दीपावली व्रत कथा deepaavalee vrat katha आरती,विधी व महत्व के बारे में इस के अंदर हम पूरी तरह से जान सकेगे ।
दीपावली को दिवाली भी कहा जाता है । दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावश्या को मनाया जाता है । यह त्योहार पांच त्योहारो के साथ मनाया जाता है जिनकी अलग अलग कथाएं है । यह त्योहार पुरे पाच दिन मनाया जाता है । दो दिन पहले और दो दिन बाद में । कातिक मास की कृष्ण पक्ष को दीपावली का त्योहार आता है ।
दीपावली प्रारम्भ होने वाले दिन को धनतेरस कहा जाता है । इस दिन भगवान धन्वंतरी की पूजा की जाती है । धनतेरस के दिन नये बर्तन व आभूषण खरिदे जाते है । जब रात्री हो जाए तो माता लक्ष्मी के लिए दिपक जलाये जाते है । अगले दिन नरक चौरस मनाया जाता है ।
इस दिन भी दिवाली की तरह ही पूजा करने का विधान होता है । इस दिन भगवान यम की पूजा के लिए दिये जलाए जाते है । नरका सुर नाम के राक्षस का वध भी इसी दिन होया था । नरका सुर का वध भगवान कृष्ण ने किया । नरका सुर अपने पास अनेक कन्याओ को बंधी बनाकर रखता था ।
अगले दिन भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है । इस दिन ही पुरे भारत में दीपावली का त्योहार मनाया जाता है । दीपावली के दिन लोग अपने घर को दिपक की रोसनी से चमकाने लग जाते है । साथ ही अपने परिवार के साथ साथ अपने प्रिय लोगो को आनन्द देते है । उनके साथ बैठकर लक्ष्मी पूजन करते है ।
अगले दिन सभी लोग अपने परिवार के साथ अनेक प्राकार के पकवान बनाकर खाते है । इस दिन गो माता की पूजा की जाती है । साथ ही पूरे भारत में लोग अपने प्रिय व आस पास के लोगो को प्रणाम करते है । कोई राम राम कहता है तो कोई जय लक्ष्मी मा की कहते है । छोटे बच्चे अपने माता पिता व बडे बुर्जुगो के पैर लगकर आशिर्वाद लेते है ।
अगले और अंतिम दिन भाई दुज का त्योहार आता है इस दिन भाई दुज का व्रत कर बहन व भाई दोनो ही यमुना नदी में जाकर स्नान करते है । इस दिन ऐसा माना जाता है की यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन कराकर यह वर मागा की जो भी कोई इस दिन व्रत करकर यमुना में स्नान कर लेगा उसे यमदेव से डरने की जरुरत नही ।
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दीपावली व्रत कथा
एक नगर में एक साहुकार रहा करता था उसकी एक बेटी थी । साहुकार की लडकी को पिपल पर चढना अच्छा लगता था । वह रोजाना ही एक नजदीक पिपल था उस पर जाकर बेठ जाती थी । उस पिपल पर माता लक्ष्मी का वास था । एक दिन माता लक्ष्मी ने उस लडकी से कहा की हे पुत्री क्या तुम मेंरी मित्र बनोगी ।
लडकी ने कहा की मै अभी बच्ची हू में कल आपको मेंरे पिता से पुछ कर बताती हूं । लडकी अपने घर जाकर अपने पिता से पूछती है की हे पिताजी वहा पर पिपल के पास एक औरत रहती है वह बहुत अच्छी है । वह मेरे से मित्रता करना चाहती है क्या मै उसकी मित्र बन जाउ । साहुकार ने अपनी पुत्री को हां कह दि ।
अगले दिन वह लडकी जल्दी से पिपल के पेढ पर चड कर लक्ष्मी माता को कहती है की मेरे पिता ने आपके साथ मित्रता करने के लिए हा कह दि । दोने वहा पर खुब खलने लगे और वह लडकी लक्ष्मी माता से घुलमिल गई । एक दिन लक्ष्मी माता ने कहा की तुम मेरे घर चलोगी क्या आज ।
लडकी अपनी सहेली की बात केसे टाल सकती थी । वह लक्ष्मी के साथ चली गई । उसने लक्ष्मी के घर जाकर देखा की उसका घर तो किसी महल से कम नही है । लक्ष्मी ने अपने घर उस लडकी को लेजाकर विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर खिलाए । उसकी पुरे दिन सेवा की ।
जब वह अपने घर जाने लगी तो लक्ष्मी ने कहा की हे सहेली मेने तो तुम्हे अपने घर बुलाया है अब तुम मुझे कब बुलाओगी । लक्ष्मी की बात सुनकर वह लडकी उदास हो गई ।लडकी के घर की हालत बहुत खराब थी । वह सोचने लगी ये ऐसा भोजन करने वाली और ऐसे महल में रहने वाली मेरे घर में नही रह सकती है ।
जब वह लडकी घर गई तो साहुकार ने कहा की बेटी तुम उदास केसे हो पर साहुकार की बेटी ने अपने पिता से कुछ नही कहा । साहुकार को समझ में आ गया साहुकार कहने लगा की बेटी तुम चिंता मत करो । तुम अपनी सहेली को बुला सकती हो ।
साहुकार ने कहा की बेटी तुम पहले ऐसा करो की एक दिया लेकर आओ । उस दिपक में गाय के घी से चार मुख करकर माता लक्ष्मी की पूजा करो । अपने पिता की बात सुनकर वह लक्ष्मी माता की पूजा करने के लिए चली गई । कुछ समय के बाद एक चिल उढता हुआ आया उसके मुख में हार था ।
वह चिल उस हार को साहुकार के घर में ही छोडकर चला गया था । साहुकार की पुत्री को जब वह हार मिला तो उसने सोचा की यह तो माता लक्ष्मी की कृपा से मिला है । वह अपने पिता को सारी बात बताती है । उसके पिता ने कहा की तुम जाओ और तुम्हारी सहेली को हमारे घर आकर भोजन करने का निमन्त्रण दे आओ ।
साहुकार की पुत्री लक्ष्मी माता को निमंत्रण देकर आ जाती है । जब लक्ष्मी व उनके साथ गणेश जी आए तो उस लडकी ने लक्ष्मी मता व गणेश जी की खुब सेवा की जिससे लक्ष्मी माता बहुत प्रसन्न हो गई । लक्ष्मी माता वहा से चली गई तो कुछ दिनो के बाद साहुकार अमीर बन गया ।
साहुकार व उसकी लडकी को लगा की वे दोनो ही लक्ष्मी माता व गणेश भगवान ही थे । जो उनके कष्ट दुर करने के लिए आए थे । इसलिए यह कहा गया है की जो भी कोई माता लक्ष्मी का व्रत व भगवान गणेश जी का व्रत करेगा उसे धन की कोई कमी नही होगी ।
साथ ही दिपावल के दिन जो भी माता लक्ष्मी व गणेश जी की पूजा करेगा उसके घर में धन की कोई कमी नही होगी उनका जीवन सुख के साथ बितेगा ।
दीपावली व्रत की विधि
- इस व्रत को माता लक्ष्मी के पूजन करने के बाद ही खोला जाता है ।
- व्रत के दिन सुबह जल्दी उठर स्नान करे ।
- अपने घर की साफ सफाई के कार्य में लग जाए और जब शाम हो जाए तो फिर से स्नान करें ।
- बादमें माता लक्ष्मी को भोग लगाने के लिए पानी के चावल बना लें ।
- भगवान गणेश के लिए लड्डू बनाकर रख ले ।
- फिर जब भोजन तयार हो जाए तो भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की प्रतिमा एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें ।
- भगवान गणेश को तिलक करें व बादमे माता लक्ष्मी को भी तिलक करें ।
- अब माता लक्ष्मी व गणेश भगवान के लिए तेल या शुद्ध गाय के घी से दिये जलाए ।
- माता लक्ष्मी व भगवान गणेश के लिए चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदी से पुरी श्रदा के साथ पूजा करें ।
- भगवान गणेश व माता लक्ष्मी की पूजा करते समय यह ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक होता है कि पहले पूजा पुरुष के द्वारा की जाती है ।
- पूजा करने के बाद में नो दिये जलाकर एक थाल में रखे और उन दिये को एक एक करकर जहा पर आपके पशु व रोसनी कम होती है उन जगहो पर रख आवे ।
- इस प्रकार दिवाली के दिन माता लक्ष्मी का व्रत व पूजा की जाती है ।
- गणेश जी को लड्डुओ का भोग लगाए व माता लक्ष्मी को भी भोग लगाया जाता है ।
- भोग लगाने के बाद में अपने बच्चो को बुलाकर उन्हे भी आशिर्वाद लेने को कहे और स्वयं भी उनको आशिर्वाद दे ।
- इसके बाद में सभी को प्रसाद बाट दे ।
- बादमे अपना व्रत खोलकर माता लक्ष्मी का प्रसाद ग्रहण करें और भोजन करें ।
- सभी एक जगह पर इकठे होकर भगवान गणेश की आरती करें । सभी मन लगाकर भजन करें ।
- रात्री का ज्यादा से ज्यादा समय भजन में लगा दे ।
- सभी को इस व्रत व यह त्योहार क्यो मनया जाता है इसकी कथा सुनाए । इस प्रकार पूजा करने से आपकी सभी मनोकामना पुरी हो जाती है ।
- जब दिपक जलाये जाए तो अपने पुरे घर को दिपक की रोसनी से चमका दे ।
महत्व
- इस व्रत को करने से बहुत बडा महत्व होता है । इस दिन एक नही पांच शुभ कार्य होए थे इस लिए यह त्योहार मनाया जाता है ।
- इस व्रत को करने से धन की प्राप्ती होती है ।
- भगवान गणेश की कृपा से घर में कभी सुख की कमी व दुख नही होता है ।
- माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी कार्य शुभ होते है और धन की कोई कमी नही होती है ।
- लक्ष्मी-विष्णु का विवाह भी इसी दिन हुआ माना जाता है इस कारण यह त्योहर मनाने से भगवान विष्णु की भी कृपा आप पर बनी रहती है ।
- जब सारा घर रोसनी से चमक उठता है तो बहुत अच्छा लगता है साथ ही घर से बुरी शक्ति हठ जाती है ।
- इस त्योहर को मनाने से बहुत लाभ पहूंचता है । इस त्योहार से बच्चो को पडाई करने में मन लगता है ।
- इस दिन सारा घर खुसी से चमक उठता हे । इस व्रत को करने से ही बहुत बडा लाभ होता है माता लक्ष्मी से जो भी मागा जाए वह पुरा होता है ।
- व्रत करने से घर के सभी आपस में प्रेम भाव के साथ बात करने लग जाते है ।
- इस दिन परिवार का हर सदश्य अपने घर आकर सभी के साथ प्रेम पुर्वक बात करता है उनके साथ वक्त बिताता है । जिससे बहुत अच्छा लगता है ।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेंवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
लक्ष्मी की आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
श्री गणेश चालीसा
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कह्यऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज शिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
लक्ष्मी चालीसा
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही ॥
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥
गणेश जी के भजन
अरे गणराज पधारो आज, भक्ति का पहना दो अब ताज।
अरे हमें तो श्री चरणों का होवे दर्शन लाभ।। अरे गणराज…
जिसने तुमको प्रथम मनाया, श्री चरणों में शीश झुकाया।
उसका तुमने मान बढ़ाया, रखी भक्तजनों की लाज।। अरे गणराज…
दो बुद्धि हम कदम बढ़ाएं, ऊंच-नीच का भेद हटाएं।
निरंतर तेरे गुण गावें, बजा-बजा निज साज।। अरे गणराज…
अंधकार अज्ञान हटाओ, दुखीजनों को धैर्य बंधाओ।
रामदरश हमको करवाओ, करो पूर्ण सब काज।। अरे गणराज…
लक्ष्मी मां के भजन
जय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
तू सुन ले मेंरी पुकार मेंरी पुकार माता ।।
जय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माताआदि भगवती मा तूने ही जाग को जानम दिया है
तू सावित्री तू ही गौरी तू ही विष्णु प्रिया है ।।
हो ज्योति मई तेरे रूप कई तेरी लीला अपरंपार
अपरंपार माता आदि भगवती मा तूने ही जाग को जानम दिया है ।।
तू सावित्री तू ही गौरी तू ही विष्णु प्रिया है
हो ज्योति मई तेरे रूप कई तेरी लीला अपरंपार
अपरंपार माताजय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
जय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता तेरी दया से पल में बनते बिगड़े काम सभी के
तू जिसे चाहे नारायण की कर दे कृपा उसी पे
तेरा ध्यान धारू गुणगान कारू मेंरी पूजा
मेंरी पूजा कर स्वीकार कर स्वीकारतेरी दया से पल में बनते बिगड़े काम सभी के
तू जिसे चाहे नारायण की कर दे कृपा उसी पे
तेरा ध्यान धारू गुणगान कारू मेंरी पूजा
मेंरी पूजा कर स्वीकार कर स्वीकारजय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
हे माता हे माता हे माता हे माताजय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
जय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
तू सुन ले मेंरी पुकार मेंरी पुकार माता
जय जय लक्ष्मी माता हे माता हे माता
रामचंद्र वनवास काट कर लौटे अयोध्या
दिवाली के दिन ही श्री राम वनवास से अयोध्या आए थे । यह मान्यता है की राम के आने की खुशी के कारण ही आज दिवाली मनाई जाती है । राम 14 वर्ष का वनवास काट कर जब घर आए तो सभी अयोध्या वासी ने राम का स्वागत करने के लिए अपने घर को दिपक से चमकाकर राम का स्वगत किया ।
सभी अयोध्या के लोग जय श्री राम जय श्री राम बोलने लगे । अपने राज्य के लोगो का प्रेम देखकर राम को बहुत खुशी हुई । साथ ही सिता को भी देखने को मिला की राम को लोग कितना मानते है । आज यह त्योहार श्री राम के सिता व लक्ष्मण के साथ वनवास काट कर लोटने की खुशी में मनाया जाता है ।
अपने भाई राम को देख कर भरत को भी बहुत खुशी हुई । साथ ही वह अपने भाई को राज पाठ समभालने के बारे में भी कह देता है । वह तो कहता है की भया मेने तो आपका स्थान इतने दिनो तक समभाला है पर अब आप आ गए हो तो अब आप ही समभाले । मै तो आपका सेवाक बनकर रहना चाहता हूं ।
इस दिन को रावण की मृत्यु के साथ राम की विजय के साथ ही मनाया जाता है । इस तरह से यह माना जाने लगा की बुराई का अंत हो गया और अच्छाई की विजय हुई है । इस कारण से सभी लोग राम को दिपक जलाकर धन्यवाद करते है तथा उनके वापस अपने घर लोटने के कारण उनका स्वागत करते है ।
नरकासुर राक्षस का वध
एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध इस दिन किया था । नरकासुर राक्षस ने देवमाता अदिति की पुत्रीओ को कारागार मे बंद कर कर रखता था । इस कारण वह भागवान कृष्ण से साहयता के तोर पर नरकासुर राक्षस का वध करने की विनती करती है और अपनी पुत्रीओ को उसके चगुल से छुटाने कि विनती करती है ।
भगवान कृष्ण ने देवमाता अदिति की पुत्रीओ को छुटाने का वादा किया और बादमे नरकासुर के पास जाकर उन कन्याओ को पहले छोडने के लिए कहते है । नरकासुर बहुत क्रुर था वह भगवान कृष्ण की बात नही मानी और उन्हे यहा से जाने के लिए कहा जब भगवान कृष्ण वहा से नही गए तो नरकासुर ने भगवान कृष्ण का वध करना चाहा ।
भगवान कृष्ण ने अपने सुर्दशन चक्र के प्रहार से नरकासुर का वध करकर इस संसार को उसके पाप से मुक्ति दिलाई । इसी लिए दिवाली के दुसरे दिन ही नरक चतुर्थी मनाई जाती है । इस दिन कोई भी शुभ कार्य सुरु नही करते है ।
समुद्र मंथन से लक्ष्मी का निकलना
इस कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी ने समुद्र मंथन से अवतार लिया था । उस दिन कार्तिक महीने की अमावस्या थी । इसी दिन से दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा । माता लक्ष्मी को धन की देवी के रुप मे जाना जाता है । इसी कारण सभी लोग चाहे वह गरीब हो या अमीर सभी माता लक्ष्मी की पूजा करते है ।
इनके साथ मे गणेश भगवान की भी पूजा की जाती है । दिवाली के दो दिन पहले की बात है माता लक्ष्मी समुद्र मंथन से रवाना होकर भगवान धनवंतरी की और जाने लगी । जब वे जा रही थी तो उनके हाथ मे एक सोने का कलश था उसमे से धन की वर्षा हो रही थी ।
माता लक्ष्मी का भगवान धनवंतरी के यहा जाने के कारण आज दीपावली के दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है । इस दिन लोग बाजार से सोने चादी के आभुषण खरीदकर लाते है । इसी दिन बाजार से घर के लिए बर्तन लाए जाते है। की इस दिन घर मे सोने चादी की कोई भी चिज आना शुभ माना जाता है ।
राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक
कार्तिक की अमावस्या के दिन राज विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था । राजा विक्रमादित्य एक महान राजा हुआ करते थे । जिनेके बारे मे चारो और बाते होती है । आज भी उनके बारे मे अनेक कथाए सुनने को मिल जाती हैं।
राजा विक्रमादित्य ने अनेक बार मुगलो को धुल चटा दी थी । इसी कारण अनेक लोग इनकी खुशी मे दीपावली का त्योहार मनाते है । और अपने बच्चो को इनकी महानता के बारे मे बताते है ।
पांडव ने अपने राज्य मे फिर से कदम रखा
पांडवो के बारे मे तो आज सभी को मालुम है उनके 13 साल के अज्ञातवास की सजा के बारे मे भी पता है । जब वे अपना 13 साल के अज्ञातवास काट कर वापस अपने राज्य आए तो उनकी खुशी मे दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा । जब वे अपने राज्य मे लोटे तो कार्तिक की अमावस्या थी और उसी दिन से उनकी प्रजा उनके प्रेम को याद कर कर दिवाली का त्योहार मनाने लग गई ।
गुरु गोविंद सिंह को मिली थी आजादी
सिक्ख भी इस त्योहार को मनाते है इसी दिन उनके 6वे गुरु को आजादी मिली थी । जहांगीर नाम के मुगल राजा ने सिखों के 52 राजा को अपने पास बंदी बना लिया था और उन पर अत्याचार किया करता था । गुरु गोविंद सिंह का नाम तो आप लोग सुन चुके होगे । वे सिखों के 6 वा गुरु था ।
जहांगीर ने उनको बंद कर कर रखा था । जहांगीर को कुछ दिनो के बाद मे कष्टो का सामना करना पडने लग गया । उसे कुछ समझ मे नही आया की उसके साथ क्या हो रहा है । एक रात को उसके सपने मे एक फखीर आया और कहा की जहांगीर तुमने गुरु गोबिद सिह को केद करकर अच्छा नही किया आज तेरे साथ जो भी हो रहा है वह उनके कारण ही हो रहा ।
जहांगीर सुबह उठ कर बहुत घबरा गया और अपने सेनीको को बुलाकर सभी राजाओ को मुक्त करने को कह देता है । इसी दिन सिख धर्म के लोग दिवाली का त्योहार मनाने लगे ।
राजा बली की कथा
एक बार की बात है इंद्र देव से डर कर राजा बली उनसे छुपते फिर रहे थे । छुपते हुए वे एक खंडहर मे जार छुप जाते है दैत्यराज बली वहा पर जाकर एक गधे का रुप ले लेते है । देवराज इंद्र उनको ढुडते हुए वहा पर पहुच जाते है । वहा पर दैत्यराज बली गधे के रुप मे थे पर इंद्र को इस बारे मे कुछ नही पता चला ।
इंद्र के देखते हुए गधे से एक औरत बाहर आती है । जब इंद्र ने कहा की हे देवी आप कोन हो तो उस औरत ने कहा की मै तो लक्ष्मी हूं । सत्य, दान, व्रत, तप, पराक्रम तथा धर्म जहा पर होता है मै वही पर रहती हूं ।
इसी प्रकार यह बताया गया की जहा पर बली छुपा था वहा पर पाप हो गया और लक्ष्मी वहा से निकलकर कही और जाने लगी । इस कथा का यह महत्व है की जो भी सच्चा है माता लक्ष्मी वही पर वास करती है ।
साधु की कथा
एक बार की बात है एक साधु तप कर रहा था । वह इतना कठोर तप कर रहा था की माता लक्ष्मी को उसके पास जल्द ही आना पडा । माता लक्ष्मी ने आकर कहा की हे साधु तुम इतना कठोर तप क्यो कर रहे हो । मै तुम्हारे तप से बहुत प्रसन्न हुई हूं मागो क्या मागना चाहते हो ।
लक्ष्मी की वाणी सुन कर साधु ने अपने नेत्र खोले और कहा की हे माते मै राजसिक सुख भोगना चाहता हूं । लक्ष्मी ने उसे कहा की तुम जहा चाहो वहा पर राजसिक सुख भोग सकते हो । ऐसा कह कर लक्ष्मी माता वहा से चली गई । साधु तुरन्त ही वही से राजा के महल मे जाकर राजा के सिहासन पर बैठ गया ।
सिहासन पर बैठने से पहले साधु ने वहा पर पडे राजा के मुकुट को वहा से उठा कर दुर फेक दिया । जब राजा ने देखा की साधु ने उनका मुकुट फेक दिया तो राजा को क्रोध आ जाता है । इतने मे राजा ने देखा की उस मुकुट से एक साप निकल कर जा रहा है । राजा ने सोचा की साधु ने तो उनकी जान बचाई है ।
राजा ने साधु को धन्यवाद किया और उनके लिए भोजन करने को कह दिया । राजा ने साधु की खुब सेवा की । कुछ दिनो के बाद मे साधु ने सभी को महल से बाहर निकाल दिया । सभी लोग बाहर चले गए साधु भी बाहर निकल गया था उन को निकालेने के लिए ।
तब सभी लोगो ने देखा की साधु के बाहर निकालने पर महल पड गया । तो सभी लोग साधु की जय बोलने लगे । साधु को यह सब सुनकर क्रोध आने लगा वह गणेश जी को याद कर कर वापस पहले था वही जाने का वर मागा और वहा से दुर चला गया ।
साधु को यह नही पता था की इतने धन को केसे खर्च करना है । धन का पलडा भी भारी होता है उसे कोई भी नही समभाल सकता है । इस लिए गणेश व लक्ष्मी की पूजा की जाती है ताकी धन के समभाले का ज्ञान भी मिल जाए ।