पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा होगा इस संबंध मे कई सारे सवाल मौजूद हैं। क्या आपको पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा था ? वैसे इस संबंध मे भारतिए मत और इतिहासकारों के मत अलग अलग हैं। हम यहां पर पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए दोनों मतों का उल्लेख करेंगे । हालांकि यह कहना मुश्किल है कि सत्य क्या है ? लेकिन जानना तो बहुत अधिक जरूरी हो जाता है।
वैसे जब प्रेम की बात आती है तो नाम आता है पृथ्वीराज सिंह चौहान और संयोगिता का । दोनों की प्रेम कहानी वाकाई मे शानदार है। खैर आज भी वैसा ही प्रेम के मामले मे देखने को मिलता है जैसा कि पहले देखने को मिलता था। पृथ्वीराज सिंह चौहान जैसे वीर का नाम तो आपने सुना ही होगा । और इनके बारे मे टीवी के उपर भी कई बार धारावाहिक आते ही रहते हैं।पृथ्वीराज सिंह चौहान कोई मामूली इंसान नहीं थे । उनके बारे मे यह कहावत प्रसिद्व है कि उन्होंने बचपन मे शेर का जबड़ा भी फाड़ दिया था। इसके अलावा मोम्हमद गौरी ने उनको हराने के लिए 17 बार प्रयास किये थे । यदि उनके खुद के ही देश के लोग गददार नहीं होते तो गौरी के लिए उनको हराना बहुत ही कठिन हो जाता ।
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पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा
पृथ्वीराज की तेरह रानीयां थी। उन मे से संयोगिता प्रसिद्धतम है। अन्य जाङ्गलु, पद्मावती, चन्द्रावती भी प्रसिद्धि को प्राप्त हुई।पृथ्वीराज के राजा बनने के बाद सामान्तों ने विद्रोह कर दिया लेकिन पृथ्वीराज ने किसी तरह से इस विद्रोह को दबा दिया था।
पृथ्वीराज सिंह चौहान के बारे मे यह कहा जाता है कि वे बचपन के अंदर ही बहुत अधिक बहादूर थे और युद्व कला के अंदर निपुण थे । उन्होंने शब्द बेदी बाण का अभियास किया था। जिसका मतलब यह है कि वे आंख बंद करके और शब्दों के ईशारे से ही सटीक निशाना लगाने की कला जानते थे।
1179 में युद्ध में उनके पिता की मौत के बाद चौहान को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया था। उनको दो जगह दिल्ली और अजमेर का शासन सौंपा था।योद्धा प्रथ्वी राज चौहान ने अपने सम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए और इसके चलते उन्होंने अपना साम्राज्य राजस्थान के साम्भर , गुजरात और पूर्वी पंजाब तक फैला दिया था
उस समय प्रथ्वी राज चौहान की ख्याति इतनी अधिक बढ़ चुकी थी कि उनके किस्से आम जन तक पहुंच गए थे और सबके मुख के अंदर एक ही बात निकल रही थी। जब यह किस्से राजा जयचंद के पास पहुंचे तो उनको प्रथ्वी राज चौहान से ईष्या होने लगी क्योंकि वह खुद एक शक्तिशाली राजा था।
आपको बतादें कि जब स्वयं वर का आयोजन किया जा रहा था तो प्रथ्वी राज द्ववार पालक के रूप मे वहां पर आए थे और बाद मे संयोगिता को लेकर भाग गए । उसके बाद 1189 और 1190 के बीच प्रथ्वी राज और जयचंद दोनों की सेनाओं के बीच भीषण युद्व हुआ । और इसके अंदर दोनों राजाओं का बहुत अधिक नुकसान हुआ था।
आपको पता होना चाहिए कि जो चीज जितनी अधिक खूबसूरत होती है वह उतनी ही घातक सिद्व होती है।और प्रथ्वी राज चौहान के साथ भी यही हुआ । संयोगिता के अपहारण के बाद उसका बाप चुप नहीं बैठा था। वह हर वो तरीके अपना रहा था ,जिससे की प्रथ्वी राज को मौत के घाट उतारा जा सके ।
कहा जाता है कि चौहान से मोहम्मद गोरी का 16 बार सामना हुआ और इतनी ही बार गौरी परास्त हो गया ।जयचंद्र तो वैसे भी अपनी बैटी से खफा थे तो उन्होंने गौरी से हाथ मिलाया और चौहान के सारे राज उनको बता दिये । उसके बाद इसका पूरा फायदा मोहम्मद गौरी ने उठाया और पंजाब में घजनाविद की सेना को पराजित कर दिया | मुहम्मद गौरी ने अब पृथ्वीराज के साम्राज्य तक अपने राज का विस्तार किया और उसके बाद पूर्वी पंजाब के भटिंडा के किले को घेर कर लिया ।
आपको बतादें कि मोहम्मद गौरी पर किसी तरह के कोई नियम लागू नहीं होते थे ।वैसे भारत के राजा रात के अंदर युद्व विराम करते थे और दिन मे युद्व लड़ा करते थे लेकिन मोहम्द गोरी ने इसका पूरा फायदा उठाया और जब रात मे आक्रमण हुआ तो जयचंद से मदद मांगी गई लेकिन जयचंद ने मदद करने से इनकार कर दिया था।
1191 में प्राचीन शहर थानेसर के निकट तराइन नामक जगह पर उसके शत्रुओ से प्रथ्वी राज का सामना हुआ और राजपूतों के आगे मुहम्मद गौरी को झुकना पड़ा और गौरी को बंदी बनाकर उसे चौहान के सामने पेश किया गया । डरा हुआ गौरी चौहान के पैरों मे गिरकर उसे क्षमा मांगी । चूंकि दुश्मन को क्षमा कर देना भारत का इतिहास रहा है तो गौरी को क्षमा कर दिया गया ।
लेकिन यदि उस वक्त चौहान जरा भी उसके बारे मे सोच लेता कि वह सुधरने वाला नहीं है तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ता और यही गलती आगे उसी के उपर भारी पड़ी ।
1192 मे गौरी ने फिर रात को प्रथ्वी राज के उपर अपनी मजबूत सेना के साथ आक्रमण किया और इस बार मोहम्मद गौरी को जीत मिली प्रथ्वी राज को बेड़ियों के अंदर बांधकर अपने साथ अफगानिस्तान लेकर चला गया ।
इतना ही नहीं उसके बाद मोहम्मद के सामने चौहान को पेश किया गया और सबसे पहले उसे मुस्लमान बनने को कहा गया । और यह बोला गया कि यदि वह मुस्लमान बन जाता है तो उसकी सजा कम हो जाएगी । लेकिन इस बात को चौहान ने स्वीकार नहीं किया । वह अपनी आंखों से मोहम्मद को घुरता रहा ।उसके बाद मोहम्मद गौरी ने उसको आंखे नीची करने को कहा तो चौहान ने कहा कि एक राजपूत की आंखे मरने के बाद भी नहीं झुक सकती हैं तो मोहम्मद ने चौहान की आंखे निकालने का आदेश दिया ।और गर्म सरियों से उनकी दोनों आंखे फोड़ दी गई।
चन्दवरदाई उस समय उसके साथ गया था और उसने प्रथ्वी राज की जीवन कहानी लिखी थी।चन्दवरदाई ने प्रथ्वी राज से अत्याचारों का बदला लेने को कहा लेकिन इस वक्त वह संभव नहीं था। लेकिन बताया जाता है कि एक बार जब गौरी नें तिरंदाजी का खेल आयोजित किया । तो उसके अंदर पृथ्वीराज ने गौरी से शामिल होने की मांग कि तो गौरी इस पर हंसा और बोला कि उसकी दोनों आंखे फूट चुकी हैं तो वह कैसे तीर चला सकता है? इस पर चौहान ने कहा कि या तो वह उसे खेल के अंदर हिस्सा लेने दे या फिर मारदे । चन्दरवरदाई ने भी इसमे सहयोग किया तो गौरी मान गया।
उसके बाद गौरी सिंहासन पर बैठा हुआ था और उसके सामने प्रथ्वी राज चौहान को लाया गया । प्रथ्वी राज चौहान को लक्ष्य बताया गया और फिर चंद्रवरदाई ने एक कविता बोली
दस कदम आगे , बीस कदम दाए , बैठा है सुल्तान , अब मत चुको चौहान , चला दो अपना बाण।
पृथ्वीराज के अचानक हमले से गौरी का प्राणांत हो गया ।
क्या सच मे मोहम्मद गौरी को प्रथ्वी राज चौहान ने मारा था ?
हालांकि इस संबंध मे दूसरा पक्ष कुछ और ही कहता है जिसका उल्लेख करना भी बहुत जरूरी है। इस पक्ष के अनुसार कुछ इतिहास कार यह मानते हैं
कुछ जगह पर यह लिखा गया है कि जब चौहान को पकड़ लिया गया तो उसे मोहम्मद गौरी ने अपने अंडर अजमेर के अंदर शासन करने को का गया था। कुछ ऐसे सिक्के भी मिले हैं जिसके एक तरफ मोहम्मद गौरी और दूसरी तरफ चौहान लिखा है। लेकिन बाद मे षड़यंत्र के तहत चौहान और उनके कवि चंद्रवरदाई को बंदी बनाकर मोहम्मद अपने देश लेकर चला गया था।और वहीं पर उनको मार डाला गया था।पृथ्वीराज सिंह चौहान की मौत के बाद गौरी ने अनेक अभियान चलाए और अनेक जगहों को जीता और 1206 ई के अंदर खोखर कबिलों के विरूद्व चलाए गए एक अभियान के अंदर किसी कटटर मुस्लिम ने ही मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया था।
गौरी की कब्र को अपमानित नहीं करने से चुका पाकिस्तान
दोस्तों जब गोरी की मौत हो गई तो उसका दांह संस्कार हिंदू रिति रिवाज से नहीं किया गया । वरन वहीं पर अफगानिस्तान के अंदर प्रथ्वी राज चौहान को दफना दिया गया । सुनने मे यह भी आया है कि वहां पर चौहान की कब्र के साथ भी लोग बुरा बर्ताव करने से नहीं चुके लेकिन उनके हाथ मे कुछ नहीं था। वे बस चौहान की कब्र पर थूकते और उसको चप्पलों से मारते थे । सन 2019 को छपे एक लेख के अनुसार अफगानिस्तान के गजनी शहर के बाहरी क्षेत्र में पृथ्वीराज चौहान की समाधि आज भी ।
उसके बाद 700 साल तक भारत के अंदर मुंगलों का शासन चला और इस दौरान भारत के अनेक शाशक मुंगलों को यहां से निकालने का प्रयास करते रहे जिसके अंदर महाराणा प्रताप का नाम प्रमुख है।
अनंग पाल , राणा कुम्भा , राजा मलदेव राठोड , वीर दुर्गादास राठोड , राणा सांगा , राजा विक्रमादित्य, श्रीमंत विश्वास राय का नाम भी इसके अंदर गिना जाता है। पृथ्वीराज को अफ़ग़ानिस्तान मे दफनाए जाने के बाद जब वहां पर गौरी की कब्र को देखने के लिए लोग आते हैं तो वे पहले चौहान की कब्र के उपर चप्पल से मारते थे और उसके बाद गौरी की कब्र को प्रणाम करते थे । एक तरह से गौरी उनके लिए आर्दश है। खैर कई बार पृथ्वीराज की अस्थियों को भारत लाने की याचिका लगाई गई थी।
तिहाड़ जेल के अंदर फूलन देवी की हत्या करने वाला शेर सिंह राणा बंद था। उसे जब इस बात का पता चला तो वह तिहाड़ जेल से भाग गया और चौहान की अस्तियों को वापस लाने के लिए गया ।वह अपने राजा की कब्र की खोज करने के लिए अफगानिस्तान गया लेकिन उसे यह नहीं पता था कि कब्र कहां पर है?
जब वह गजनी पहुंचा तो उसे पता चला कि कब्र वहां पर है। वहां पर गौरी की कब्र भी थी और उसने स्थानिये लोगों को बताया कि वह पाकिस्तान से आया है। उसने पाकिस्तानियों जैसी वैश भूषा बना ली और कहा कि वह चौहान से बहुत अधिक नफरत करता है और उसकी कब्र का बेहाल करना चाहता है ।
इस पर स्थानिए लोगों की कोई प्रतिक्रया नहीं हुई और वे मान गए ।और उसके बाद उसने चौहान की अस्थियां एकत्रित की और वापस भारत आ गया ।2005 मे राणा भारत आया और अस्थियों को कूरियर से इटावा भेजा वहां पर एक अत्सव आयोजित किया ।
पृथ्वीराज सिंह चौहान के वंशज हैं खफा
मिर्जापुर के राजगढ़ ब्लाक स्थित अटारी गांव के साथ विशुनपुरा, लालपुर और मटियारी में पृथ्वीराज के वंशजों की संख्या पांच हजार से ज्यादा है।सुनने मे आया है कि यह लोग आज भी दीवाली नहीं मनाते हैं। और एक जगह एकत्रित होकर शौक मनाते हैं। इस गांच के अंदर पटाखे तक नहीं बजाए जाते हैं।सन 2017 को प्रकाशित जानकारी के अनुसार इन लोगों का कहना है कि मोदी सरकार उनके लिए यह काम कर सकती है। और वहां पर चौहान को पाकिस्तानी लोग शैतान मानते हैं और उनकी कब्र के उपर चप्पलों से मार रहे हैं। पिछले 800 सालों से यही हो रहा है। हालांकि मुझे नहीं मालूम कि इस पर अभी तक क्या कार्यवाही हुई है ?
पृथ्वीराज सिंह चौहान को इस तरह से हुआ संयोगिता से प्रेम
यह बात उन दिनों की है जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे थे। उसी समय मसहूर चित्रकार पन्नाराय पृथ्वीराज सिंह चौहान और दूसरे राजाओं के चित्रों को लेकर कन्नौज पहुंचे और वहां पर चित्रों की प्रदर्शनी लगाई थी।पृथ्वीराज चौहान का चित्र इतना अधिक आकर्षक था कि सभी स्त्री उनकी सुंदरता का बखान करते हुए नहीं थक रही थी। और उनको कई स्त्री मन ही मन पसंद कर रही थी।पृथ्वीराज के बारे मे बातें जब संयोगिता के कानों तक पहुंची तो वह भी उनके चित्र को देखने को आई और जब चित्र को देखा तो मुग्ध हो गई और अपना दिल खो बैठी ।
और उसके बाद तो संयोगिता यह तय कर चुकी थी कि वह शादी करेगी तो पृथ्वीराज चौहान से ही करेगी नहीं तो मर जाएगी । और इस कहानी के अंदर विलन थे खुद संयोगिता के बाप जिनको आज दुनिया जयचंद और देश के गदार के नाम से जानती है।
जयचंद और पृथ्वीराज चौहान दोनों एक दूसरे को घोर विरोधी थे तो संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान का मिलना होना कोई आसान काम नहीं था।उसके बाद संयोगिता ने समस्या का हल निकालने के लिए चित्रकार पन्नाराय को बुलाया और अपना खुद का उससे एक सुंदर चित्र बनाया ।उसके बाद उस चित्र को लेकर पृथ्वीराज चौहान के पास वह गया और जब पृथ्वीराज चौहान ने वह चित्र देखा तो उन्हें भी संयोगिता काफी पसंद आ गई। और उसके बाद प्रेम और गहरा हो गया और फिर वही हुआ जो अक्सर आज भी होता है।
संयोगिता का स्वयंवर
संयोगिता के पिता नें स्वयंवर का आयोजन करवाया इस स्वयंवर के अंदर आस पास के कई राजा आए लेकिन पृथ्वीराज चौहान को किसी ने नहीं बुलाया । उधर इस बात कि खबर गुप्तचरों ने पृथ्वीराज चौहान को पहले ही करदी थी। संयोगिता को इस बात पर बहुत ही दुख था कि उसके पिता ने पृथ्वीराज चौहान
को क्यों नहीं बुलाया ?उसके बाद संयोगिता ने किसी मूर्ति को वर माला पहनाने पर विचार किया ही था कि तब तक पृथ्वीराज चौहान वहां पर आ धमके और संयोगिता ने उनके गले के अंदर माला डाल दी । यह देखकर जयचंद को बहुत अधिक गुस्सा आया और उन्होंने दोनों को मारने के लिए तलवार निकाली और सैनिकों को को मारने का आदेश दिया तब तक पृथ्वीराज संयोगिता के साथ भाग चुके थे । और राजा जयचंद इस बात से बहुत अधिक खफा हो चुका था।
पृथ्वीराज की इसी गलती का खामियाजा उन्होंने भुगतना पड़ा। जैसा कि फिल्मों के अंदर होता है और रियल लाइफ मे भी होता है। उसके बाद संयोगिता के बाप ने मोहम्मद गौरी से हाथ मिला लिया था। और लेकिन 16 युद्व के अंदर पृथ्वीराज ने पराजित किया लेकिन पृथ्वीराज की एक गलती यही रही कि उसने मोहम्द गौरी को हर बार जिंदा छोड़ दिया ।
अंत मे संयोगिता ने कर लिया था खुद का अंत
दोस्तों जब प्रथ्वी राज चौहान का अंत हो गया था तो इस बात की जानकारी संयोगिता को जैसे ही मिली । उसे यह लगा मानो उसका सब कुछ लुट गया हो और उसके बाद वह इतने वियोग के अंदर चली गई कि उसने खुद को ही खत्म कर लिया । उसे लगा कि उसका अब इस दुनिया के अंदर कोई नहीं है।दोस्तों यह सोचना गलत होगा कि किसी भी युग के अंदर बुरे लोग नहीं थे । बुराई धरती पर तो कम से कम कभी खत्म हो नहीं सकती है। चाहे कितने भी प्रयास किये जाएं । बुराई को खत्म नहीं किया जा सकता है।
सत्य कुछ और ही है जिसको हम नहीं जानते हैं
दोस्तों उपर हमने उन बातों का उल्लेख किया है जो एक एक पक्ष हैं दूसरा पक्ष कुछ और ही कहता है। उसका उल्लेख करना भी हम यहां पर उचित समझते हैं। यदि विकिपिडिया की माने तो जयचंद्र गदार था ही नहीं आप देख सकते हैं।
जयचंद कन्नौज साम्राज्य के राजा थे। तराईन के युद्ध के अंदर गौरी ने प्रथ्वी राज चौहान को परास्त कर दिया और उसके बाद दिल्ली पर गौरी का अधिकार हो गया ।और यहां का शासन गौरी ने ऐबक को सौंप दिया और खुद अपने देश चला गया ।इस युद्व हो जाने के बाद गौरी 2 वर्ष बाद एक विशाल सेना लेकर भारत आया और फिर इस बार उसका निशाना कन्नौज था।सुल्तान शहाबुद्दीन रास्ते में पचास हजार सेना के साथ आ मिला। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया।उसके बाद दोनों के बीच इटावा के पास ‘चन्दावर के पास मुकाबला हुआ और जयचन्द हाथी के उपर बैठकर अपनी सेना का संचालन कर रहा था। जयचंद्र के पास पूरी सेना भी नहीं थी।
एक तीर जयचंद की छाती के अंदर आकर लगा और उसके बाद उसकी वहीं पर मौत हो गई। आपको बता दें कि जयचंद पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाता है। उसके बारे मे कोई भी जानकारी नहीं है।आपको बतादें की संगीता वाले प्रकरण मे जब चौहान के कई सामन्त मारे गए तो गुप्तचरों ने गौरी को सूचना दी कि चौहान को अब मारना बहुत ही आसान है। ऐसी स्थिति के अंदर मोहम्मद गौरी को यह विश्वास नहीं हुआ तो उसने अपने गुप्तचर वहां पर भेजे थे । प्रथ्वीराज रासो के अनुसार यह लोग नित्यानन्द खत्री, प्रतापसिंह जैन, माधोभट्ट तथा धर्मायन कायस्थ जो तेंवरों के कवि (बंदीजन) और अधिकारी थे।
जिन्होंने गौरी को सूचना दी थी।आपको बतादें कि विकिपिडिया के अंदर यहां तक लिखा मिलता है कि जयचंद ने कभी भी प्रथ्वीराज से बदला लेने ही नहीं सोची थी। और जब उसकी बेटी संयोगिता चौहान के साथ भागी तो वह एक बार क्रोधित हो गया था लेकिन बाद मे जय चंद्र ने 5 दिन तक प्रथ्वी राज को घेरे रखा और इस लड़ाई के अंदर चौहान के कई सामन्त मारे जा चुके थे । लेकिन अंतिम बार जब जयचंद्र ने देखा कि उसकी बेटी ने ही प्रथ्वी राज को चुना है और यदि वह उसे मार देता है तो बेटी विधवा हो जाएगी तो उसने उसे जाने दिया ।
इसके अलावा विकिपिडिया पर उल्लेख किया गया है कि बाद मे जयचन्द ने कई पुरोहित दिल्ली भेजे थे ताकि वे संयोगिता और प्रथ्वी राज चौहान का विवाह करवा सके । इसके अलावा कहा गया है कि युद्व के अंदर भी चौहान ने जयचंद्र से किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं मांगी थी।
- हिस्ट्री ऑफ इण्डिया पुस्तक के अंदर जे.सी. पोवल यह लिखते हैं कि इस बात का कोई भी आधार नहीं है कि जयचंद्र ने गौरी को भारत के अंदर आमंत्रित किया था। यह सर्वथा गलत प्रतीत होता है।
- डॉ. राजबली पाण्डे ने कहा कि जयचंद्र ने प्रथ्वी राज चौहान को मरवाने के लिए गौरी को नहीं बुलाया था यह किसी भी मुस्लिम लेखक की किताब के अंदर उल्लेख नहीं किया गया है।
- कामिल-उल-तवारिख मे लिखा गया है कि मोहम्मद यह जानता था कि जब तक जयचंद्र को परास्त नहीं किया जाता है। तब तक दिल्ली और अजमेर के उपर किया गया अधिकार किसी काम का नहीं होगा और उसके कोई मायने नहीं होते ।
चन्दरबरदाई की कव्यात्मकता
दोस्तों चन्दरबरदाई प्रथ्वीराज चौहान का एक दरबारी कवि था। इस बात को हम सभी जानते हैं।डा.आनंद शर्मा ने इस बारे मे रिसर्च की तो पता चला कि सब बातें काल्पनिक हैं। सच तो यह है कि संयोगिता जैसी कोई पुत्री जयचंद्र की थी ही नहीं । और जब पुत्री ही नहीं थी तो शत्रुता की बात करना बेकार होगा । पृथ्वीराज रासो को सभी इतिहासकारों ने अप्रमाणित माना है। यह मात्र मनोरंजन के लिए ही लिखा गया था। और प्रथ्वीराज के लड़ाई के अंदर आमंत्रण नहीं देने की वजह से जयचंद्र ने उनका साथ नहीं दिया था।
इसके अलावा आपको यह भी बतादें कि चौहान कोई शब्द बेदी बाण चलाना नहीं जानता था। उसकी मौत मोहम्मद गौरी से बहुत पहले ही हो चुकी थी। जिसका उल्लेख इतिहासकारों ने भी किया है। पृथ्वीराज रासो एक काल्पनिक काव्य था जो इतिहास के अनुसार नहीं लिखा गया था।
चंद्रवरादाई के द्वारा लिखा गया काव्य स्कूलों के अंदर पढ़ाया जाता है। असल मे हम लोगों ने भी इस काव्य को पढ़ा था। हालांकि उसके अंदर यह कहीं पर भी उल्लेख नहीं मिलता है कि ऐसा हुआ था । बस वह एक राजा का बखान करने के लिए चंद्रवरादाई ने लिखा था। सत्ता की चापलूसी करना उस समय तो था ही आज भी है। भले ही उसके जैसा काव्य नहीं चल सकता है लेकिन जो किया जा सकता है वे लोग आज भी करते हैं। क्योंकि भाई कवि की यह रोजी रोटी है।
पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को कैसे मारा ? तो दोस्तों इस लेख के अंदर हमने वो सभी पक्ष रखने का प्रयास किया जो लगभग हर जगह पर उल्लेख किया गया था। आपको बतादें कि चंद्रबरदाई ने अपने काव्य के अंदर काल्पनिक बातें लिखी थी। वह बस एक काव्य था जो किसी राजा की खुशामदगी के लिए लिखा जाता है। असल मे मोहम्मद गौरी की मौत के बारे मे हम आपको उपर बता चुके हैं।
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