आपके भी दिमाग मे आया होगा कि तराइन का मैदान कहाँ है ? यातराइन का मैदान कहाँ स्थित है ? जहां पर महत्वपूर्ण युद्व लड़े गए थे।तराइन के युद्ध के बारे मे हम सभी जानते हैं । इतिहास के अंदर तराइन के 3 युद्ध के बारे मे जिक्र मिलता है। तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई०) व तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई०) को हुआ था। इसके अलावा तराइन का तीसरा युद्ध जनवरी 1216 में के अंदर लड़ा गया था। तराइन का मैदान के मैदान का और भी बहुत अधिक महत्व है। प्राचीन काल से ही यहां पर उपयोगी कार्य होते रहे हैं। यह क्षेत्र बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इस लेख के अंदर हम तराइन के पास की दो जगहों के महत्व के बारे मे विस्तार से चर्चा करने वाले हैं।
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तराइन का मैदान कहाँ है
युद्ध क्षेत्र भारत के वर्तमान राज्य हरियाणा के करनाल जिले में करनाल और थानेश्वर (कुरुक्षेत्र) के बीच था, जो दिल्ली से 113 किमी उत्तर में स्थित है।हालांकि इतनी सालों के अंदर बहुत अधिक चीजें बदल चुकी हैं । फिर भी इन जगहों का महत्व कम नहीं हुआ है। करनाल और थानेश्वर दोनों ही बहुत अधिक महत्वपूर्ण जगह हैं।
करनाल का इतिहासिक महत्व
दोस्तों हरियाणा में स्थित करनाल इस नाम के जिले का मुख्यालय शहर है। यह शहर राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर चण्डीगढ़ से 126 कि॰मी॰ की दूरी पर यमुना नदी के किनारे पड़ता है। आपको बतादें कि तराइन के युद्व को तरावड़ी का युद्ध भी कहा जाता है और तरावड़ी यहीं पर स्थिति है। इसकी उत्तर-पश्चिम दिशा में कुरूक्षेत्र, पश्चिम में जीन्द व कैथल, दक्षिण में पानीपत और पूर्व में उत्तर प्रदेश स्थित है।
इस शहर के बसाने के बारे मे एक कथा मिलती है कि करनाल शहर महाभारत के राजा कर्ण ने बसाया था।नादिरशाह और मुगल बादशाह मुहम्मदशाह के बीच जंग हुई थी जिसके अंदर मुहम्मदशाह की हार हुई थी। 1805 ई के अंदर अंग्रेजो ने इस शहर पर अपना अधिकार कर लिया था । और कर्ण के नाम पर ही शहर का नाम करनाल पड़ गया था।
तरावड़ी एतिहासिक नाम तराइन
तरावड़ी हरियाणा का एक शहर है और इसका इतिहासिक नाम तराइन है। यहीं पर तराइन के प्रसिद्व युद्व हुए थे । यहीं पर तराइन का मैदान है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-१ पर कुरूक्षेत्र व करनाल के मध्य स्थित है।
यहां पर बासमती चावली की खेती की जाती है और यहां से चावलों का निर्यात विदेशों के अंदर भी किया जाता है।आपको जैसा कि हमने उपर बताया कि यह स्थान तराइन का युद्ध अथवा तरावड़ी का युद्ध (1191 और 1192) के कारण प्रसिद्ध है ,जिसने पूरे भारत के अंदर मुस्लिमों के लिए द्वारा खोल दिये थे ।
थानेसर की लड़ाई
यह बात है 9 अप्रैल 1567 की ।इसको तपस्वियों की लड़ाई के रूप में भी जाना जाता है। हरियाणा राज्य में सरस्वती घाघरा नदी के तट पर थानेसर के पास 9 अप्रैल 1567 को एक बड़ी लड़ाई हुई थी। अकबर ने चिलमिलाती धूप के अंदर सन्यासियों के बड़े समूह का सामना किया था जो नदी के अंदर डूबकी लगाने के लिए एकत्रित हुए थे ।यहां पर दो सन्यासियों का समूह था।और इसके अंदर लगभग 800 से 1000 संयासी थे ।इस हमले के अंदर संयासियों को खदेड़ दिया गया था। और इसमे 500 से अधिक लोग मारे गए थे ।
औरंगजेब के पुत्र के नाम पर रखा गया नाम
औरंगजेब के पुत्र का जब जन्म हुआ तो उसका नाम आजम रखा गया । उसके नाम पर इस जगह का नाम आजमाबाद रखा गया लेकिन बाद मे बदल कर इस जगह का नाम तरावड़ी हो गया । औरंगजेब यहां पर चारो ओर दीवार बनाई और तालाब व मस्जिद का निर्माण भी करवाया था।
तरावड़ी स्थित पृथ्वीराज चौहान का किला
पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर में सन 1149 में हुआ था. पृथ्वीराज चौहान ने तरावड़ी में ही अपना किला बनाया था। और यहीं पर कई युद्व लड़े गए थे ।पृथ्वीराज चौहान ने इस किले के अंदर 17 युद्व लड़े थे और पृथ्वीराज चौहान की मौत हो जाने के बाद गौरी का इस किले पर अधिकार हो गया था। और उसने कई वर्षों तक इसका प्रयोग किया था। सन 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो बड़ी संख्या के अंदर जो शरणार्थी भारत के अंदर आए थे वे इसी किले के अंदर रहे और बाद मे यहीं पर बस गए ।
इस किले के उपर भी समय की मार ऐसी पड़ी कि किला अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। और इसके कई सामान गायब हो चुके हैं। लोगों का मानना है कि पुरातत्व विभाग ने इसके उपर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया ।
इसके अलावा खबरे यह भी आ रही थी कि इस किले की जगह पर स्थानिए लोगों ने कब्जा भी कर लिया है। हालांकि इसके अलावा हरियाणा के मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की थी की तरवाड़ी के अंदर प्रथ्वीराज चौहान का स्मारक बनाया जाए गा । हालांकि इसके आगे के बारे मे जानकारी नहीं है।
बास्थली मे महाभारत की रचना हूई थी
बास्थली एक ऐसा स्थान है जिसके बारे मे यह कहा जाता है कि वहां पर ऋषि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की थी ।यह करनाल से 27 कि॰मी॰ दूर है। बरसालू नामक एक गांव भी यहां पर जहां पर एक प्राचीन नाग देवता का मंदिर है।
जिसके बारे मे यह मान्यता प्रसिद्व है कि यदि किसी व्यक्ति को सांप काट लेता है तो वह यहां पर आकर किसी स्थानिए लोग से नाग देवता के आगे देसी घी का दीपक जलाता है और पानी मिश्रित दूध से स्नान कराये तो सांप का जहर उतर जाता है।
थानेसर
थानेसर भी तराइन के निकट ही पड़ता है। यह काफी महत्वपूर्ण शहर है। यह भारत के हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र ज़िले में स्थित एक नगर है। यह दिल्ली से 160 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। थानेसर हरियाणा का एक इतिहासिक नगर है और यहां पर हिंदुओं के अनेक तीर्थ स्थल हैं।
थानेसर का वर्तमान शहर एक प्राचीन टीले पर स्थित है। 1 किमी लंबा और 750 मीटर चौड़ा है।जिसको हर्ष का टीला भी कहा जाता है। 7 वीं शताब्दी के अंदर हर्ष शासनकाल के अंदर बनी कुछ संरचनाएं ही हैं जो अब खंडर के रूप मे ही बची हैं। पुरातात्विक खोज में गुप्ता काल से पूर्व- कुषाण स्तर और रेड पॉलिश्ड वेयर में चित्रित ग्रे वेयर शार्क शामिल हैं।
गुप्त काल के बाद , प्राचीन शहर स्तानिश्वरा वर्धन वंश की राजधानी थी जिसने 6 ठी और 7 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान उत्तर भारत के एक प्रमुख हिस्से पर शासन किया था।वर्धन वंश और उत्तराधिकारी के चौथे राजा Adityavardhana , थानेसर में अपनी राजधानी बनाई थी। । 606 CE में उनकी मृत्यु के बाद, उनके सबसे बड़े बेटे, राज्यवर्धन सिंहासन पर चढ़े। लंबे समय के बाद, राज्यवर्धन की एक प्रतिद्वंद्वी द्वारा हत्या कर दी गई, जिसके कारण 16 वर्ष की आयु में हर्ष सिंहासन पर चढ़ गया।
उसके बाद के वर्षों मे उसने भारत के अनेक हिस्सों के अंदर विजय प्राप्त की थी और कन्नौज पर अधिकार करने के बाद उसको अपनी राजधानी बनाया था। संस्कृत कवि बाणभट्ट के द्वारा लिखित हर्ष की जीवनी हर्षचरित के अंदर इसके बारे मे विस्तार से वर्णन मिलता है।
गजनी के महमूद ने थानेसर के मंदिरों को ही नष्ट नहीं किया था । वरन अपने आक्रमण के दौरान उसने अनेक प्रकार की प्राचीन मूर्तियों को भी नष्ट कर दिया था। उत्तर दिल्ली के राजा आनंदपाल को जब पता चला कि महमूद थानेसर को नष्ट कर देगा तो उसने अपनी सेना को एकत्रित करने की कोशिश की और आस पास के राजाओं से भी संपर्क किया लेकिन इसका कोई भी फायदा नहीं हुआ ।महमूद, हिंदुओं से पहले थानेसर पहुंचा, उसके बचाव के उपाय करने का समय था; शहर को लूट लिया गया था, मूर्तियों को तोड़ दिया गया था, और मूर्ति जुगसोमा को गजनी में भेज दिया गया था।
मुगल युग
शेख चिल्ली का मकबरा थानेसर में स्थित है। यह सूफी अब्द-उर-रहीम अब्दुल-करीम अब्द-उर-रजक का मकबरा भी है ।इस मकबरे को शेख चिल्ली के नाम से भी जाना जाता है।यह मकबरा सूफी संत सूफी संत अब्द-उर-रहीम से जुड़ा हुआ है। मुगल सम्राट अबुल फजल ने अबुल फजल के साथ , 1567 में सूर्य ग्रहण के दौरान कुरुक्षेत्र का दौरा किया था। इसके बारे मे उल्लेख अकबरनामा के अंदर मिलता है।मुगल सम्राट शाहजहां के काल मे भी थानेसर के कई पवित्र जगहों के बारे मे उल्लेख मिलता है।
सिख गुरू की यात्रा
यह स्थान सिखों के लिए भी बहुत अधिक महत्व का है। यहां पर गुरु अमर दास , गुरु हरगोबिंद जी , गुरु हर राय जी , गुरु हर कृष्ण जी , गुरु तेग बहादुर जी ने भी दौरा किया था और उनकी याद मे 4 गुरूद्ववारे बनाए गए हैं। गुरु अमर दास जी के बारे मे यह कहा जाता है कि वे एक बार हरद्वार की यात्रा पर जाते समय इस स्थान पर रूके थे ।
खाप व्यवस्था
आपको बतादें कि महाराजा हर्ष ने अपनी हन राज्यश्री को मालवा नरेश की कैद से छुड़ाने में खाप पंचायत की सहायता मांगी थी ।खापों के चौधरियों ने मालवा पर चढाई करने के लिए हर्ष की सहायता करने के लिए महिलाओं की सेना भी भेजी थी जो राज्यश्री को मुक्त करवा कर लाई थी।महाराजा हर्षवर्धन ने सन ६४३ में जाट क्षत्रियों को एकजुट करने के लिए एक विशाल कन्नौज शहर के अंदर एक विशाल सम्मेलन आयोजित करवाया था।सर्वखाप नाम इस पंचायत का रखा गया था और इसके चार प्रमुख केंद्र थे जिनके नाम इस प्रकार से हैं। थानेसर , दिल्ली , रोहतक और कन्नौज आदि ।
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थानेसर का महाभारत कालीन महत्व
थानेसर का मतलब होता है ईश्वर का स्थान ।यहां पर महादेव का मंदिर है। यह वह जगह है जहां पर यह माना जाता है कि पांड़वों ने भगवान शिव से यह प्रार्थना की थी कि वे युद्व मे जीत का आशीर्वाद प्रदान करें । यह भीष्म कुंड नामक पानी की टंकी को उस समय माना जाता है जब भीष्म महाभारत युद्ध के दौरान बाणों की शैय्या पर लेटे थे ।कालेश्वर महादेव मंदिर यहां का सबसे पुराना मंदिर माना जाता है। ब्रह्मा सरोवर , ज्योतिसर , सननिहृत सरोवर , गुरुद्वारा अन्य धार्मिक स्थल हैं।