इस लेख के अंदर हम महाशिवरात्रि व्रत कथा mahaashivaraatri vrat katha आरती भजन चालिसा, व्रत करने की विधी व महत्व के बारे मे विस्तर से जान सकेगे ।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि व्रत किया जाता है । यह हिन्दुओं का प्रमुख व्रत माना जाता है । इस व्रत को पुरे भारत मे बडें ही चाव के साथ किया जाता है । महा शिवरात्रि व्रत भगवान शिव का होता है । भगवान शिव को ही इस पुरे संसार का उदय का कारण माना जाता है । देवी पार्वती जो शिव की पत्नी है । उनका विवाह भी इसी दिन हुआ माना जाता है ।
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महाशिवरात्रि व्रत कथा
भगवान शिव ने एक बार माता पार्वती से कहा की अगर कोई मेरा भग्त मरने के बाद मेरा साथ चाहता है तो वह मेरा यह व्रत पुरी विधी के साथ कर मुझे प्रसन्न करे तो उसका साथ मे कभी भी नही छोडता हूं । तब माता ने कहा की वह व्रत कोनसा है ।
भगवान शिव ने उत्तर देते हुए कहा की वह व्रत शिवरात्री का है । तब माता ने कहा कि इस व्रत की मै कथा सुननी चाहुगी । माता की इस इच्छा को देख कर भगवान शिव ने उन्हें कथा सुनाइ जो यह है
चित्रभानु नामक एक प्राचिन काल मे शिकारी हुआ करता था । जो रोजाना ही न जाने कितने जानवरो को मार देता था । वह शिकारी पशुओ को मार के उसके कुटुम्ब को एक साहुकार को दिया करता था। वह शिकारी उस साहुकार का ऋणी था इस कारण वह रोजाना ही पशुओ को मार कर अपना ऋण चुकाया करता था ।
एक दिन वह शिकारी बिमार हो गया इस कारण वह साहुकार का ऋण नही चुका सका । साहुकार को ऋण नही मिलने के कारण उस शिकारी को शिवमठ मे बंद कर देता है। साहुकार ने मठ मे बंद किया था उस दिन शिवरात्री थी ।
शिकारी को वहा पर बंद करने से शिकारी को बहुत ही बडा लाभ प्राप्त हो गया । शिकारी शिवरात्री के दिन शिव के बारे मे पुरी बातो को सुन कर वह मन ही मन सोचने लगा की वह शिव जी का व्रत करेगा । ऐसा सोचकर शिकारी ने चतुर्दशी को भगवान शिव की कथा सुनी ।
शिकारी को अगले ही दिन साहुकार ने अपने पास बुलाकर ऋण चुकाने के लिए कहा तो वह शिकारी साहुकार से एक दिन का समय मागता है । साहुकाने ने शिकारी को एक दिन का समय दे दिया । शिकारी साहुकार से मुक्त होकर जगल गया और शिकार करने लग गया था पर कोई शिकार नही कर सका ।
शिकारी को बहुत ही कमजोरी महसुस होने लगी थी । इस कारण वह शिकार नही कर सका । शिकारी ने सोचा की शिकार को पकडना ही पडेगा नही तो वह साहुकार उसे छोडेगा नही । शिकार के लिए वह एक पेड पर चड गया और बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा ।
शिकारी अपने कार्य मे मगन था पर उसे नही पता था की यहा इस वृक्ष के निचे शिव भागवान कि शिवलिग है । वह अपना कार्य करता रहा । भगवान शिव की शिवलिग पर कुछ बैल पत्र के पत्ते पड गए थे । इस तरह से वह शिकारी दिन भर भुख प्यासा अपना कार्य कर रहा ।
बैल पत्र शिवलिग पर चढ जाने के कारण उसका यह व्रत हो गया था । कुछ समय के बाद वहा पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची । जिसे शिकारी ने देखा तो वह तिर चलाने लगा ।
उस शिकारी के धनुष की प्रत्यंचा की आवाज सुकर वह मृगी बोलो मे ग्रभणी हू । तुम कुछ समय के बाद मुझे मार देना ताकी मे अपने पेट मे पल रहे जिव को तो बचा सकती हू । उसकी बात सुन कर शिकारी कुछ समय तो सोचता है पर उसे दया आ जाती है ।
इसीलिए वह अपने धनुष की प्रत्यंचा ढीली कर देता है । वह जैसे ही अपनी प्रत्यंचा ढीली करता है तो वह मृगी वहा से झाड़ियो के अंदर जाकर छुप जाती है । कुछ समय बित गया और वहा पर कोई नही आया । शिकारी उदास होकर वही पेड पर बैठ गया ।
फिर कुछ समय के बाद वहा पर एक और मृगी आई । जिसे शिकारी ने जेसे ही मारने के लिए अपने धनुष पर बाण चोडी तो वह मृगी बोलो कि हे मानव आप मुझे मत मारे अगर आप मुझे मारना ही चाहते है तो पहले मुझे अपने पति से मिल लेने दो मे कब से उसे ढुड रही हूं ।
उस मृगी की बात सुनकर वह शिकारी पिघल गया और अपनी तिर को धनुष से उतार लेता है । रात्रि का आखिरी पहर बितता जा रहा था । शिकारी ने अभी तक कोई भी शिकार नही किया ।
शिकारी ने जब तिसरी बार मृगी को देखा तो वह बाण चलाने ही वाला था कि शिकारी को वह मृगी बोली कि है शिकारी देखो मेरे पास जो बच्चे है उसे अनके पिता के पास छोड आने दो । तब शिकारी बोला की अगर मेने तुम्हे जाने दिया तो तुम भी वापस नही आओगी ।
पहले ही मेने दो बार शिकार को छोड कर देख लिया है अब मे यह मुर्खता नही करुगा । मृगी ने कहा की जिस प्रकार तुम्हारे बच्चे भुख के कारण तडप रहे है वेसे ही मेरे बच्चे भी भुख प्यास से तडप रहे है तुम मेरे विश्वास करो मे वापस जरुर आ जाउगी ।
शिकारी ने उसे भी जाने दिया । शिकारी का हालत बहुत बुरी हो रही थी वह बैलपत्र को तोडता हुआ निचे गेर रहा था । उसे बहुत समय हो गया । फिर शिकारी ने देखा की एक और मृग आ रहा था । शिकारी ने सोचा कि इस को तो मे नही छोड सकता हूं ।
वह मृग जैसे ही उस शिकारी के पास पहूंचा और बोला की हे शिकारी अगर तुमने उन तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है,तो तुम मुझे इसी छण मार दो । शिकारी उसकी यह बात सुनकर कुछ हलका पड गया था ।
मृग कहता है उन के दुख मे रो कर मरने से अच्छा है की तुम मुझे इसी छण मार दो । मृग ने कहा की वह तिनो मेरी मत्नीया है ।अगर तुमने उन्हे जीवन दान दे दिया है तो तुम मुझे भी कुछ क्षण के लिए जीवन दान दे दो ।
मृग की बातो को सुनकर शिकारी की आखो मे आसु आ गया । वह उस मृग से अपनी पुरी बात बताने लगा । अब रात बहुत हो गई थी । शिकारी का हृदय पिघल गया था उसमे प्रेम भर गया ।
भगवान शिव की शिवलिग पर वह पुरे दिन बैल पत्र चढाते रहा । उसके हाथो से बाण गिर गया था अब वह शिकार करने की हालत मे नही रहा । तब मृग ने कहा की हे शिकारी तुम मुझे कुछ समय के लिए जाने दो मै वापस जरुर आ जाउगा ।
शिकारी ने उसे जाने दिया । शिकारी मन मे अजीब ही शक्ति महसूस करने लग गया । उसमे शिव के कुछ गुण समाने लग गए थे । कुछ समय बित गया तब मृग व उसकी तिनो पत्नी वहा पर उस शिकारी के सामने मरने के लिए आ गए थे ।
शिकारी ने अपना धनुष उठाया पर उससे इनकी हत्या नही हो सकी थी । शिकरी के हाथो से धनुष पड गया था शिकारी उनके इस प्रेम को देखकर रोने लग गया । शिकारी ने उन्हे नही मारा और वही से उन्हे छोड कर अपने कठोर हृदय को निकाल के उसमे प्रेम भर दिया था ।
तब से वह शिकार नही कर सका । शिकारी के इस प्रकार परिवर्तित हृदय को देखकर सभी देवो ने उन पर फुलो की वर्षा की । तब से शिकारी उसी जगल मे पशुओ का साहयक बनकर रहने लगा । जिससे उसका ऋण पता नही कब चुक गया । शिकारी को मरने के बाद मोक्ष मिल गया ।
महाशिवरात्रि व्रत कथा कि विधी
- शिवरात्री व्रत करने से पहले प्रात काल स्नान कर भगवान शिव कि तरह ये मन को खाली करना होता है ।
- शिव भगवान के लिए दुग्ध लेकर शिवलिग को स्नान कराना चाहिए । अगर आस पास भगवान शिव का मंदीर नही हो तो आप एक पेड की जडो मे दुग्ध शिव का नाम लेकर चढा सकते है ।
- भगवान शिव के मंदिर मे जाकर दूध, दही, जल, पुष्प, बेलपत्र, धतूरा और बेर आदि चढ़ाए जाते है ।
- दिन के चारों पहर में भगवान शिव की पूजा की जाती है ।
- भगवान की पूजा करे उन्हे भोग लगए । प्रसाद के रुप मे नारियल अच्छा रहता है ।
- अपने मन की बूरी भावनाओ को निकालकर भगवान की आरती करे ।
- आरती करने के बाद भगवान के भजन सुने ।
- माता पार्वती की पूजा करे तो अच्छा रहता है क्योकी उन्हे आदी शक्ति माना जाता है ।
- सभी बडो का आर्शीवाद ले व उन्हे प्रसाद भी दे ।
- सबसे अंत मे भगवान से अपना अभीष्ट वरदान कि माग करे ।
महाशिवरात्रि व्रत कथा का महत्व
- शिवरात्री का व्रत करने से सबसे बडा लाभ तो यह होता है की मोक्ष प्राप्ति के बहुत ही निकट पहूंच जाता है ।
- इस व्रत को करने से सारे कष्ट दूर हो जाते है ।
- शिवरात्री ही एक ऐसा व्रत है जिसे बडी सरलता के साथ कर सकते है और अपनी मन चाहे इंच्छा से भगवान से माग सकते है ।
- यह व्रत करने से मन को शांति मिल जाती है ।
- इस व्रत से पढाई करने मे भी मन लगने लग जाता है ।
- इस व्रत से मनुष्य आपनी सफलता के बहुत निकट पहूंच जाता है ।
- शिवरात्री का व्रत करने से दुश्मन से भी दोस्ती हो जाती है ।
- इस व्रत को करने से मोक्ष प्राप्त कर भगवान शिवके पास शिवलोक मे चला जाता है ।
- इस संसार की मोह माया से बचने मे इस व्रत से सबसे बडा लाभ होता है ।
शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
भजन
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
ॐ नमः शिवाये हम गाते जाएंगे,
धुप दीप भंग आक धतूरा चांदी थाल सजाके,
गंगा जल से भर के लौटा गौका दूध मिलाके,
नंगे पॉंव चल भोले के मंदिर जाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
चढ़ाके जल शिव पिंडी को हम तिलक करें चंदन का,
श्रृंगार करें त्रिलोकी के मालिक प्यारे भगवन का,
शिव पिंडी के दर्शन कर हम धन्य हो जाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
शिव भोले के जो भी सोलह सोमवार व्रत धारे,
सुख सम्पदा लुटाते उसपर हैं शिव भोले प्यारे,
शिव भोले से मन चाहा फल हम भी पाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
दर तेरे पे आन खड़े हैं मिलके शिव हरिपाल,
तेरे गुण गायें कैसे ना जाने सुर और ताल,
बनी रहे कृपा हम तेरी महिमा गाएंगे,
आज सोमवार है शिवाले जाएंगे,
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हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
ॐ नमः शिवाये ॐ नमः शिवाये,
भस्म रमाये तन पर भोले नंदी इनकी सवारी है,
कहते इनको भोले शंकर जग के ये त्रिपुरारी है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
ॐ नमः शिवाये ॐ नमः शिवाये,
ध्यान लगाए बैठे है शिव मूरत बड़ी ही प्यारी है,
तीन नेत्र है शिव शंकर के गले में सर्प की माला है,
मांग ले जो भी इनसे बंदे शिव ये भोला भाला है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
कर में तिरशूल है शिव भोले के जटा में गंगा धरा है,
दे कर देवो को अमिरत खुद विष को गले में धारा है
इस लिए तेरे दर पे भोले हम ने भी डेरा डाला है,
हे शिव भोले हे शिव शंकर तुझसे दुनिया दारी है,
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जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
शिव शंकर शम्भू
जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय शिव शंकर नमामि शंकर शिव शंकर श्मभु,
जय गिरजा पति भवानी शंकर शिव शंकर श्मभु,
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वो जो नंदी की करता सवारी
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
शीश पर जिसने गंगा उतारी ,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
जिस का केलाश पर्वत है डेरा,
वो है हर हर महादेव मेरा,
है गले जिसके सर्पो की माला,
चंदर माँ का माथे उजाला,
जिसके चरणों में है दुनिया सारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
सारी दुनिया है जिस की दीवानी ,
उसकी महिमा न जाए भखानी
कोई श्मभु कहे कोई शंकर,
कोई कहता उसे ओह्गड़ दानी,
जिसके चरणों के हम सब भिखारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
खुद चंडाल ओह्गड है सेवक,
देवता भी है जिसके निबेदत,
काल और देत्ये भी कांपते है
नाम सभी जिसका जाप्ते है,
है दशानन भी जैसे पुजारी,
मेरा भोला सा भोला भंडारी,
वो जो नंदी की करता सवारी
शिव चालीसा
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
माता पार्वती की परीक्षा
एक बार कि बात है माता पार्वती भगवान शिव से मिलने के लिये कठिन तप कर रही थी । उसके तप को देखकर अन्य देवताओ ने भी पार्वती की मनोकामना पूरी करने के लिये भगवान शिव से प्राथना की । सप्तर्षियों ने पार्वती को शिव के अनेक अवगुण गिनाये पर माता पार्वती किसी और से विवाह करने के लिये राजी नही हुई ।
विवाह से पहले सभी वर अपनी पत्नीयो को लेकर आश्वस्त होना चाहा जिसके कारण भगवान शिव ने भी माता पार्वती की परीक्षा लेनी चाही ।
भगवान शिव प्रकट हुए और माता को वरदान दिया और कहा विवाह से पुर्व मे तुम्हारी परीक्षा अवश्य लेना चाहुंगा, इतने मे भगवान वंहा से चले गये कुछ समय बाद मे माता जहा जप करती थी,वही कुछ दूरी पर एक बच्चा नदी के किनारे से पानी मे पहुंचकर पानी मे मछली पकडने लगा ।
तभी भगवान शिव मगरमच्छ का रुप लेकर उस बालक को पकडने लगे , वह बालक चिल्लाने लगा उनकी चीख माता को सहन न होने के कारण उसे बचाने के लिये समुंद्र मे पहुच गई । माता पार्वती देखती है कि वह मगरमच्छ उस बालक को पानी मे खीच के ले जा रहा था ।
माता पार्वती मगरमच्छ को बोली है ग्राह इस बालक को छोड दो …… तब मगरमच्छ बोला जो भी मुझे दिन के छठे पहर को इस मे मिलता है मैं उसे अपना भोजन समझकर ग्रहण करता हुं । यह बालक इस समय इस समुंद्र मे आया है तो यह मेरा भोजन बनेगा यही मेरा नियम है ।माता पार्वती ने कहा कि तुम इसे छोड दो ओर बदले मे तुम मेरे प्राण ले लो ।
मगरमच्छ बोला कि मे इसे एक शर्त पर इसे छोड सकता हुं कि तुम अपनी तप का फल मुझे दे दो तो । माता पार्वती तैयार हो गई और कहा कि तुम पहले इस बालक को छोड दो । मगरमच्छ बोला देख लो आपने जैसा तप किया वैसा देवताओ के लिये भी सम्भव नही है ।
उसका फल केवल इस बालक के बदले चला जायेगा । पार्वतीने कहा निश्चय पक्का है तुम इस बालक को छोड दो । मगरमच्छ ने पार्वती से तप का दान करने का संकल्प करवाया जैसे ही संकल्प किया मगरमच्छ का देह से तेज रोशनी निकलने लगी ।
मगरमच्छ बोला है पार्वती देखो इस तप का फल पाकर में तो तेजस्वी बन गया हुं तुमने अपने वर्षो पुराने तप को इस बच्चे के बदले दे दिया अगर तुम चाहो तो अपनी भुल सुधारने का एक ओर मोका दे सकता हुं । पार्वती ने कहा कि है ग्राह तप तो मे पुन: कर सकती हूं पर इस बालक के प्राण मे पुन: नही ला सकती ।
और देखते देखते मगरमच्छ गायब हो गया । पार्वती ने सोचा तप मेने दान कर दिया अब पुन: तप आरभ करती हुं । पार्वती ने फिर तप करना चालु किया … तब शिव जी पुन प्रकट हुए और बोले अब तुम पुन: तप क्यो कर रही हो पार्वती ? पार्वती ने कहा की मैने अपने तप को दान कर दिया अब मे वैसा ही तप पुन: कर कर आपको प्रसन्न करुगी ।
महादेव ने कहा कि मगरमच्छ के रुप मे मैं ही था ….. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था । इसी कारण मैने यह लीला रची थी । भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि अनेक रुपो मैं ही हु । मैं अनेक शरीरो मे शरीरो से अलग निर्विकार हुं । तुमने अपना तप मझे दे दिया है अब तुम्हें और तप करने की क्या जरुरत है ।
अमर कथा
एक बार की बात है माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की आप तो अमर है पर मै अमर नही हूं ऐसा क्यो है । तब भगवान शिव ने यह बात बताने के लिए मना कर दिया पर माता पार्वती ने भगवान कि एक नही सुनी ।
वह भगवान से रुठ गई और कहा की आप जब तक इस बारे मे मुझे नही बताओगे तब तक मै आपसे बात नही करुगी । माता के इस प्रकार कि बातो को सुनकर भगवान शिव ने कहा कि यह बात बहूत ही महत्व की है । इसे सुनने के लिए हमे कही एकानत मे जाना होगा । शिव ने कहा कि मै तुम्हे अमर कथा सुनाता हूं ।
भगवान का मानना था कि जो भी इस कथा को सुन लेता है वह भी अमर हो जाता है । इस लिए बाबा भोलेनाथ ने माता को अपने साथ लेकर नंदी को पहलगाम मे छोड के वहा से चले गए । जब से आज तक माना जाता है कि अमरनाथ की यात्रा यही से सुरु होती है ।
चंद्रमा को चंदनबाड़ी से अलग कर दिया । बाबा भोलेनाथ ने गंगा जी को पंचतरणी मे उतार दिया था । इस यात्रा मे एक पडाव आता है जिसका नाम शेषनाग । शिव व माता जब कैलास से यात्रा कर जारहे थे तो वहा पर उन्होने कंठाभूषण सर्पो को शेषनाग पर छोड़ा था ।
शिव व माता के साथ उनका पुत्र गणेश जी भी जा रहे थे । जाते समय भगवान शिव ने अपने पुत्र को भी रास्ते मे छोड दिया था जिस स्थान को आज हम गणेश टॉप के मान से जानते है । रास्ते मे जाते समय एक पिस्सू नाम किडे को त्यागा गया था जिस पिस्सू घाटी के नाम से जाना जाता है ।
पिस्सू घाटी मे शिव ने पिस्सू के किडे को त्याग कर आगे जाने लग जाते है । गुप्त गुफा मे जाने से पहले भगवान शिव ने अपने पांच तत्वो को भी त्याग दिया था । और माता के साथ इस गुफा के अंदर चले जाते है । भगवान शिव ने गुफा को चारो तरफ से बंद कर दिया था ।
वे चारो ओर देखे कि कोई भी वहा पर है तो नही पर उन्हे वहा पर कोई भी नही दिखा इस लिए वे माता पार्वती को अमर कथा सुनानी सुरु कर देते है । कुछ समय तक तो माता ने कथा सुनी पर वह चलकर आई थी और थकने के कारण निंद आ जाती है ।
प्रभु को पता नही था की पार्वती कथा नही सुन रही है । वे अपनी कथा को सुनाते रहे । माता ने तो कथा नही सुनी पर वहा पर दो कबुतर थे जिन्होने भगवान शिव दे द्वारा सुनाई जा रही कथा को पुरी तरह से सुन रहे थे । कथा पुरी हो गई थी तो भगवान शिव कि दृष्टी माता पर पडी तो उन्होने देखा कि माता तो सो रही है ।
शिव ने देखा कि वहा पर किसी और ने तो कथा नही सुन ली है । शिव ने चारो और देखा तो उन्हे एक दिशा मे दो कबुतर दिखे । शिव को क्रोध आ गया था कि कोई उनकी यह अमर कथा सुन चुका है ।
शिव जी ने उन कबुतरो को मारने के लिए जैसे ही अपनी त्रिसुल उठाई तो वे कबुतर बोल पडे कि हे देव यह आप क्या कर रहे है इस अमर कथा को जो भी कोई सुन चुका है वह तो अमर हो जाता है और अब आम ही हमे मार रहे है । भगवान शिव को अपनी कही हुई बात पर ध्यान गया कि कथा सुनने के बाद कथा सुनने वाला अमर हो जाता है।
शिव को अहसास हो गया कि मै इन कबुतरो को नही मार सकता हूं कथा सुनने के बाद यह अमर हो गए है तब शिव ने उन कबुतर को लोग उन्हे शिव-पार्वती के प्रतीकचिन्ह के रुप मे जानेगे ऐसा कहा । इस कथा को सुनने से वह कबुतर अमर हो गए और आज भी शिव के सच्चे भग्तो को उन कबुतरो की आवाज सुनाई देती है ।
अमर नाथ गुफा मे भगवान शिव कि माता पार्वती के द्वारा बनाई गई बर्फ से शिवलिग आज भी वहा पर है । उसके दर्शन के लिए लोग कोसो कोसो से चल कर अमरनाथ कि यात्रा करते है व भगवान शिव कि शिवलिग के दर्शन करते है ।
पार्वती के द्वारा अमरनाथ गुफा मे शिवलिंग का निर्माण
एक बार कि बात है जब माता सति का निधन हो गया था तो भगवान विष्णु ने उनके नए जन्म के लिए माता सति के शरीर को अपने चक्र से नष्ट कर दिया था । जिससे माता सति के शरीर के अनेक टुकडे होका पृथ्वी पर अलग अलग जगहो पर जाकर गिर गए थे ।
जिन्हे आज सक्ति पिठ के नाम से जाना जाता है । भगवान शिव को माता के न रहने का दुख सहा नही जा रहा था जिससे शिव ने विष्णु से कहा कि जब तक माता वापस नही आ जाती है । मै स्वयं को सभी कार्यो से दूर करता हू । जब तक कि माता स्वयं आकर मेरे ध्यान को नही खोल देती है तब तक मेरे ये नेत्र बंद रहेगे ।
भगवान शिव अपने नेत्रो को बंद करके अमरनाथ गुफा मे चले गए । जब माता सति का जन्म पृथ्वी पर पार्वती के रुप मे हुआ तो वह अपने मन से शिव को पाने कि इच्छा से तप करने लग जाती है ।
माता का तप बहुत बढ जाता है । तब माता शिव से मलिने के लिए कैलाश कि और जाती है । पर पार्वती को शिव जी वहा पर नही मिले तो वह उनके बारे मे जानने के लिए इधर उधर जाने लग जाती है पर उसे मता नही चलता है कि शिव कहा पर है ।
फिर सति कि बहन वहा पर आकर माता को जानकारी देती है कि शिव अमरनाथ गुफा मे तप कर रहे है जो उनकें तप को केवल तुम ही तोड सकती हो पार्वती को समझ मे नही आया कि वह उनके तप को केसे तोड सकती है कोई और क्यो नही तोड सकते है ।
वह इस बारे मे सति कि बहन से पुछती है पर उसने कहा की वह स्वयं इस बारे मे जान जाएगी । माता पार्वती वहा से अमरनाथ कि गुफा मे जाने लग जाती है । वहा जाने से माता भगवान शिव कि भग्ति मे पुरी तरह से लिन हो जाती है ।
वह बस चलती जाती है पर उसे नही पता होता है कि वह कहा पर चल रही है । माता भग्ति मे इतनी लिन होकर हल्की हो जाती है कि वह पानी पर भी चलने लग जाती है । गुफा के बाहर भगवान शिव का त्रिसुल रखा था ।
माता पार्वती ने जेसे ही त्रिसुल को छुआ तो उन्हे ऐसा लगा कि वह इस त्रिसुल को पहले से छु चुकि है । फिर वह गुफा के अंदर जाती है । उसने देखा कि वहा पर शिव ध्यान मे लिन है उसने उन्हे जगाने कि बहुत कोशिश करी पर वे नही जाग सके ।
फिर माता पार्वती ने कहा कि जब तक आप इस ध्यान से नही जाग जाते है । तब तक मै यहा पर बैठ कर हिम कि शिवलिंग का निमार्ण करुगी । माता पार्वती ने शिवलिंग का निर्माण करना सुरु कर दिया था और साथ ही शिव का नाम जप रही थी । जब शिवलिंग बन गई तो शिवजी ने अपनी आखे खोली वे माता पार्वती पर क्रोधीत हो गए ।
और उसे इस गुफा से बाहर जाने को कहा । माता पार्वती ने भगवान शिव से बोलने की बहुत कोशिश करी पर शिव जी ने उनकी एक नही सुनी । शिवजी को ज्ञात भी नही रहा था की वे ध्यान मे किस कारण बैठे थे व पार्वती है कोन ।
इस तरह से माता ने शिवलिंग का निर्माण किया था । और आज भी उस गुफा मे शिवलिंग का निर्माण होता रहता है । जिसे देखने के लिए वहा पर अनेक लोग आते है।