी में जमा करती हैं।संयुक्त राज्य अमेरिका में, अंडे अक्टूबर में सबट्रेनियन अंडे की फली में जमा होते हैं। टिड्डे अक्टुबर के अंदर परिपक्व हो जाते हैं और नवंबर सर्दियों के दौरान मर जाते हैं।जब लार्वा पैदा होते हैं तो कुछ समय के लिए वे चिंटियों के शिकार हो जाते हैं लेकिन उसके बाद वे लाल रंग से काले रंग के अंदर बदल जाते हैं। संभोग परिपक्वता के लगभग 12 दिनों के बाद शुरू होता है।
इन टिडियों के अंदर नर यौन रूप से आक्रमक होती हैं।पहले महिलाओं को सावधानी से डंक मारते हैं। मादाएं हिंसक रूप से प्रतिक्रिया करती हैं जब कूद, किकिंग, दौड़ना और पक्ष की ओर से घुमाया जाता है। । मैथुन के तुरंत बाद, मादाएं नम हो जाती हैं और नर को अपनी पीठ पर लाद लेती हैं। नर ओवपोसिटिंग मादा की रक्षा नहीं करते हैं।हालांकि मादाएं नर को आकर्षित करने के लिए फोरोमोन स्त्रावित करती हैं और नर व मादाएं 24 घंटे तक संभोग अवस्था मे रह सकती हैं।
Eastern Lubber
रोमाली दक्षिण-पूर्वी और दक्षिण-मध्य संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासी टिड्डों की एक जाति है जिसको कई नामों से जाना जाता है जैसे पूर्वी फूहड टिड्डी , फ्लोरिडा फूहड , और फ्लोरिडा फूहड टिड्डी आदि । यह अपने रंग की वजह से जानी जाती है और यह 3 इंच तक पहुंच सकती है।
वयस्क अवस्था में, वे 2.5-3 (64-76 मिमी) तक पहुंचते हैं,इसकी आधी लंबाई के पंख होते हैं जो पीले रंग के होते हैं।आम बोलचाल की भाषा के अंदर इसको कब्रिस्तान टिड्डी या विशाल टिड्डी के रूप मे भी जाना जाता है।
पश्चिम उत्तरी केरोलिना करने के लिए टेनेसी , में जॉर्जिया , अलबामा , मिसिसिपी , लुइसियाना , अरकंसास और टेक्सास , और भर में फ्लोरिडा , मिसौरी और एरिजोना। वे खुले पाइनवुड्स, वेजी वनस्पति और वेजी फील्ड में यह निवास करती हैं। यह अपने दुश्मनों को डराने के लिए दुर्गंधयुक्त स्त्राव का उत्सर्जन करता है जो इसके दुश्मनों को डरा सकता है।
Desert Locust
रेगिस्तान टिड्डी के बारे मे तो आपने बहुत अधिक सुना ही होगा ।अफ्रीका में, अरब और पश्चिम एशिया के माध्यम से, और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। रेगिस्तानी टिड्डे अपने शरीर मे समय समय पर बदलाव करते रहते हैं।और यह नए नए स्थानों पर आक्रमण भी करते रहते हैं।
वर्षा के दौरान यह फसलों को बड़ी संख्या मे नुकसान पहुंचा सकती हैं। यह बड़ी मात्रा मे हरी फसलों को चट कर सकती हैं।एक विशिष्ट झुंड प्रति किमी 2 में 150 मिलियन टिड्डों से बना हो सकता है और प्रचलित हवा की दिशा में उड़ सकता है,और यह एक टिड्डा भी एक दिन मे 35,000 लोगों का भोजन खा सकता है। अपने यहां पर रेगिस्तानी टिड्डे ही तो आक्रमण करते हैं।
अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के कई देशों में इन टिड्डे के हमले की वजह से खाने की समस्या पैदा हो जाती है। और यदि इनको नियंत्रित नहीं किया जाता है तो यह भूखमरी की स्थिति को भी पैदा कर सकती हैं।
जिन स्थानों पर यह टिड्डे हमला करते हैं। उस स्थान की सारी फसलों को चट कर जाती हैं।फरवरी 2020 में, एफएओ ने घोषणा की कि रेगिस्तानी टिड्डे 25 वर्षों में सबसे खराब आक्रमण में उत्तर पूर्वी अफ्रीका में हजारों हेक्टेयर फसलों और चराई की भूमि को नष्ट कर रहे हैं।अन्य पूर्वी अफ्रीकी देशों जैसे केन्या , युगांडा , तंजानिया आदि देशों के अंदर रेगिस्तानी टिड्डे काफी अधिक नुकसान करते हैं।
जीनस के अंदर 30 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं।यह ऐशिया और दक्षिणी अमेरिका के अंदर वितरित की जाती हैं।माना जाता है कि 6 से 7 मिलियन साल पहले यह जीनस अफ्रिका के अंदर उत्पन्न हुआ था।
रेगिस्तानी टिड्डे का विकास 3 चरणों के अंदर होता है। पहला अंडाणू और दूसरा हॉपर और तीसरा वयस्क ।एक परिपक्व नर मादा की पीठ पर बैठ जाता है और उसके बाद उसको अपने पंजों से पकड़ लेता है फिर शुक्राणू उसके अंदर स्थानान्तरित करता है।
उसके बाद मादा टिड्डी नरम और उपयुक्त मिट्टी की तलास करती है और फिर वह मिट्टी जांच करती है फिर एक छेद के अंदर 100 अंडे देती है।अंडे की फली जमीन की सतह से 3 से 4 सेमी तक गहरी होती है। अंडे जमीन से नमी को अवशोषित करते हैं अंडों से पहले ऊष्मायन अवधि तापमान के आधार पर दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक हो सकती है।
उसके बाद अंडों से हॉपर निकलते हैं जिनको कि फॉका कहा जाता है। यह अन्य हॉपरों की और आकर्षित होते हैं और एक समूह बना लेते हैं। यह भोजन करना शूरू कर देते हैं। परिपक्वता तापमान और भोजन की उपलब्धता पर निर्भर करती है। कुछ मामलों मे यह 2 से 4 सप्ताह के अंदर परिपक्व हो जाते हैं तो कुछ मामलों मे इनको 6 महिने से अधिक का समय लगता है।
और नर एक विशेष प्रकार की गंध को छोड़ते हैं जो मादाओं के अंदर की परिपक्वता को विकसित करती है। और उनको उत्तेजित करने का कार्य करने का काम करती है।
टिड्डी हवा की दिशा के अंदर चलती है। वे एक दिन में 100 से 200 किमी की दूरी तय करते हैं। यह समुद्र तल से 2000 मीटर की उंचाई तक उड सकती हैं।क्योंकि अधिक उंचाई पर तापमान ठंडा होता है।यह हिमालय और एटलस जैसी पर्वत की चोटी को पार नहीं कर सकती ।
रेगिस्तानी टिड्डे का नियंत्रण
दोस्तों रेगिस्तानी टिड्डे को नियंत्रित करना इतना आसान कार्य नहीं है। कारण यह है कि यह काफी दूर तक उड़ते हैं। यदि भारत की बात करें तो भारत मे पहले हर जिले के अंदर टिड्डे नियंत्रण के लिए केंद्र स्थापित किया गया था। और जब भी किसी गांव के अंदर टिड्डे हमले करते थे तो सरकारी कर्मचारियों को सूचित किया जाता था। और वे टि्डडों के उपर दवा गिराते थे। जिससे उनकी मौत हो जाती थी। हालांकि अब सरकार टिड्डों को मारने के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल कर रही है।
रेगिस्तानी टिड्डे में शिकारी ततैया और मक्खियाँ, परजीवी के ततैया , शिकारी बीटल लार्वा, पक्षी और सरीसृप जैसे प्राकृतिक दुश्मन होते हैं । ये एकान्त आबादी को नियंत्रण में रखने में प्रभावी हो सकते हैं।
वैसे आपको बतादें कि टिड्डों को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ एक ही तरीका काम करता है और वो है दवा का छिड़काव ।
लेकिन यह करोड़ों की संख्या मे होने की वजह से दवा भी उतनी अधिक प्रभावी नहीं रहती है। जब किसी स्थान पर यह आक्रमण करती हैं तो वहां पर दवा का छिड़काव होता है। और जो बच जाती हैं वो दूसरे क्षेत्र पर आक्रमण करती हैं। वहां पर भी दवा का छिड़काव होता है। इस प्रकार से उनकी संख्या तेजी से कम होती है। और अंडे देने के बाद हॉर्पर निकलते हैं। जो पहले बस चल पाते हैं उड़ने मे सक्षम नहीं होते हैं यदि इनको पहले ही दवा डालकर मार दिया जाए तो टिड्डी को नियंत्रित किया जा सकता है।
हमारे यहां पर जब टिड्डों ने आक्रमण किया तो उनके अंडों से बड़ी संख्या मे हॉपर निकले उसके बाद दावा का छिड़काव किया गया इनके उपर दवा का छिड़काव करना काफी आसान होता है क्योंकि यह समूह के अंदर रहते हैं।
1915 ओटोमन सीरिया मे टिड्डी का आक्रमण
मार्च से अक्टूबर 1915 को, झुंड की टिड्डियों में और आसपास के क्षेत्रों छीन फिलिस्तीन , माउंट लेबनान और सीरिया के अंदर टिड्डी ने हमला कर दिया था।फल, सब्जियां, फलियां, चारा और अनाज को यह चट कर गई थी।फसल के नष्ट होने से मूल्य के अंदर बढ़ोतरी हुई और 25 अप्रैल 1915 को एक अखबार ने न्यूज के अंदर लिखा की आलू की कीमत पहले की तुलना मे छ गुना अधिक हो गई थी।चीनी तो मिल ही नहीं रही थी। लेबनान के अंदर यह महा अकाल था जिसकी वजह से 1915 से 1918 के बीच आधे लोगों की मौत हो गई थी।
इस समय टिड्डे को नियंत्रित करने के लिए एक कानून बनाया गया । इसके अंदर यह कहा गया कि 20 से 60 वर्ष के पुरूष को 20 किलो टिड्डे के अंडे एकत्रित करके नष्ट करने होंगे वरना £ 4.40 जुर्माना देना होगा । और इसके लिए कई लोगों ने जुर्माना भी चुकाया था।
2003-2005 रेगिस्तानी टिड्डे का अफ्रिका के अंदर अटैक
अक्टूबर 2003 से मई 2005 तक, पश्चिम अफ्रीका ने 15 वर्षों में सबसे बड़े रेगिस्तान टिड्डे के प्रकोप का सामना किया। अल्जीरिया , बुर्किना फासो , कैनरी द्वीप , केप वर्डे , चाड , मिस्र , इथियोपिया , गाम्बिया , ग्रीस , गिनी , गिनी बिसाऊ , इज़राइल , जॉर्डन , लेबनान , लीबिया अरब जमहीरिया , माली , मॉरिटानिया , थे। मोरक्को , नाइजर , सऊदी अरब , सेनेगल , सूडान, सीरिया , और ट्यूनीशिया जैसे देशों के अंदर टिड्डी ने 2004 के अंदर आक्रमण किया था। 2003 की शरद ऋतु में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने टिडियों के अंदर बढ़ोतरी को नोटिस किया ।पश्चिमी सहारा में कुछ क्षेत्र100 मिमी से अधिक बारिश प्राप्त की, जबकि वे आम तौर पर एक वर्ष में लगभग 1 मिमी बारिश प्राप्त करते हैं।
और इसका परिणाम यह रहा कि यहां पर मौसम 6 महिने के लिए मौसम टिड़ियों के लिए अनुकूल हो गया ।और उसके बाद टिड्डों का काफी तेजी से विकास हुआ । उसके बाद टिड्डों ने तेजी से आस पास के क्षेत्रों की ओर बढ़ना शूरू कर दिया ।50 साल में पहली बार। टार्फाया और टैन-टैन के बीच मोरक्को में एक झुंड 230 किमी लंबा, कम से कम 150 मीटर चौड़ा था, और इसमें अनुमानित 69 बिलियन टिड्डे थे। फसल के नुकसान का अनुमान यूएस $ 2.5 बिलियन तक था, जिसका पश्चिम अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा की स्थिति पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा था।
2019–20 पूर्वी अफ्रीका और एशिया मे टिड्डी का आक्रमण
जनवरी 2020 से, केन्या में रेगिस्तानी टिड्डियों की एक बहुत बड़ी आबादी एकत्र हुई। कृषि अधिकारियों का अनुमान है कि मंडेरा, मार्सैबिट, वजीर, इसियोलो, मेरू और साम्बुरु काउंटियों में 5,000 किमी तक टिडिया एकत्रित हो गई।और 10,000 किमी तक के क्षेत्रों को टिड्डी ने चट कर दिया ।
1 फरवरी 2020 को पाकिस्तानी सरकार ने फसलों को नष्ट करने वाले रेगिस्तानी टिड्डों के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करदी थी। टिड्डियां अफ्रीका से पाकिस्तान की ओर पलायन कर गई हैं, और 27 मई, 2020 तक भारत पहुंच गई थी। और यहां पर भी उन्होंने काफी तबाही मचाई। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब आदि क्षेत्रों के अंदर टिड्डी ने भारी नुकसान किया ।